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जिन पर्वतों में यह रत्न पैदा होता है वहाँ से पानी से कट कर उसके प्रवाह के साथ नदियों में बहकर भी आता है। जल की कमी होने पर नदी के रेत से छानकर भी इस रत्न को निकाला जाता है । दक्षिण भारत में नदियों के किनारे खेतों में भी लहसुनिया मिलता है। मध्य प्रदेश में भी इसकी नई खदान पाई गई है । इस खदान से लहसुनिया अधिक मात्रा में तथा उच्चश्रेणी का निकाला जा रहा है।
लहसुनिया केतु ग्रह का रत्न है। केतु ग्रह के प्रकोप से बचने के लिए लहसुनिया पहना चाहिए । यह रत्न काफी प्रभावी माना जाता है । राहू को दशा को भी यह रत्न अनुकुल रखता है। राहू, केतु तथा शनि की दशा में भी धारण किया जा सकता है।
इसके धारण से शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। दिमागी परेशानियाँ दूर होती है। लहसुनिया अनुकुल आ जावे तो शीघ्र ही मालामाल बना देता है।
इस रत्न को चांदो या पंचधातु की अंगूठी में जड़वा लेना चाहिये। बुधवार या शनिवार के दिन प्रातः सूर्य उदय होने से पहले शद्ध जल या गंगाजल में धोकर अपने इष्टदेव के चित्र, मूर्ति आदि के चरणों से स्पर्शकर सीधे हाथ की बीच वाली अंगुली में धारण कर लेना चाहिये। विश्वासपूर्वक धारण की हुई वस्तु सफलता अवश्य देती है। आयुर्वेद :
लहसुनिया की पिस्टी या भस्मी आयुर्वेद चिकित्सा में काम आती है। इससे वायुशूल, कृमि, रोग, बवासीर, कफज्वर, मुखगन्ध आदि रोग नष्ट हो जाते हैं।
रत्न ज्ञान
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