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निजा पारण विधि एवं लाभ शिव रत्न केन्द्र (रजि.) हरिद्वार (यू.पी],
०/- रुपये शिव रत्न केन्द्र (रजि.) : 6965 सन्तल सराय, तीसरी मजिल, गऊघाट, हरिद्वार
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सिनल
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PARAN
शिव वत्न केन्द्र (रजि)
शिववत्न केन्द्र (जि, इधन है
इधर है।
यहाँ से ठीक २७ सीढ़ीयाँ चढ़ कर आप स्वयं शिव रत्न केन्द्र
में पहुंच जायेगे। सावधान:
"बर्तन की दुकान बर्तन की दुकान आदय शक्ति रत्न केन्द्र इस दुकान से शिव रत्न केन्ट (रजि) शिव रत्न केन्द्र (रजि.) जाने का रास्ता का कोई सम्बन्ध नही है।
गऊघाट प्लेटफार्म सन्तल सराय बिल्डिंग के नीचे व पहली मंजिल पर हमारी कोई भी दुकान नहीं है। सन्तल सराय बिल्डिंग के अन्दर आकर दाहिने हाथ पर बने जीने से २७ सीड़ियां चढ़ने पर आप स्वयं 'शिव रत्न केन्द्र' पहुँच जायेंगे। कुछ लोग आपको हमारी दुकान के विषय में विभिन्न तरह की बातों से गुमराह करने को कोशिश करेंगे। कृपया बहकावे में न आकर उपरोक्त बने नक्शे के अनसार तक पहुंचे।
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ॐ नमः शिवाय 20/12/02 रत्न-ज्ञान [धारण-विधि एवं लाभ ] (श्री प्रकाशेश्वर महादेव के चरणों में सादर सर्पित)
प्रकाशक : शिव रत्न केन्द्र (रजि०)
लेखक एवं स्वामी : योगीराज मूलचन्द रखती
पुस्तक मिलने का एकमात्र स्थान : शिव रत्न केन्द्र (रजि०) सन्तल सराय, ऊपरी मंजिल, गऊघाट हरिद्वार
पो० बॉ० नं०-५५ फोन : ६६६५
प्रथम संस्करण: १६८२
द्वितीय संस्करण : १९८४ तृतीय संस्करण : १९८६
चतुर्थ संस्करण : १९८७ पंचम संस्करण: १९८८
षष्टम् संस्करण : १९८६ सप्तम् संस्करण : १९६०
अष्टम् संस्करण ! १९६१ नोट-इस पुस्तक के किसी भी भाग की नकल करना कानूनी जुर्म है
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10532) जगद्गुरु शङ्कराचार्य श्री स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी
काँची कामकोटिपीठ
हरिद्वार आने वाले 'शिव रत्न संस्थान' को भी अपनी चरण राज से पवित्र किया। रुद्राक्ष, विभिन्न प्रकार की मालाओं तथा रत्न, शङ्ख और नर्वदेश्वर आदि से भरा पूरा शोरूम देखकर प्रसन्न हुए। अत्यधिक प्रसन्नता तो उन्हें तब हुई जब देखा भगवान शिव की संस्थान में प्रतिदिन विधिपूर्वक पूजा होती है। तब। गद्-गद् वाणी से बोले-शिव भक्त रुद्राक्ष तो भगवान् रुद्र का ही स्वरूप है। महादेव होने के कारण स्वयं तो त्यागी हैं, परन्तु रत्नों को देवताओं में बांट दिया। रत्नों में देवी शक्ति है। इनके द्वारा मनुष्यों की सेवा करो, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।
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भगवान् श्री शिव प्रकाशेश्वर महादेव
भगवान तो सदा ही प्राणी मात्र के हृदय में विराजे हुए हैं। परन्तु जब तक ज्ञान रूपी नेत्रों से देख नहीं लेता, तब तक उनके आश्रित नहीं हो पाता । जब से मैंने भगवान् प्रकाशेश्वर को समझा और देखा, सभी प्रकार के पाप तापों का नाश हो गया। भगवान् प्रकाशेश्वर 'शिव रत्न केन्द्र' के तो इष्टदेव हैं। उनकी कृपा से 'शिव रत्न संस्थान' सदा उन्नति के पथ पर अग्रसर हैं।
श्री प्रकाशेश्वर महादेव की जय !!
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दण्डी स्वामी हँसानन्द जी महाराज गङ्गोत्री, चमोली गढ़वाल मण्डल (उत्तराखण्ड)
का आदेश है— भारत में रत्नों का ज्ञान अनादिकाल से चला आ रहा है । शुक्रनीति, अग्निपुराण आदि ग्रन्थों में भी रत्नों का वर्णन आता है । आयुर्वेद ग्रन्थों में भी रत्नों के द्वारा उपचार बताया गया है दूसरों की हित कामना से किये हुए रत्नों के विक्रय से भगवान् भी प्रसन्न होकर सहायक होंगे ।
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॥ विषय-सूची ॥
पृष्ठ संख्या
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क्रम संख्या ॐ नमः शिवाय शिव स्तुति उद्देश्य रत्नों के सम्बन्ध में कुछ निवेदन रत्नों की उत्पत्ति रत्नों की पहचान हीरा माणिक्य
मोती
मूगा
पन्ना पुखराज नीलम गोमेद लहसुनिया उपरत्न मूल्य सूची
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प्राचीन वस्तुओं की उपेक्षा न करें !
आपके पास पुराने नगनगीने, अनेक प्रकार के पत्थर (ज्वाहरात) भले ही वह टूटे-फूटे भी है अथवा हीरा, मोती, पन्ना पुखराज, माणिक, मूंगा या मंगे की मालायें । नीलम, गोमेद, लहसुनिया, रत्न, उपरत्न प्राचीन टूटे-फूटे पत्थर, तश्तरीनुमा प्लेट टाईप की चपड़ियां जो कि आपने अनुपयोगी करके घर में डाले हुए हैं, आप उन्हे लाकर हमें दिखायें । हम उनका मूल्याङ्कन कर देंगे । आप उनको बेचना चाहें तो हम खरीद भी सकते हैं। यदि आपको मूल्य में धोखा मालूम हो तो आप अच्छे से अच्छे पारखी से परखवाकर और दस जगह मूल्याङ्कन कराके हमारे हाथ अपनी वस्तुयें बेचें ।
ऊपर लिखी वस्तुओं के अलावा टूटे-फूटे आभूषण और पुराने समय के प्याले, कटोरे, गिलास, प्राचीन समय के पत्थर के झाड़फानूस, तख्तियों की अवश्य ही हमारे यहां जांच करायें। क्या मालूम उस पत्थर से ही आपका भाग्य उदय हो जाये ! जांच कराने का शुल्क नहीं लिया जायेगा ।
अधिक जानकारी हेतु मिलें या लिखेंयोगीराज मूलचन्द खत्री
एवम्
श्रीमती सुशीला खत्री शिव रत्न केन्द्र (रजि0) सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल, गऊघाट, हरिद्वार
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काम
शिव स्तुति
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्माङ्गरागाय महेश्वराय । नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय,
तस्मै 'न' काराय नमः शिवायः॥ जिनके कण्ठ में साँपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अङ्गराग (अनुलेपन्) है, दिशायें ही जिनका वस्त्र है। (अर्थात् जो नग्न है), उन शुद्ध अविनाशी महेश्वर 'न' का स्वरूप शिव को नमस्कार है ॥१॥
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचिताय, नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय । मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय,
तस्मै 'म' काराय नमः शिवाय ॥ गङ्गाजल और चन्दन से जिनकी अर्चा हुई है, मन्दार-पुष्प तथा अन्याय कुसुमों से जिनकी सुन्दर पूजा हुई है, उन नन्दी के अधिपति प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर 'म' का स्वरूप शिव को नमस्कार है ॥२॥
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शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द, सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय । श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शिकाराय नमः शिवाय ॥
जो कल्याण स्वरूप है, पार्वती जी के मुख कमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिये जो सूर्यस्वरूप हैं, जो दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिन्ह है, उन शोभाशाली नीलकण्ठ 'शि' का स्वरूप शिव को नमस्कार है ॥३॥ वशिष्ठकुम्भोदवगौतमार्य, मुनिन्द्रदेवाचितशेखराय । चन्द्रार्कवेश्वानरलोचनाय, तस्मै 'व' काराय नमः शिवाय ॥
वसिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि श्रेष्ठ मुनियों ने तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की पूजा की है, चन्द्रमा सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र है, उन 'व' का स्वरूप शिव को नमस्कार है॥४
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय । दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै 'य' काराय नमः शिवाय ॥
जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है,जो जटाधारी है, जिनके हाथ में पिनाक है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव 'व' का स्वरूप शिव को नमस्कार है ।।५॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
जो शिव के समीप इस पवित्र पश्चाक्षर का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता और वहाँ शिवजी के साथ आनन्दित होता है ।।६।। [२]
