Book Title: Ratnagyan Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri Publisher: Shiv Ratna Kendra HaridwarPage 67
________________ ॐ नमः शिवाय लहसुनिया संस्कृत में इसका नाम सूत्रमणिया वैडूर्य कहते हैं। इसको बिड़लाक्ष भी कहा जाता है। बिल्ली की आँख के समान इसका रूप भी होता है। इसलिये पाश्चात्य विद्वानों ने इसे बिल्ली की आंख (Cat's Eye) भी कहा है। वैडूर्य का रंग पीत, आभायुक्त होता है । और सफेद भी पाया जाता है। यदि सूत लकीर के समान होवे, फैला हुआ हो तो वह चद्दर कहलाती है । चादर या सूत रहित भी लहसुनिया होता है। इसके रंग : पीत आभायुक्त सफेद (Cream Clour) रंग होता है। श्याम आभायुक्त, नीले और हरे रंग का मिश्रण भी अल्प मात्रा में पाया जाता है। एक व्याघ्र नेत्र (Tiger's Eye) के समान रंग का सूत मिश्रित श्याम होता है और इसी रंग में गहरे रंग का होता है। इसे दरियाई लहसुनिया कहा जाता है। यह कई रंग का होता है। वैड्र्य में मुख्यतया अल्युमिनियम तथा अल्प मात्रा में अयम और क्रोमियम तत्त्व होते हैं। उत्पत्ति: वर्मा, सीलोन तथा भारत (त्रिवेन्द्रम) में पाया जाता है। निकालते समय यह कंकड़ की शक्ल में होता है। इसको एक तरफ से तराश कर सफाई की जाती है। इसको साफ करने वाली ओर से हिलाने पर एक लकीर दिखाई देती है, इसी को डोरा कहते हैं। रत्न ज्ञान [५५] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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