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उद्देश्य सम्पूर्ण संसार में आध्यात्मवादी विचारक साधकों को छोड़ कर प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी अंश में दुःखी है कोई शारीरिक रोगों से पीड़ित है, किसी को मानसिक कष्ट है तो कोई निर्धनता से दुःखी है दु:खी मनुष्य अपने दु:ख मिटाने का उपाय साधु-सन्तों से पूछते हैं। भविष्य वेत्ता, ज्योतिषाचार्यो योगीराज मलचन्द खत्री के पास पहुँचते हैं। ये इन दुःखी लोगों को अनेक प्रकार के जप, यज्ञ, अनुष्ठान बताते हैं। ग्रहों के प्रकोप से बचने के लिये अष्ठधातु की अंगूठियाँ और रत्न धारण करने को कहते हैं।
ग्रहों के प्रकोप से बचने के लिये भारत में रत्न धारण करने का प्रचलन अनादि काल से चला आ रहा है और वह लाभदायक भी सिद्ध हुआ है परन्तु रत्नों की पहचान प्रत्येक व्यक्ति नहीं जान सकता । रत्न की पहचान तो जौहरी हो जान सकता है।
पश्चात्य विद्वानों द्वारा रत्नों की परीक्षा यन्त्रों द्वारा भी की जाने की बात कही है। रत्नों का गुरुत्व आपेक्षिक घनत्व कठोरता आदि सब बातें यन्त्रों द्वारा जांच करने की विधियों का वर्णन किया है। जिससे इन बातों का ज्ञान सूक्ष्म रूप से किया जा सकता है परन्तु भारत में बिना यन्त्रों के भी केवल नेत्रों द्वारा परीक्षण सुदीर्घ काल से करते चले आ रहे हैं। वह लोग भी यही बातें तोल, गुरुत्व, घनत्व कठोरता आदि की जांच हाथ रत्न ज्ञान
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