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उद्देश्य सम्पूर्ण संसार में आध्यात्मवादी विचारक साधकों को छोड़ कर प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी अंश में दुःखी है कोई शारीरिक रोगों से पीड़ित है, किसी को मानसिक कष्ट है तो कोई निर्धनता से दुःखी है दु:खी मनुष्य अपने दु:ख मिटाने का उपाय साधु-सन्तों से पूछते हैं। भविष्य वेत्ता, ज्योतिषाचार्यो योगीराज मलचन्द खत्री के पास पहुँचते हैं। ये इन दुःखी लोगों को अनेक प्रकार के जप, यज्ञ, अनुष्ठान बताते हैं। ग्रहों के प्रकोप से बचने के लिये अष्ठधातु की अंगूठियाँ और रत्न धारण करने को कहते हैं।
ग्रहों के प्रकोप से बचने के लिये भारत में रत्न धारण करने का प्रचलन अनादि काल से चला आ रहा है और वह लाभदायक भी सिद्ध हुआ है परन्तु रत्नों की पहचान प्रत्येक व्यक्ति नहीं जान सकता । रत्न की पहचान तो जौहरी हो जान सकता है।
पश्चात्य विद्वानों द्वारा रत्नों की परीक्षा यन्त्रों द्वारा भी की जाने की बात कही है। रत्नों का गुरुत्व आपेक्षिक घनत्व कठोरता आदि सब बातें यन्त्रों द्वारा जांच करने की विधियों का वर्णन किया है। जिससे इन बातों का ज्ञान सूक्ष्म रूप से किया जा सकता है परन्तु भारत में बिना यन्त्रों के भी केवल नेत्रों द्वारा परीक्षण सुदीर्घ काल से करते चले आ रहे हैं। वह लोग भी यही बातें तोल, गुरुत्व, घनत्व कठोरता आदि की जांच हाथ रत्न ज्ञान
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में लेकर नेत्रों से देखकर बता दिया करते थे और आज भी बता देते है। अभ्यस्त व्यक्तियों द्वारा बताने पर पूर्णतया सहो सिद्ध होती है। इन वैज्ञानिक तथा यान्त्रिक युग में भी रत्न की परीक्षा नेत्रों द्वारा किया जाना नितान्त आवश्यक है। यन्त्र तो नेत्र को सहायता मात्र कर सकता है। पत्थर मे क्या दोष है, क्या किस्म है, क्या गुण है, सब कुछ यन्त्र नहीं बता सकता है। आज के समाज में बेईमानी, धोखा, ब्लैक मिलावट साधारण बात की गई है। किसी प्रकार से अर्थ की प्राप्ति हो, उद्देश्य रह गया है। आप विचार कीजिये, कोई व्यक्ति अपना दुःख दूर करने के लिये रत्न धारण करने का विचार करके बाजार में पहुंचे और उसे असली वस्तु न मिले तो उसे पैसा गवाने का दुःख और भी बढ़ जायेगा। रत्न (जवाहरात) के खरीदार धोखे से बचें इसलिए हमने यह पुस्तिका तैयार की, इसको पढ़कर बहुत से रत्न प्रेमी रत्नों के सम्बन्ध में जानकारी हासिल कर सकेंगे। इस पुस्तिका में रत्नों की उत्पत्ति बनाने को विधि तथा असली-नकली की संकेत मात्र पहचान लिखी है।
आज लगभग मेरा ३२ वर्ष का अनुभव है कि जिसको मैंने जो सुझाव सहित पत्थर दिया है। उस पत्थर या रत्न ने उसे लाभ ही पहुँचाया। जो मुझसे पत्थर लेकर गया उसे अपने भाग्य की उन्नति ही दिखाई दी है। इसी कारण हरिद्वार तीर्थ में देश-विदेश से आने वालों का विश्वास मेरे प्रति बढ़ता ही रहा है। इसी प्रकार से आप लोगों का प्रेम और विश्वास बढ़ता ही रहे। आप सभी का मंगलमय जीवन हो, तथा मुझे आपसे प्रेम और आशीर्वाद सदा ही मिलता रहे, यही शङ्कर भोले से मेरी प्रार्थना है। क्षमा एवं याचना
इस पुस्तक से आप लाभ उठा सके, मेरी यही भावना है। ४]
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परन्तु प्रत्येक व्यक्ति किसी भी कार्य का सर्वज्ञ नहीं हो सकता । इसलिये पुस्तक में अनेक प्रकार की त्रुटियां भी हो सकती हैं । इसके लिये मैं बार-बार क्षमा प्रार्थी हूँ। तथा रत्नों के सम्बन्ध में विशेष जानकारी रखने वालों से नम्र निवेदन है कि इस पुस्तक की त्रुटियों को हम तक अरश्य ही पहुँचायें । जिससे हम इसके अगले अंक में सुधार कर सकें । और यदि इसे पढ़कर हमारे पास पहुँच पाये, तो आपकी राशि के अनुसार कौन सा रत्न धारण करना चाहिये सही परामर्श दिया जायेगा । रत्न असली होने की गारण्टी क्वालिटी के अनुसार मूल्य लिया जायेगा । जिनमें लिखा होगा -
नकली साबित करने वाले को ५०,००० रुपये नगद इनाम ! सफल न होने पर छः माह तक वापस ! !
योगीराज मूलचन्द खत्री
एवम्
श्रीमती सुशीला खत्री शिव रत्न केन्द्र [रजि० ] सन्तल सराय, ऊपरी मंजिल, गऊघाट हरिद्वार
अँगूठियाँ
हमारे महां राशि के अनुसार सुन्दर व आकर्षक रत्न जड़ित अंगूठियाँ -- सोना, चाँदी, ताँबा या अष्टधातु में कुशल कारीगरों द्वारा १०-१५ मिनट में तैयार करके दे दी जाती हैं ।
इसके असली होने की गारन्टी हमारी होती है ।
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ॐ नमः शिवाय
रत्नों के सम्बन्ध में
कुछ निवेदन
योगीराज मूलचन्द खत्री ग्रहों का प्रभाव___संसार के प्रत्येक प्राणी पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता है। इस बात को सभी मानते हैं, केवल भारत में ही नहीं, बल्कि यूरोप और अमेरिका में भी भाग्य और ग्रहों के मानने वाले इस समय भी करोड़ों सुशिक्षित व्यक्ति मौजूद हैं। इन देशों के व्यक्ति भी सदा इस बात के लिये सचेष्ट रहते हैं कि अपने आपका अशुभ ग्रहों से बचायें। जो लोग ऐसा कहे कि ग्रहों का असर पृथ्वी पर नहीं पड़ता, तो सूर्य की गरमो से खेत और फल पकते हैं, चन्द्रमा के प्रभाव से जड़ी-बूटियाँ स्वरस होती हैं। समुद्र में ज्वार भाटा का आना-जाना चन्द्र किरणों के प्रभाव का ही फल है। शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा ज्यों-ज्यों बढ़ता जाता है; समुद्र का जल उतना ही ऊपर उठता जाता है। जल का ऊपर उठना चन्द्रमा का आकर्षण ही है। चन्द्र ग्रह पृथ्वी के अत्यधिक निकट है इसलिये यह प्रभाव प्रत्यक्ष देखने में आते हैं। अन्य ग्रह पृथ्वी से दूर हैं। उनका प्रभाव धोमीगति से होता है। इसलिये चर्म चक्षुओं से उसी क्षण देखने में नही आती।
यों तो अनन्त कोटि नक्षत्रों का दर्शन प्रति दिवस करते हो
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रहते हैं । किन्तु इन सम्पूर्ण नक्षत्रों को ग्रह नहीं कह सकते । हमारी इस पृथ्वी से जिन नक्षत्रों का निकट सम्बन्ध है । वे ही नक्षत्र पृथ्वी के ग्रह होते हैं । अत्यधिक दूरी होने के कारण जिन नक्षत्रों का पृथ्वी पर प्रभाव नहीं पड़ता वे पृथ्वी के नक्षत्र नहीं है । अन्य नक्षत्रों का दूसरे लोकों पर प्रभाव पड़ता होगा, वे नक्षत्र उन लोकों के लिये नक्षत्र हो सकते हैं ।
ग्रह प्रकोप भी विज्ञान है
चन्द्रमा जल तत्व का स्वामी भी है । चन्द्रमा की उत्पत्ति भी जल से बतायी जाती है । जलीय भाग पर इसका प्रभाव अवश्य ही पड़ता है । मनुष्य के शरीर में जलीय भाग ७५ प्रतिशत है । मनुष्य शरीर पर इसका प्रभाव अत्यधिक पड़ता है। सुनने में आता है कि डूबकर आत्मघात की घटना पूर्णिमा के दिन ही अधिक होती हैं । इसमें चन्द्रमा के साथ मंगल ग्रह का भी सम्बन्ध है | क्योंकि मंगल ग्रह पृथ्वी तत्व का स्वामी है । मानव शरीर में दोनों हा तत्त्व मौजूद हैं। मनुष्य शरीर से चन्द्रमा का मन से सम्बन्ध है और ठोस पदार्थ (हाड़, माँस, मज्जा आदि) से मंगल का सम्बन्ध है ।
ग्रहों का रंग
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भगवान के बनाये हुए विश्व में अनेक ब्रह्माण्ड हैं । अनेक ब्रह्माण्डों की सत्ता विज्ञान भी मान रहा है । सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुद्ध गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु ब्रह्माण्डों में है । जो कि एक दूसरे के आकर्षण से यथास्थान स्थित हैं । यह ब्रह्माण्ड अथवा ग्रह रंगों से युक्त है । जैसे पृथ्वी का रंग पीला बताया गया है । उसी प्रकार सूर्य का रंग जपाकुसुम के समान रक्त वर्ण है । सिन्दूर के समान उनके आभूषण और वस्त्र हैं। दूध के समान श्वेत वर्ण चन्द्रमा का है । मंगल का रंग अग्नि के समान रक्त है । बुद्ध ग्रह का रंग पीला
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| बृहस्पति का रंग भी पीला है। शुक्र श्वेत वर्ण है। शनि का रंग काला है। राहु का रंग भी काला केतु धुएँ के समान है । मनुष्य के शरीर में योग साधना के अनुसार चक्र होते हैं चक्र भी रंगों से युक्त माने गये हैं । मनुष्य शरीर रंगों से घिरा हुआ है चिकित्सा विज्ञान में भी रंगों का प्रभाव देखने में आता है । अनेक रंगों के बोतलों में जल भरकर तूयं तापी बनाते हैं फिर कई प्रकार के रोगों का उस जल से उपचार किया जाता है ।
रत्न धारण भी विज्ञान है
भारत के मनीषियों ने रत्न विज्ञान की खोज को भी । इसका सम्बन्ध ग्रहों से है और रंगों से भी है । ग्रह नौ हैं जो ऊपर बताये गये हैं और मुख्य रत्न भी नौ हैं ( हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, पुखराज, नीलम, लहसुनिया, गोमेद, मूंगा) । रत्नों के द्वारा मनुष्य को रंगों से होने वाला लाभ भी प्राप्त होता है । आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार रत्नों की रसायन या भस्मो बनाकर अनेक रोगों का उपचार किया जाता है । अतः मनुष्य शरीर पर रत्नों के स्पर्श और घर्षण का भी प्रभाव होता ही है ।
ज्योतिष विद्या से भी भारत में अनेक प्रकार की खोज की गयी ज्योतिष विद्या सत्य है । इसका जीता जागता प्रमाण है, सूर्य और चन्द्र ग्रहण पञ्चागों में दर्शकों वर्ष पूर्व ही भविष्य में होने वाले ग्रहण को लिख दिया जाता है । मनुष्य के शरीर मन और ग्रह तथा रत्नों के सम्बन्ध पर भी ज्योतिष ने बहुत खोज की, फिर अनुभव किया। कोई रोग होता है तो उसकी औषधि भी होती है । ग्रहों का प्रकोप होगा तो उसका औषधि रत्न भी है । ग्रह आकाश में है, तो रत्न पृथ्वी पर है । ग्रह रंग वाले हैं तो रत्न भी रंगीन हैं मानव शरीर के रंग से इसका कैसे ताल मेल बैठाया जाये । ज्योतिष ने इसका निदान कर लिया और उपचार बतलाया ।
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मनुष्य के शरीर में जिस ग्रह प्रकोप से जिस रंग की कमी आ गई हो, उसकी पूर्ति करने के लिये उस राशि मालिक ग्रह के अनुसार रंग वाला नग धारण कराया जाये। जन्म के नाम से राशि बनती है। जन्म के नाम का पता न हो तो बोल-चाल के नाम से भी राशि की जानकारी हो जाती है। राशि जानने की विधि नाम के पहले अक्षर से जानी जाती है। जैसे मोहनसिंह में "म" प्रथम अक्षर है। सिंह राशि में (म, मु, मे, मो, टा, टी, टू, टे) अक्षर आते हैं। अतः मोहन की सिंह राशि बनी। सिंह राशि का स्वामी सर्य ग्रह है। इसी प्रकार सूरज सिंह राशि कुम्भ होगी। इस राशि का स्वामी शनि है। सूर्य वाले को माणिक, शनि वाले को नीलम की सलाह दी जायेगी।
विद्वानों की मान्यता है कि माणिक, मुक्ता, विद्म पन्ना, पुखराज, हीरा, नीलम, गोमेद और लहसुनिया इन प्रधान नवरत्नों की उत्पत्ति क्रमशः-सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुद्ध बृहस्पति, शुक्र, शनि राहु और केतु इन प्रधान नव ग्रहों की पृथ्वी के सतत् प्रधान स्थानों पर, सीधा (डायरेक्ट) किरणों के पड़ने के प्रभाव से उन ग्रहों में विद्यमान विशेष तत्त्वों से होती है। यही कारण है कि जैसा जिस ग्रह का रंग होता है उस ग्रह से सम्बन्धित रत्न को भी वैसा ही रंग प्राप्त होता है। इसी कारण इन रत्नों में उन ग्रहों की विशेष शक्ति सम्मिलित रहती है। जो कि समय पर रत्नादि के धारण या सेवन द्वारा मुख-दुःख आदि के होने से स्पष्टतया अनुभव में आती है। इससे यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि पृथ्वी में उत्पन्न होने वाले इन पत्थरों (रत्नों) का भी मानव जीवन में प्रभावशाली उपयोग होता है । यह उपयोग विज्ञान द्वारा भी समर्थित है। सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुंह काला___रत्नों में दैव्य शक्ति है। यह प्रत्यक्ष देखा गया है। रत्न सर्व रत्न ज्ञान
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साधारण को उपलब्ध भी नहीं है । हो भी जाये तो उस पर ठहरते नही हैं कोई भी माँटी के मोल ही उनसे ले लेता है। श्रीमान् सज्जनों के पास ही रत्न का निवास होता है। इन वस्तुओं के क्रेताओं को जो नकली वस्तुयें देकर धोखा देगा, वह बहुत ही बड़े पाप का भागो होगा। इस पाप का फल न मालूम भोले बाबा क्या देंगे? इसलिए इन वस्तुओं के क्रय-विक्रय में सदा सावधानी बरतनी चाहिए। धोखा देकर शीघ्र ही धनवान होकर वर्तमान में भले ही प्रसन्न हो जाये। परन्तु इसका परिणाम दुःख ही होगा। मेरी अपनी जानकारी में मैंने किसी को नकली वस्तु नहीं दी है। भविष्य के लिये भी भगवान शंकर से प्रार्थना है कि बुद्धि को सदा सचेत रखे, जिससे धोखा देकर पैसा कमाने की बात पैदा न हो। जिन्होंने बेईमानी से शीघ्र ही धनाड्य होने की बात सोची उनको बर्बाद होते भी इन आँखों ने देखा है। इसलिए पुनः प्रार्थना है भगवान शिव सदा सद्बुद्धि बनाये रखें। मेरा अनुभव :
__ इस पुस्तक से रत्न सम्बन्धी आपको काफी जानकारी मिलेगी। इसको पढ़कर अपनी कठिनाई को हल करने का उपय आप भी जान सकते हैं ग्रहों को प्रकोप न होने पर भी अपनी राशि के अनुसार रत्न धारण कर सकते हैं। वह आप को हानि नहीं पहुँचायेगा। लाभ ही होगा। — मैं अपने अनुभव के आधार पर निर्द्वन्दता से कह सकता हूँ कि मेरा भाग्य तो पत्थरों ने ही बदल दिया। किसी समय मैं एक छोटे शोकेश में नगे जड़ी अंगठियाँ घूम-घूमकर बेचा करता था। अंगठी बेचने को हरिद्वार से बाहर मेरठ आदि अन्य नगरों में भी जाना होता था। उन नगों की अंगूठियों से बढ़कर धीरे- २ मैं राशि के १० ]
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पत्थर बेचने लगा । भगवान भोले की कृपा से अब में पत्थरों से रत्न बेचने लगा |
अब में बाजार से बिल्कुल अलग सन्तल सराय ( मकान ) की तीसरी मञ्जिल शोरूम लेकर बैठा हुआ हूँ । इसी मञ्जिल पर मेरा निवास भी है । ग्राहक के रूप में भगवान् यहीं दर्शन देते रहते हैं । यह पत्थरों का प्रभाव और भोले शंकर की कृपा है । आपसे नम्र निवेदन है कि एक बार सन्तल सराय, ऊपरी मंजिल पर पहुँच कर अवश्य ही दर्शन दें ।
* शुद्ध शहद
चीनी खाने से अनेक रोग हो सकते हैं। चीनी से उत्तम तो स्वास्थ्य के लिए गुड़ है । परन्तु उसे भी देखने में सुन्दर बनाने के लिए अनेक प्रकार के कैमिकल डालकर दूषित कर दिया जाता है ।
अतः स्वास्थ्य लाभ के लिए जंगलों से एवं वन विभाग से ठेका लेकर विश्वासपात्र कार्यकत्ताओं के सामने निकला हुआ १०० प्रतिशत शुद्ध शहद का प्रयोग करें । मू० ४० रु० प्रति किलो
विनीत :योगीराज मूलचन्द खत्री
योगीराज मूलचन्द खत्री शिव रत्न केन्द्र (रजि०)
सन्तल सराय, ऊपरी मंजिल, गऊघाट, हरिद्वार
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ॐ नम: शिवाय
रत्नों की उत्पत्ति
प्रकृति के गर्भ में न मालूम क्या-क्या छीपा हुआ है । भूमि के ऊपर कहीं बर्फ पड़ा हुआ है, कहीं भिन्न-भिन्न पत्थरों के पहाड़ तो कहीं पर विभिन्न प्रकार की मिट्टी ने भूमि को ढका हुआ है । पृथ्वी के नीचे से गरम पानी निकल रहा है, उसी के निकट ठंडा जल भी है । किसी स्थान में भूमि तल को चीर कर घुँआ, राख, कोयले की वर्षा हो रही है । जिसको ज्वालामुखी कहते हैं और किसी जगह निरन्तर अग्नि की लपटें निकल रही हैं । जो वस्तु पृथ्वी से बाहर निकल आती है, उसे तो आँखें देख लेती हैं । और जो भूमि के अन्दर पड़ी हैं उसे हम जानते ही नहीं हैं। पृथ्वी में निरन्तर क्रिया भी चलती रहती है । जैसे शरीर के अन्दर रक्त का दौरा होता रहता है । पेट के अन्दर पाचन क्रिया हो रही है, परन्तु हम उसे अपनी आंख से देख नहीं पा रहे हैं। भूमि के अन्दर चलने वाली क्रिया से उसके अन्दर में पड़ी हुई वस्तुओं में भी परिवर्तन होता रहता है । अनेक प्रकार के पत्थर, कोयला आदि मूल्यवान जवाहरात के रूप में बदल जाते हैं ।
जिन्हें हम रत्न या जवाहरात कहते हैं उनमें से हीरा, पन्ना, गोमेद समतल भूमि की खदानों में पाये जाते हैं। नीलम, पुखराज हिमालय पर्वत की खादानों से प्राप्त होता है। लहसुनिया, माणिक नदियों या उसके किनारे के खेतों से मिल जाते हैं। मूंगा, मोती समुद्र से निकाले जाते हैं । इसी प्रकार इसके जो उपरत्न होते हैं, वह भी नदी, समुद्र, पर्वतीय या समतल भूमि की खदानों से निकलते हैं ।
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जिस समय यह रत्न खान या समुद्र से निकलते हैं, तब यह साधारण कंकड़,पत्थर की शक्ल में होते हैं । बेडोल दशा में किसी भी प्रकार की चमक से रहित होते हैं। विना चमक ओर बडोल होते हुए भो पारखी लोग इन्हें पहचान लेते हैं कि यह पत्थर कौनसा रत्न है और किस क्वालिटी का है। फिर भी इन रत्नों की सही पहचान इनके तरासने पर होती है। मशीनों पर ले जाकर इन बेडोल पत्थरों को तोड़ा जाता है। इसमें अनेक छोटे-बड़े टुकड़े हो जाते हैं। कारीगर लोग अधिक से अधिक बढ़ा अदद बनाने की कोशिश करते हैं। फिर भी कुछ टुकड़े हो जाते हैं । इन छोटे अददों को साफ सुथरा बनाया जाता है तथा सफाई का अन्तिम रूप (फिनिशिंग) किया जाता है। फिनिशिंग के बाद हा उनको चमक तथा क्वालिटी का सही ज्ञान होता है। एक कहावत है " बन्द मुट्ठी लाख की खुल जाय तो खाक की " अर्थात् पत्थरों को खान से निकालने पर तो लगता हैं काफी मूल्य की वस्तुयें निकल आयों, परन्तु तराशने पर उसमें से बहुत से टूट-फूट जाते हैं, चूरा हो जाता है। छोटे-छोटे अदद हो जाते हैं। इनकी चमक और क्वालिटी क्या है ? यह सब जानकारी होने के बाद इनका मूल्याङ्कन किया जाता है।
* विशेष-सूचना * विशेष जानकारी हेतु योगीराज मूलचन्द खत्री जी से मिलेंजो कि शिव रत्न केन्द्र सन्तल सराय, गऊघाट, ऊपरी मंजिल पर ही २४ घंटे मिलते हैं, नीचे के किसी भी रुद्राक्ष शोरूम पर नहीं मिलते हैं। विशेष मिलने का समय प्रातः ८ बजे से लेकर रात्रि ११ बजे तक अपने स्थान पर ही मिलते हैं। आने वाले सभी प्रेमीजन से बातचीत करते हैं और विशेष सलाह देते रहते हैं। रत्न ज्ञान
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ॐ नमः शिवाय
रत्नों की पहचान
"हीरे की परख तो जौहरी ही जाने" कहावत प्राचीनकाल से चली आ रही है। जवाहरात भूमि के गर्भ में तैयार होते हैं। भूमि को खोदकर खाद्यानों से निकाले जाते हैं। प्रकृति के गर्भ में वृद्धि पाने वाली कोई भी वस्तु एक समान नहीं हुआ करती। क्योंकि कोई वस्तु अपने मल को पकड़े रहने तक वृद्धि की ओर ही अग्रसर रहती है प्रकृति के अन्दर एक प्रकार की ही अनेक वस्तु होने पर भो सबकी आयु काल अलग-अलग है। जो पत्थर आदि वृद्धि की ओर हैं, उनकी आयु के हिसाब से भिन्नभिन्न प्रकार के जोड़ बनते चले जाते हैं। जब हम गड़े हुए पत्थरों को जिनको (जवाहरात कहते हैं) देखेंगे तो उसमें कुछ दाग-धब्बे या धारी दिखायी देगी। उन चिन्हों को देखकर रत्न ज्ञान से अनभिज्ञ व्यक्ति उसे नकली समझेगा। क्योंकि उनके सोचने का तरीका तो होगा कि इतनी मूल्यवान वस्तु तो अवश्य ही साफ-सुथरी चमकदार ही होनी चाहिये। अपने इन विचारों में डूबा हुआ व्यक्ति रत्न जैसा बने हुए कांच को असली मान बैठता है और अपनी इस सोच के आधार पर ही ठगा जाता है इसीलिये यह कहावत बनी
"हीरे की परख तो जौहरी हो जाने" वर्तमान युग तो वैज्ञानिक युग है। सभी प्रकार की टेस्टिग मशीनें बन गयी हैं। देश के कुछ नगरों में लगायी गई हैं। परन्तु [१४]
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बहुत ही कम तादाद में है । जवाहरात के व्यापारी लगभग प्रत्येक नगर में होते हैं। सभी नगरों में टेस्टिंग मशीनों पर पहुँचना बहुत ही कठिन है | यदि आप जाँच कराने मशीन तक पहुँच भी जायें तो वह पत्थर खाद्यान से निकला हुआ असली है या कांच से बना हुआ नकली है, यही बता सकेगी, परन्तु रत्न और उपरत्न सैकड़ों को गिनती में है उसका नाम तो मशीन नहीं बता सकेगी ।
पहले समय के आयुर्वेदिक चिकित्सक रोग का निदान नाड़ी ज्ञान से करते थे, अब एलोपैथिक वालों की देखा देख वैद्य भी रोग का निदान यन्त्रों से करने लगे हैं । इसलिये नाड़ी ज्ञान प्रायः लुप्त होता चला जा रहा है । आज के वैदिक पढ़े हुए तो उस नाड़ी ज्ञान को ही नकार रहे हैं, कह रहे हैं- नाड़ी को घीमी, मन्द या तीव्र गति से रोग नहीं जाना जाता था । मरीज से पूछ-पूछ कर अनुमान से ही रोग का पता पुराने लोग किया करते थे । इसी प्रकार आज रत्न तो परख करने वाले भी प्रायः लुप्त होते चले जा रहे हैं। पूरे देश में ही कुछ गिने-चुने लोग रह गये हैं । नये विक्रेताओं को अपने पर पूरा भरोसा नहीं है । वह स्वयं भी मशीनों पर निर्भर हैं। मशीन हर जगह उपलब्ध नहीं है । ऐसी दशा में नये पारखी जो कुछ बतायेंगे वह क्या होगा ? आप स्वयं विचार कर देखें ! जो स्वयं अन्धेरे में है, वह दूसरों को प्रकाश में कैसे ले जायेंगे | आज के समय में तो नकल भी भरमार है । प्रत्येक वस्तु की नकल बनाकर मनुष्य रातों-रात करोड़पति या अरबों का मालिक बनने की होड़ में दौड़ा जा रहा है ।
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जवाहरात के सम्बन्ध में भी यही बात लागू है । काँच तथा कैमिकल के एक-से-एक अच्छे नग बनाकर तैयार किये जा रहे हैं । उनके ऊपर सुन्दर, आकर्षक पॉलिश भी दिखाई देती है । इस प्रकार के नगों को बेचने वालों के पास बातें भी बड़ी लुभावनी होती हैं ।
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कभी-कभी तो ऐसे विक्रेता अपनी कुछ मजबूरियाँ बताकर सस्ता देने की बात भी कहते हैं। क्रेता उसको मजबूरी की बात सुनकर विश्वास कर लेता है और उस रत्न को अमल्य समझकर कम मल्य में प्राप्त हआ मान बैठता है। जब तक उस रत्न को देखकर प्रसन्न भी होता रहता है, जब तक कि कोई उसके विश्वास का पारखी न मिले । परन्तु जब उसे नकली होने का विश्वास हो जाये तब अपनी ना समझो पर पश्चाताप ही करता है।
रत्नों के सम्बन्ध में कहा जाता है कि इनमें देवी शक्तियों का प्रभाव भी होता है। इस प्रकार की वस्तु को कोई विक्रेता धोखा देकर बेचता है तो वह पैसा उसे भलीभूत भी नहीं होगा। इस प्रकार के विक्रेताओं को कुछ ही दिनों में झोली डण्डा उठाकर भागते ही देखा है या फर्मो के नाम बदलते रहते हैं। इससे क्रेता को यह शिक्षा लेनी चाहिये। जो पुराने समय से एक ही नाम से दुकान और एक ही विक्रेता बैठता हो उसी से रत्नों के सम्बन्ध में परामर्श करें और खरीदें क्योंकि आपको दुबारा आने पर भो वह मिल सकेगा।
निवेदकयोगीराज मूलचन्द खत्री शिव रत्न केन्द्र रजि०]
सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल
गऊघाट हरिद्वार-२४६४०१ नोट-योगीराज मूलचन्द खत्री सन्तल सराय ऊपर दूसरी मंजिल
पर ही मिलते हैं। नीचे किसी दुकान पर नहीं बैठते कृपया
ऊपर ही पधारने का कष्ट करें। रत्न ज्ञान
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फुल साईज ४५०/- मीडियम साईज २५०/छोटा साईज १२५/
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Enternational
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हर प्रकार की मालायें शिव रत्न केन्द्र' संस्थान में विशेष पर्व त्यौहार एवं ग्रहों के अवसर पर मालायें संस्कारित की
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ॐ नमः शिवाय
हीरा
हीरे को संस्कृत भाषा में वज्र, फारसी में अल्मास और अंग्रेजी में इसे डायमण्ड (Diamond) कहते हैं ।
वर्तमान युग में हीरे का स्थान रत्नों में सर्वोपरि है । विशेषता यह है कि यह सबसे अधिक चमकदार होता है। शरीर के पसीने से इसकी चमक खराब नहीं होती। अन्य मोती आदि खराब हो जाते हैं।
सभो रत्नों से अधिक कठोर हीरा होता है। इसकी उत्तपत्ति के सम्बन्ध में बताया जाता है कि हीरा कोयले से बनता है पृथ्वी तल में सदा परिवर्तन होता रहता है। जिसे हम देख नहीं पाते। मिट्टी की अनेक किस्में होती हैं। चिकनी मिट्टी बनने के बाद उस में कंकड़ पैदा होता है। इसी तरह किसी प्रकार की मिट्टी से पत्थर और पत्थर से कोयला बनता है। यह कठोर कोयला ही पृथ्वी में पडे-पडे कभी हीरे का रूप धारण कर लेता है। कोयले से हीरा बनने को पृथ्वीतल में होने वाली प्रक्रिया में लाखों वर्ष लग जाते हैं। इसकी उत्पत्ति विशुद्ध कार्बन परमाणओं पर एक विशिष्ट मानक तापक्रम पर भारी दबाव पड़ने से होती है। (कोयले से उत्पत्ति होने के कारण हीरे के अन्दर कुछ कालिमा लिये हुये भी धारियां भी होती हैं) हीरा कठोर होने के कारण किसी अन्य धातु से खुरचा नहीं जा सकता। परन्तु अपनी कठोरता के कारण टूट भो जल्दो जाता है। हीरे में समान्तर (तल) तह बनी होती है । उन तलों से यह चोरा जाता है। होरा कठोर होने के कारण किसी अन्य धातु से इसे काटा नहीं जा सकता। सर्वप्रथक भारतीय रत्न [१८]
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निर्माताओं ने ही हीरे के टुकड़े से हीरे को घिसकर अच्छी बनावट के नग बनाने की पद्धति का आविष्कार किया था। आज उसका ही विकसित रूप बेल्जियम का बना हुआ ब्रिलियन्ट-कट (Brliliant-cut) के नाम से प्रसिद्ध है।
हीरा पृथ्वीतल में खानों को खोदकर निकाला जाता है। खानों (खदानों) से निकाल कर विभिन्न आकारों में इसे काटा और तराशा जाता है इसके पश्चात हीरे पर पालिश की जाती है। हीरे की कटिंग और पालिश के लिए वेल्जियम का नाम सर्वोपरि है। वर्तमान समय में यहाँ का हीरा अपनी विशिष्टता के लिये उत्तम माना है। वेल्जियम का हीरा आठ और बारह पहुलों में मिलता है। भारत में भी हीरे की खान हैं। यहाँ का हीरा आठ तिकोनी पहलों में बनाया जाता है। भूतकाल तो भारत में हीरे का प्रसिद्ध इतिहास रहा है विश्व विख्यात कोहिनर हीरा भारत में ही पैदा हुआ था। उस हीरे को लगभग ५५०० वर्ष पूर्व किसी राजा ने धर्मराज युधिष्टर को भेंट किया था। समयानुसार वह अनेक राजा और बादशाहों पर होता हुआ राजा रणजीत सिंह के पास पहुँचा। उन्होंने ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों को दे दिया। उस हीरे के दो टकड़े कर एक बादशाह के ताज और एक सिहासन में लगा दिया गया है। लन्दन में आज भी मौजूद है। इस हीरे के समान बड़ा और मूल्यवान हीरा आज तक दूसरा पैदा नही हुआ है।
हीरा रत्नों का राजा है। खनिज पदार्थ में रत्न वे कहलाते हैं जिनमें तीन विशेष गुण हों-सुन्दरता, टिकाऊपन और दुर्बलता प्राप्त होने में। नेत्र के लिये सुन्दर लगना रत्न का पहला गुण है, परन्तु सुन्दर होने पर भी जो शीघ्र ही टूट-फूट जाये, बिखर रत्न ज्ञान
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जाये, वह वस्तु संग्रह करने योग्य नहीं है। पर सुन्दर भी हो और टिकाऊ भी हो और आसानी से सबको मिल जाये। सबको उपलब्ध होने के कारण वस्तु का महत्व नहीं रह जाता। उस वस्तु को संग्रह करने की इच्छा नहीं रह जाती। ___कौटिल्य के प्रसिद्ध अर्थशास्त्र ग्रन्थ में होरों का विस्तार से वर्णन किया है। उत्पत्ति स्थान के अनुसार हीरों के भिन्न-भिन्न नामों का रोचक वर्णन अर्थशास्त्र में मिलता है। कौटिल्य ने हीरे आदि प्रमुख रत्नों को राजा के कोष अथवा दूसरे शब्दों में राज्य का मुख्य आधार ही बताया है । वह लिखते हैं
आकरप्रभवः कोषः कोषद दण्ड प्रजायते । पृथवी कोषद दण्डाभ्यां प्राप्यते कोष भूषणा ।
राजा का कोष खनिजों से भरता है, कोष होगा तो सेना होगी और जब सेना होगी तो उसी के द्वारा राज्य की प्राप्ति तथा उसकी रक्षा होगी। हीरे का रंग
पीली आभा लिये हुए हीरा कम मिलता है। भूरे बादामी रंग का हीरा होता है। जिसका मिलना ही दुर्लभ है । लाल या गुलाबी रंग में भी हीरे मिलते हैं। आयुर्वेद में हीरा
रंग बताये गये हैं अत्यन्त सफेद, कमलासन, वनस्पति समान हरे रंग का, गेंदे के समान बसन्ती रंग का, और नीलकण्ठ पक्षी के कण्ठ के समान नीले रंग का, श्याम, तेलिया, पीतहरा। जो हीरा आठ कोण या धार बाला होता है अथवा छः कोण का तेज युक्त इन्द्र धनुष के समान प्रकाशवान वह पुरुष जाति के लिये लाभदायक होता है। [२०]
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जो हीरा लम्बा चपटा और गोल होता है वह स्त्री जाति के लिए गुणकारी है, हीरा रसायन के लिये उपयोगो तथा सर्व सिद्धियों का प्रदाता है । रोगों को नष्ट करने वाला बुढ़ापा और मृत्यु को दूर करने वाला है |
हीरे की भस्म आयु, पुष्टि, बल, वीर्य, शरीर का सुन्दर वर्ण तथा काम सुख की वृद्धि करता है। हीरा भस्मी के सेवन करने से सम्पूर्ण रोग नष्ट हो जाते हैं । ज्योतिष में होरा
शुक्र ग्रह के कुपित होने से व्यक्ति को इलोष्मिक पाण्डु, कामशक्ति दौर्बल्य, मूत्रकृच्छ तथा गुप्त यौन रोग उत्पन्न हो सकते है | शुक्रग्रह कारक रोगों से ग्रसित व्यक्ति को हीरा धारण करना चाहिये ।
हीरे के धारण से लाभ
हीरा शुक्रग्रह का रत्न होता है । जो लोग हीरे को धारण करते हैं उनके चेहरे पर हर समय खिली हुई मुस्कान रहती है, भुंझलाहट और परेशानी उनके निकट नहीं आती। जीवन की दिनचर्या व्यवस्थित रहती है । इसके धारण करने से दाम्पत्य जीवन सरस हो जाता है । शरीर के अनेक रोगों पर भी हीरे की पकड़ है । जो लोग शरीर से कमजोर हैं, उनके लिये औषधि का काम करता है । इसके धारण से शरीर में शान्ति आती है । मानसिक दुर्बलता समाप्त होती है। नवीन चेतना का संचार होता है । प्रभाव में वृद्धि होती है । जीवन में जो विशेषतायें होनी चाहिये अनायास मनुष्य में आने लगती हैं ।
धारण विधि
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हीरा कम से कम १० सेन्ट का पहनना चाहिये इससे अधिक वजन का धारण करना और भी उत्तम है । इस रत्न को चाँदी को
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करके अपने इष्टदेव का स्मरण करें तथा इष्टदेव के चरणस्पर्श कर धारण करना विशेष प्रभावशाली होता है ।
नोट - शिव रत्न केन्द्र में होरे की भस्मी भी मिलती है । हीरे के उपरत्न, स्फटिक की मालाएँ उपलब्ध है ।
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सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल ___ गऊघाट हरिद्वार-२४६४०१
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ॐ नमः शिवाय
माणिक्य
माणिक्य के नाम-संस्कृत में माणिक्य, पद्मराग, कुरुविन्द आदि हिन्दी में-माणिक, जमुनिया, उर्दू में-याकूत, अंग्रेजी में (Ruby) इत्यादि।
पौराणिक कथाओं के अनुसार-दैत्यराज बलि पर विजय प्राप्त करने के लिये विष्णु भगवान ने वामन अवतार धारण किया और उनके दर्प का चूर्ण किया। इस अवसर पर भगवान के चरणस्पर्श से बलि का सारा शरीर रत्नों का बन गया। तब देवराज इन्द्र ने उस पर वज्र का प्रहार किया। वज्र की चोट से बलि के शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो गये। उन रत्नमय टुकड़ों को भगवान शिव ने अपने त्रिशूल पर धारण कर लिया और उनमें नवग्रहों तथा बारह राशियों के प्रभुत्व का आधान करके पृथ्वी पर फेंक दिया। पृथ्वी पर गिराये गये इन खण्डों में से ही विविध रत्नों की खाने पृथ्वी के गर्भ में बन गयी। शङ्कर के द्वारा फेंके गये खण्डों में से ही ८४ प्रकार के रत्न (पत्थरों) और मणियों की उत्पत्ति हुई इसी प्रकार की पौराणिक अनेक कथाएँ हैं। माणिक्य आदि रत्नों के सम्बन्ध में पुराणों में अनेक कथाएँ लिखी गई हैं। परन्तु आज का वैज्ञानिक जोकि चन्द्रलोक की यात्रा कर चुका है। अन्तरिक्ष में राकेट स्टेशन बनाने का विचार कर रहा है इन कथाओं को जैस का तैसा नहीं मान पायेगा। वैज्ञानिकों ने तो रत्नों के प्राप्त होने की खान खोज ली है। रत्नों में भौतिक और रसायनिक बनावट कैसी है, रत्नों में कठोरता, गुरुत्व, वर्तनाङ्क कितना और क्या है रत्न ज्ञान
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वैवानिक बता रहा है। रत्नों के प्रत्यक्ष प्रभाव के परिणामों को देखकर उसके गुण दोषों पर विचार कर रहा है । माणिक की खाने :___इसकी खाने बर्मा, श्याम, लंका तथा काबुल में पायी जाती हैं । दक्षिण भारत में भी माणिक की खानें हैं। यह पत्थर गुम लाल होता है। जामुनोपन आभायुक्त होता है। कुछ-कुछ मैलापन लिये होता है, टुकड़ा अच्छा भी निकल जाता है, यहाँ का पत्थर पारदर्शी, अर्द्धपारदर्शी तथा गुम भी होता है, कुछ टुकड़े पान दार भी होते हैं । परन्तु माणिक सबसे मूल्यवान बर्मा की खानों से प्राप्त होता है। विशेषता :___माणिक का रुख सुर्सी पर होता है। असली की सतह पर देखेंगे तो सुर्यो मालूम होगी, यदि बगल से देखेंगे तो रंग में भिन्नता होगी, असली और नकली माणिक में क्या भेद है, साधारण व्यक्ति बाजार में जाकर माणिक्य को पहचान कर असली खरीद सके, कठिन काम है। जिसको असली नकली का ज्ञान नहीं वह दाग-दब्बे रहित चमक-दमक वाले को ही असली समझ कर धोखा खा जाता है माणिक्य की पहचान करना एक महत्त्वपूर्ण बात है, जो पुस्तक पढ़कर समझना अथवा पुस्तक में लिख देना बहुत कठिन है वर्षों के अनुभव के बाद इसकी पहचान का ज्ञान होता है। पुराने अनुभवी पारखी नजरों से देख कर ही इसके असलो और नकलीपन को जान लेते हैं। माणिक के रंग :
माणिक सूर्य का रत्न है । नवग्रहों में जैसे सूर्य प्रधान है वैसे ही नवरत्नों में माणिक मुख्य माना जाता है। माणिक वर्ण का रत्न ज्ञान
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लाल और जामुनीपन लिए होता है। लाल तुरमली को भी दुकानदार माणिक बताकर बेच देते हैं। वह सरासर धोखा है। उससे सावधान रहना चाहिए।
मुख्य रूप से माणिक्य अल्युमिनियम और ऑक्सीजन का यौगिक है। इसमें लाल रंग लोहे और क्रोमियक के अल्प मिश्रण से उत्पन्न होता है। खान से निकलने वाला माणिक :
बिना चमक, दूध, जैसा, एक नग में दो रंग, रंग में मलीनता, धूम्रवर्ण, काला या सफेद दाग आदि-आदि । सच्चे माणिक की पहचान :
माणिक में दूधक है और नीलिम भी होती है। रत्न में जो चीर होती है उसमे चमक नहीं होती। शीशे की चीर में चमक होती है। रत्न की चीर अप्राकृतिक नहीं होती अपितु वह टेडी-मेड़ी होती है । इमिटेशन में सोधी और साफ चीर होती है।
आयुर्वेद में माणिक :___माणिक की पिस्टी और भस्म दोनों खाने के काम में आती है। अनुमान भेद से पृथक्-पृथक् रोगों में उपयोगी होती है। माणिक रक्तवर्धक, वायुनाशक और उदर रोगों में लाभकारी होता है। ___ माणिक्य दीपक, वीर्यवर्धक, नेत्रों को हितकारी, त्रिदोष एवं क्षयनाशक है। यह त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) वमन, विष, कुष्ट क्षय तथा रक्त विकार आदि रोगों को नष्ट करता है, बुद्धिमानों को सेवनीय है।
औषधि के उपयोग में माणिक के उपरोक्त दोष नहीं देखे जाते हैं। रंग का अच्छा तथा पानीदार माणिक होना पर्याप्त है। रत्न ज्ञान
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ज्योतिष में माणिक :___ माणिक धारण करने से विष का प्रभाव नहीं होता। इसके प्रयोग से मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का उदय होता है तथा विशिष्ट दैविक भावों का उदय होता है। स्त्रियों को गर्भपात होने से रोकता है । माणिक प्रयोग से नेत्ररोग (रोहे मोतियाबिन्द) आदि में लाभ करता है।
जिन व्यक्तियों के जीवन में अस्थिरता अधिक होती है । आज यहां कल वहाँ । आज यह काम, कल दूसरा। माणिक रत्न उनके लिए अति उत्तम है। सिंह राशि के लिए राशि स्वामी होने के कारण भाग्य को उन्नत करने में सहायक होता है। जीवन को ऊँचा उठाता है । माणिक को धारण करने से तेजस्वी, प्रतापी, प्रभावशाली बनाता है । सिंह, मेष, वृश्चिक राशि वालों के लिए अति लाभकारी है। धारण-विधि :__इस रत्न को कम से कम सवा चार रत्ती का पहनना चाहिये । इससे अधिक पहनना और भी उचित होगा। इस रत्न को सोने या तांबे अथवा अष्टधातु में जड़ित कर लेना चाहिये। जड़ी हुई धातु सहित पूजास्थल में पूजा के समय रख लें। रविवार के दिन पूजा से निवृत होकर अपने इष्टदेव के चरणों से स्पर्श कर कनकी अंगुली के निकट वाली अंगुली जिसे (रिंगफिंगर) भी कहते हैं, धारण कर लेना चाहिए। सच्चे विश्वास और भाव से पहनने पर अवश्य ही इच्छापूर्ति होती है।
माणिक के मूल्य प्रति रत्ति स्पेशल क्वालिटी I क्वालिटी II क्वालिटी III क्वालिटी १५०/- से ३००/- रु. तक ८५/- से १००/- ४५/- से
६५/- तक १५/- से ४०/- तक माणिक के उपरत्न गारनेट की माला शिव रत्न केन्द्र पर मिलती हैं। रत्न ज्ञान
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KESARIREXXXX
हमारे यहाँ माणिक की पिस्टी और भस्म
उचित मूल्य पर मिलती है। सम्पर्क स्थान :योगीराज मूलचन्द रखत्री
एवम् _श्रीमती सुशीला खत्री शिव रत्न केन्द्र (रजि.) सन्तल सराय, ऊपरी मजिल, गऊघाट हरिद्वार
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[फोन-6965]
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एक-एक रत्ती लगे रत्नों वाली अंगूठी मूल्य : ७००/एक-एक रत्ती से अधिक रत्नों वाली अंगठी मूल्य : ११००/
नवरत्न चाँदी में पैंडिल, त्रिशूल, सतिया, क्रास, चाँदा का ॐ स्टार आदि आकृतियों में चांदी में लोकिट-चौरस, गोल तिकोने साइज में८५/- ९५/- बड़ा १२५/- १५०/- ३५०/- ४५०/- ५२५/
फुल साइज- ११००/- तथा २१००/८ या १० रत्ती लगे नगों की महारत्त अंगठी मूल्य : ३१००/- चांदी की चैन बड़े साइज में मूल्य : २५०/- ३५०/
चांदी की चैन बड़ साइज में मूल्य : ४५०/जानकारी के लिए मिलें या लिखेंयोगीराज मूलचन्द रखली
शिव रत्न केन्द्र (रजि.) सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल, गऊघाट, हरिद्वार रत्न ज्ञान
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ॐ नमः शिवाय
मोती मोती को संस्कृत में-मुक्ता, चन्द्ररत्न, मौक्तिक, शक्ति । हिन्दी नाम-मोती, उर्दू नाम-मुरवारीद, अंग्रेजी में-पर्ल (Pearl)
मोती चन्द्रमा का रत्न है। चन्द्रग्रह का द्योतक रत्न मुक्ता समुद्र के अन्दर तलहटी में सीप के अन्दर निर्मित जलीय रत्न हैं। मोती का जन्म समुद्र में पैदा हए एक कीट (घोंघा) के अन्दर होता है। मोती जल के कीडे के अन्दर पैदा होने के कारण जलीय रत्न हैं। घोंघा सीपी के अन्दर अपना घर बनाता है। मोतो बनाने वाला घोंघा मुसेल जाति का जल में उत्पन्न होने वाला जीव है । इसमें मोटे धागों के समान कुछ अंग होते हैं। जिनके द्वारा यह चट्टानों या अन्य जलीय स्थानों में अपने आपको चिपका सकता है।
घोंघा दो मांस के आवरणों के अन्दर होता है। इन आवरणों से एक लसलसा पदार्थ निकलता है। यह पदार्थ जमकर धीरे-धोरे सीपी का रूप धारण कर लेता है यह सीपियाँ एक ही आकृति की दो भागों में होती है। और यह एक ओर से जुड़ी होती है। घोंघा इसी के बीच में अपने को सुरक्षित मानकर रहता है। सीपी जहाँ से खुली होती है, उसी तरफ से आवश्यकतानुसार खोलकर अपना भोजन प्राप्त करता है।
प्राचीन मत के अनुसार स्वाति नक्षत्र के उदय रहते हुए वर्षा की बूंद जब सीप के अन्दर खुले हुए मुख में समाती है, तब वह मोती बन जाती है। स्वाति नक्षत्र में बरसे हुए जल के सम्बन्ध में कहावत है[३०]
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शुक्ति शङ्खो गजः कोड:फणी मत्स्यश्च दुर्दुरः । वणरेते सम ख्यातास्तास्तज्ज्ञ मौक्तिकयो नमः॥
स्वाति नक्षत्र में बरसे हुए जल की बूंदे सीप के मुंह में पड़ने से मोती बन जाता है, केले के अन्दर पड़ने से कपूर, सर्प के मुह में पड़ने से हलाहल (विष), हाथी, सुअर, मेंढक आदि के मुख में पड़ने से मोती बन जाती है । वां में पड़ने से बंसलोचन बन जाती है।
मोती की उत्पत्ति आठ स्थानों से होती है। आठों प्रकार के मोतियों में से सामान्यतः सब मोती सबको उपलब्ध नहीं होते ये केवल उन्हीं को प्राप्त होते हैं, जिन्होंने कठिन परिश्रम करके इनकी प्राप्ति की पूर्ण साधना की हो। आधुनिक युग में ऐसे मोती अप्राप्त हैं, केवल सीप के मोती ही आजकल व्यवहार में आते हैं। मीन मुक्ता भी पहनने के काम आता है। (मीन मुक्ता 'शिव रत्न केन्द्र' में उपलब्ध है)।
मोती के रंग :
नीला, सफेद, गुलाबी, मैला, काला, हरियाली लिये चमकदार तांब के समान रंग वाला मोती समुद्र की खाड़ी पहाड़ी स्रोत एवं पर्वतीय तालाबों में भी मिल जाता है।
प्राकृतिक मोतो में निम्न प्रकार के मोती पाये जाते हैं :
मोती के ऊपर फटापन होना, बारीक रेखा, मस्से के समान उभार, चेचक के जैसे दाग होना, धब्बा, अन्दर मिट्टी का होना, श्याम वर्ण मोती भी होता है । रत्न ज्ञान
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असली नकली की परीक्षा-चावल में डालकर रगड़ने से असली की चमक समाप्त नहीं होती और नकली की चमक खत्म हो जायेगी । असली मोती की ऊपरी को सतह नकली मोती से कोमल होती है । अन्य अनेक बारीक बातें हैं । जो केवल क्रियात्मक अभ्यास द्वारा ही जानी जा सकती हैं ।
मोती को रुई में लहट कर नहीं रखना चाहिये । रुई की गर्मी से मोती में धारियां ( लहर) पड़ जाती हैं नमी वाली जगह में भो मोती को रखने से खराब हो जाता है ।
आयुर्वेद में मोती :—
कैल्शियम की कमी के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों में यह बहुत लाभकारी है । केवड़े या गुलाब जल के साथ खरल में घोटकर पिस्टी बनाई जाती है । मुक्ता की अग्नि से भस्म भी बनाई जाती है ।
मुक्ता - शीलल, मधुर, शाँतिवर्धक, नेत्र ज्योतिवर्धक, अग्नि दीपक, वीर्यवर्धक, विषनाशक है । कफ, पित्त, श्वांस आदि रोगों में अति लाभदायक है, हृदय को शक्ति देता है । इसका प्रयोग विभिन्न रोगों में विभिन्न अनुमानों के साथ किया जाता है । ज्योतिष में मोती :
चन्द्रग्रह के कुपित होने पर उससे प्रभावित व्यक्ति को प्रमेह नेत्ररोग, वायु एवं मस्तिष्क रोग हो सकते हैं । चन्द्रग्रह के कुपित होने से जो अश्चितता में रहता है, जीवन घोर संघर्षमय बन गया हो, परिस्थितियां प्रतिकूल हो धारण करना चाहिये । मोती धारण करने से बुद्धि स्तिर होती है किसी भी बात को बारीकी से समझने की शक्ति बढ़ती है शरीर में तेज और ओज का विकास होता है । कोई भी निश्चय शीघ्र होता है, जिससे बात की जाये उस पर प्रभाव पड़ता है, विचार अथवा कार्य करने का मन में उत्साह बढ़ता है ।
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धारण विधि :
बहुत से व्यक्ति दो मोतियों की माला ही धारण करते हैं । जोकि काफी वजनदार और मूल्यवान हो जाती है । मोती कम से कम सवा चार रत्ती का पहनना चाहिये । इससे अधिक हो तो और अच्छा है। मोती को चाँदी या पंचधातु की अंगूठी में जड़वा लेना चाहिए। सोमवार के दिन सायंकाल स्वच्छ जल का लौटा लो, उसमें थोड़ा कच्चा दूध डालो, उस लोटे में अंगूठी को छोड़ दो । जल को भगवान शिव की पिण्डी पर चढ़ा दें। अपनी मनोकामना प्रकट करते हुए अंगूठी को भगवान शिव से स्पर्श करके कनकी अंगूली या उसके साथ वाली में पहन लेना चाहिये । इसको धारण करने के बाद किसी प्रकार का परहेज नहीं है, कल्पनाशील, भावुक व्यक्तियों के लिये मोती अति गुणकारी है ।
STONOS
I क्वालिटी
III क्वालिटी
मोती का मूल्य प्रति रत्ती : स्पेशल क्वालिटी II क्वालिटी १०० से १५० तक ५० से ६० ३० से ४० १५ से २५ रु० मीन मुक्ता रेट २५ रुपये रत्ती से प्रारम्भ "शिव रत्न केन्द्र" पर मोतियों की माला मिलती हैं। आयुर्वेदिक औषधि मोती की पिस्टी और भस्मी भी उपलब्ध है। आर्डर देकर मंगवा सकते हैं । जानकारी के लिए मिलें या लिखेंयोगीराज मूलचन्द खत्री
एवम्
श्रीमती सुशीला खत्री शिव रत्न केन्द्र (रजि०) सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल, गऊघाट, हरिद्वार
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हत्था जोड़ी लक्ष्मी कौड़ा पीस नाग दौन
ब्रह्म कमल पुष्प
नजर बहुगुणीस
३१ /
इन्द्रजाल की लकड़ी ३१/
ॐ नमः शिवाय
तांत्रिक सामग्री
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५१/
११/
१०५/
५/
३१/
१२५/
३१/
दाब का बन्दा
उल्लू का पंजा
गीदड़ सोंगी
★ माल वी०पी०पी० द्वारा भी भेजा जाता है ।
आँकड़े के छोटे गणेश इनसे बड़े गणेश
इन दोनों से बड़े गणेश
मेंढक का पित्ता
रत्तगुंजा पांच पीस
हिंगलाज थुमरा
बिल्ली और जैर
कुशा का बन्दा
सम्पूर्ण जानकारी के लिये मिलें या लिखें :
योगीराज मूलचन्द खत्री
एवम्
श्रीमती सुशीला खत्री
शिव रत्न केन्द्र (रजि० )
सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल
गऊघाट, हरिद्वार - २४६४०१ [ फोन : ६६६५ ]
१२५/
२५१/
५५१/
३१/
५१/
५/
१०१/
३१/
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ॐ नमः शिवाय
मँगा मूंगा को संस्कृत भाषा में प्रवाल या विद्रुम कहते हैं। फारसी या उर्दू में मरजान, अंग्रेजी में कोरल कहा जाता है।
मूंगा खान से निकलने वाला रत्न नहीं हैं। यह समुद्र से निकाला जाता है । देखने में इसका रुप बेल की शाखाओं जैसा होता है । मूंगे की बनावट छोटी-छोटी नालियों के सामने होती है जो एक दूसरे से जुड़ी होती है । मूंगा हर एक समुद्र में भी पैदा नहीं होता, जिस समुद्र में इसके लिए तापमान और गहराई अनुकुल होती है उसी स्थान में मूंगा पैदा होता है।
अनुकूल गहराई एवं तापमान के समुद्र की चट्टानों पर मँगे का वृक्ष पैदा होता है। वृक्ष ज्यादा बड़ा नहीं होता । उसका रंग भी मूंगे के रंगों का जैसा होता है। इसी वृक्ष की शाखाओं को काट-काटकर मूंगा तैयार किया जाता है । इस प्रकार मूंगा समुद्र से पैदा होने वाला रत्न है । इस रत्न को पूजा के काम में लाया जाता है इसमें दैवी शक्ति है, ऐसी मान्यता है । मंगे का रंग :
मगे का रंग सिंदूरी होता है । सिंगरफ के समान रंग का भी मूंगा होता है । मूंगा श्वेत वर्ण तथा पीत आभायुक्त (क्रीम कलर) में भी पाए जाते हैं।
मूंगे का रंग लाल के साथ कालापन लिये हुए भी होते हैं। गहरा लाल, हलका लाल भी मूगा होता है। (सिंदूरी ओरेन्ज) कलर का मूगा हनुमान जी के उपासक धारण करते हैं। इसे हनुमान जी का रंग भी कह देते हैं। हनुमान उपासकों के लिये बहुत ही लाभकारी है। अनेक अनुमान भक्तों को लाल रंग का [३५]
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मूगा पहते देखा गया है जबकि लाल रंग हनुमान जी का नहीं है । हनुमान भक्तों को सिन्दूरी रंग का मूगा ही धारण करना चाहिये। __ पेड़ से पैदा हुए मूगे में धब्बा, दुरंगापन, सफेद छींटा कहीं न कहीं उभरी हुई दिखाई देती हैं । यह सब उसका प्राकृतिक स्वरूप है। नकली बनावटी मूमे एक रंग के बिना दाग धब्बे के सुन्दर दिखाई देते हैं। नकली के रूप रंग और उसकी सुन्दरता को देख कर खरीदने वाले धोखा खा जाते हैं। अथात् नकलो को लेकर घर चले जाते हैं। नकली को असली मानकर ले जाने वालों के कारण ही नकली बेचने का साहस बना रहता है। आयुर्वेद में मूगा :
मूंगा को केवड़ा या गुलाब जल में घिसकर गर्भवती स्त्री के पेट पर लेपन करने से गिरता हुआ गर्भ रुक जाता है।
__ मंगे को गलाब जल में घिसकर छाया में सुखाने से प्रवाल पिस्टी तैयार होती है । पिस्टी को मधु के साथ खाने से शरीर पुष्ट होता है। पान के साथ खाने से कफ और खांसो को लाभ होता है । मलाई के साथ खाने से शरीर की गर्मी तथा हृदय की धड़कन को लाभ होता है। ज्योतिष :
ज्योतिष के अनुसार मूंगे का स्वामी मंगल ग्रह है जिस व्यक्ति पर कुदृष्टि है उसे मूगा पहनना चाहिये। जो व्यक्ति शत्रुओं से परास्त हो गये हों, जोखिमों को झेलते हुए जो जीवन में अंधेरा देख रहे हों, उन्हें मूगा धारण करना चाहिये मेष एवं वृश्चिक राशि का राशिपति होने से उनके लिए भाग्योन्नति की बाधाओं को दूर करता है । मूगा रोग नाशक है। रक्त की शुद्धि करता है। भयभीत लोगों का साहस बढ़ता है। [३६]
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मेष राशि वालों के लिये व्यापार, नौकरी आदि में उन्नति करता है। जो व्यक्ति समाज में कुछ कर दिखाने की इच्छा रखते हैं, उन्हे मंगा अवश्य ही धारण करना चाहिये। जिन लोगों के जीवन में मुकदमें झगड़े चलते रहते हैं उनको मूगा अति उत्तम है। मूगा धारण से स्वाभिमान में बुद्धि विपरीत परिस्थितियों का सामना करने का साहस, फील्ड वर्क में वृद्धि, समाज में सम्मान प्राप्त होता है। सिंह राशि वाले और अन्य राशि वाले भी मंगा धारण कर सकते हैं। कुम्भ और मकर राशि वालों को मूगा निषेध है। धारण विधि :
मूगे को कम से कम ५ रत्ती और सवा सात रत्ती ऊपर का से पहनना चाहिए। सोने, ताँबा और अष्टधातु में पहनने से शीघ्र लाभकारी होता है। मूगा, मेष, सिंह, वृश्चिक राशि वालों को अत्यधिक लाभकारी होता है। मूगे को मंगलवार के दिन सायंकाल के समय गर्दन भुजा या अंगूली में धारण करना चाहिए। अथवा मूंगे को अंगूठी में जड़वाकर मंगलवार को हनुमान जी के चरणों से स्पर्श कर कनकी अंगूली में धारण कर लेना चाहिये ।
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卐CESXCDESISXE
हमारे यहां मूंगे की पिस्टी और भस्म
उचित मूल्य पर मिलती है। * मूंगे का मूल्य प्रति रत्ती * स्पेशल क्वालिटो ४५ रुपये से ६० रुपये तक प्रथम क्वालिटी ३५ रुपये से ४० रुपये तक द्वितीय क्वालिटी २५ रुपये से ३० रुपये तक तृतीय क्वालिटी १५ रुपये से २० रुपये तक
-: सम्पर्क स्थान :
योगीराज मूलचन्द खत्री शिव रत्न केन्द्र रजि०]
सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल गऊघाट, हरिद्वार-२४६ ४०१
हमारे यहां :* शुद्ध गोरोचन * केशर
* कस्तूरी अनेक शुद्ध सामग्रियां भी प्राप्त कर सकते हैं। शिव रत्न केन्द्र (रजि०)
सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल गऊघाट, हरिद्वार [फोन : ६६६५]
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सर्व-सिद्ध-यन्त्र * श्री यन्त्र-श्री (यश) तथा लक्ष्मी प्राप्ति के लिए। * श्री महालक्ष्मी यन्त्र दर्शन मात्र से धन, मान तथा रिद्धिसिद्धि
प्राप्त। * श्रीदुर्गा यन्त्र विशेष संकट निवारण हेतु । * श्री बीसा यन्त्र-भूत-प्रेत व्याधा हटाने के लिए। * श्री मंगल यन्त्र-शादी विवाह तथा शुभ कार्यों में आए हुए
विघ्न हटाने के लिए। * श्री बंगला मुखी यन्त्र-मुकद्दमा या शत्रुओं पर विजय प्राप्ति
हेतु। * श्री कुबेर यन्त्र-धनपति बनने के लिए। * श्री गणेश यन्त्र-विद्या-बुद्धि, रिद्धसिद्धि के लिए। .
धन्धा यन्त्र, नवग्रह शान्ति, शंकर यन्त्र अनेक प्रकार के लगभग १५० किस्म के यन्त्र, तांबा, पंच धातु, अष्ट धातु, चाँदी लोहा आदि अनेक धातुओं में और भिन्न-भिन्न साइज चार इन्च से ५ फुट तक के हमारे यहाँ से मिल सकते हैं। ४-५ फुट का यन्त्र आप शोरूम और मन्दिर में भी लगा सकते हैं। जिसका मूल्य अष्टधातु में लगभग २१०० रुपये है । अथवा अपना नक्शा और साइज देने पर यन्त्र विशेषज्ञ पण्डित एवं कारीगरों द्वारा निर्माण भी कराया जा सकता है।
सम्पूर्ण जानकारी हेतु मिलें या लिखें
___ योगीराज मूलचन्द खत्री शिव रत्न केन्द्र [रजि०] सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल, गऊघाट, हरिद्वार
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पन्ना
पन्ना हरे रंग का चमकदार पत्थर होता है । जिस पन्ना में लोच, निम्बस, जर्दी और रंग नीम की पत्ती के समान हो, नीम की पत्ती में हरा रंग पीत आभायुक्त होता है, ऐसी पीत आभायुक्त हरितवर्ण पन्ना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । पन्ना रत्न अपना अस्तित्व बहुत सम्भालकर रखता है । पन्ना देखने में भी बड़ा आकर्षक होता है हीरों के बीच में भी पन्ने जड़ें हों तो वह अपनी चमक-दमक अलग ही दिखाते हुए पाये हैं । व्यक्ति की नजर से नहीं छिपते । किसी आभूषण में पन्ने ही पन्ने जड़ दिये जायें। तो उनकी हरित आभा हँसते हुए दिखाई पड़ेगी ।
C
पन्ना को संस्कृत भाषा में - मरकत, तादर्य, फारसी या उर्दू में - जर्मुद और अंग्रेजी में इमेरेल्ड (Emerald) कहते हैं । विभिन्न खानों के पन्ने की विभिन्नता :
ॐ नमः शिवाय
रूखा चमकहीन अभ्रक के साथ निकलने वाला पन्ना, इसकी अभ्रक जैसी चमक हो जाती है । चीर, दुरंग काला या पीला छींटा, सोना माखी -स्वर्ण के समान इसमें एक भिन्न पदार्थ होता है । पन्ना को उत्पत्ति :
रूस, अफ्रिका, भारत ( अजमेर), वेल्जियम (ब्राजिल) पाकिस्तान, अमेरिका, की खान का माल पुष्ट होता है। रंग और पानी में सर्वोत्तम है ।
नकली पन्ने :
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पन्ने में जाला होना आवश्यक है । जाला रहित पन्ना नहीं
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होता। जाला और रूखापन पन्ने में न हो तो वह असली नहीं हो सकता । नकली बनाने वालों ने भी पन्ने में जाला डालने की कोशिश की है परन्तु बनाये हुए नकली और खान से निकले हुए असली में बहुत अन्तर है। इस अन्तर को तो रत्न का पुराना पारखी ही समझ सकेगा। हर व्यक्ति भैद को नहीं समझ सकता। कृत्रिम पन्ना :___ सबसे पहले किसी जर्मन फर्म ने १९३० में कृत्रिम पन्ना बनाया था और भी कई देशों ने बनाया। परन्तु माइक्रोस्कोप पर टेस्ट करने से उसके बनावटी होने का पता चल जाता है। दो टुकड़ों को जोड़कर भी एक पन्ना बनाया गया, उसके ऊपर का हिस्सा पन्ना, नीचे का हिस्सा बिल्लोर और बीच में हरा रंग लगाकर जोड़ दिया जाता हैं, परन्तु उसके बगल (साइड) से देखने से उसका जोड़ स्पष्ट दिखाई देता है। आयुर्वेद में पन्ना :
आदिकाल से ही चिकित्सकों ने पन्ने की विषघ्न एवं बल वीर्यवर्धक गुणों को सभी ने स्वीकार किया है । रत्नों का रोगों में प्रयोग पिष्टिका, भस्म चूर्ण एवं सूर्य रश्मि चिकित्सा में होता चला आया है। आयुर्वेद में पन्ने की भस्म ठण्डी, रुचिकारक मेदवर्धन, क्षवावर्धक होती है तथा अम्लपित्त और दाह (जलन) को नष्ट करती है। इसके प्रयोग से तीव्र एवं मृदु ज्वर, उल्टी, दमा, अजीर्ण, बवासीर, पीलिया आदि में किया जाता है। किसी वैद्य के परामर्श से ही दवा का प्रयोग करना चाहिये, नहीं तो लाम के स्थान पर हानि भी हो सकती है। ज्योतिष में पन्ना :
पन्ना बुधग्रह का पूज्य रत्न है । बुध ग्रह के विपरीत होने पर रत्न ज्ञान
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मिथुन और कन्या राशि वालों को पन्ना धारण करना चाहिये । पन्ना पाप नाशक है। संकट से बचाता है, बुद्धि दाता है, मानसिक शान्ति मिलती है, क्रोध को शान्त करता है। नेत्रों की ज्योति बढ़ाता है। इस रत्न में अनोखी विकरण शक्ति विद्यमान है। शरीर को स्वस्थ और मन को प्रसन्न रखता है। धारण विधि :
पन्ना रत्न को कम से कम साढ़े चार रत्ती का पहनना चाहिये। इस रत्न को चाँदी और पंचधातु की अंगठी में जड़वाकर पहना जाता है । बुद्धवार के दिन सूर्य उदय से पूर्व ही उठकर शौच स्नान से निवृत्त हो जाना चाहिये। उसके बाद मन्दिर में या अपने पूजा स्थल में बैठकर अपनी मनोकामना को अपने इष्ट से प्रकट करें। तथा उसे पूरा करने की प्रार्थना भी करें। रत्न अड़ित अंगूठी को धूप-दीप-पुष्प से पूजित करें और अपने इष्टदेव के चरणों में स्पर्श कर हाथ की कनिष्ठा अंगली में धारण कर लें। कोई किसी प्रकार का विशेष परहेज नहीं है।
* पन्ने का मूल्य प्रति रत्ती * स्पेशल क्वालिटी I क्वालिटी II क्वालिटी III क्वालिटी १५० से ३०० तक ८५ से १०० ४५ से ६५ १५ से ४० * जप करने के लिये अथवा गले में धारण करने के लिये हमारे
यहाँ पन्ने की माला मिल सकती है। पन्ने रत्न की आयुर्वेद विधि से बनायी हुई पिस्टी और भस्म भी उपलब्ध है। योगीराज मूलचन्द खत्री
एवम् श्रीमती सुशीला खत्री शिव रत्न केन्द्र (रजि0)
सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल, गऊघाट हरिद्वार १४२]
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ॐ नमः शिवाय
आयुर्वेद रसायन "शिव रत्न केन्द्र" ने प्राचीन पद्धति से सोना, चांदी, तांबा लोहा, माण्डूर, रांगा, कलई पारा आदि धातुओं की शृङ्ग सीप शङ्ख सङ्खिया, अवरक तथा हीरा, मोती, माणिक, पुखराज, पन्ना गोमेद, मुंगा, नीलम, लहसुनिया, रत्नों की भस्म, हीरे को छोड़कर सभी रत्नों की पिस्टी योग्य वैद्यों की देख-रेख में तैयार करायी गया है।
जो नाम दिये गये हैं, उनके अलावा किसी भी प्रकार की भस्मी और पिस्टी के लिये हमसे अवश्य पूछ लें। आर्डर मिलने पर तैयार कराकर भी भेजी जाती है। असली होने को गारण्टी हमारी होगी। जो सज्जन किसी भी रोग के लिये वैद्य के परामर्श से रसायन प्रयोग कर रहे हैं, स्वयं आकर या डाक द्वारा हमसे मंगायें। * आयुर्वेद चिकित्सा कराने वालों के लिये मूल्य में विशेष छूट दी जायेगी।
सम्पर्क स्थान :योगीराज मूलचन्द खत्री
एवम् श्रीमती सुशीला खत्री शिव रत्न केन्द्र [रजि०] सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल, गऊघाट, हरिद्वार रत्न ज्ञान
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ॐ नमः शिवाय
पुखराज
पुखराज को संस्कृत में पुष्पराग कहते हैं, अंग्रेजी में White Sapphire. पुखराज को पुष्पराग भी कहा जाता है। रत्नों में पुखराज सबसे लोकप्रिय रत्न हैं । इसका उपयोग लाकिट, अंगूठी आदि जेवरों में किया जाता है ।
नीलम, पुखराज एक ही रसायनिक संगठन के हैं । यह रत्न अपनी प्रकृति अवस्था में कुरन्दम वर्ग में आते हैं । इनके रंगों की भिन्नता उसमें मिले भिन्न-भिन्न द्रव पदार्थों के कारण हो जाती है । हल्के पीले रंग में पुखराज अधिक पाया जाता है । पीले रंग का पुखराज ही सर्वश्रेष्ठ और प्रसिद्ध है । पुखराज पर्वतीय बर्फीली शिलाओं के नीचे पाया जाता है । इसके साथ और भी कई उपरत्न पैदा हो जाते हैं । परन्तु पुखराज अन्य रत्नों से भारी और टिकाऊ होने के कारण इन शिलाओं से बहकर कंकड़ों की शक्ल में नदी तलों पर भी मिल जाता है । पुखराज हीरा आदि कुरून्दम वर्ग के पत्थरों से कुछ कोमल है । पुखराज को रगड़ कर इसमें बिजली पैदा की जा सकती है । विद्युत शक्ति प्राप्ति के लिये यह एक विशेष रत्न है । पुखराज को पहचान :
ग्रह दशा को शान्त करने के लिये पुखराज प्रेमी बाजार में आकर गहरे पीले रंग की चमक साफ सुथरा खोज करते हैं । परन्तु गहरे पीले रंग में पुखराज तो रंगा हुआ होता है। गहरे रंग की चमक साफ सुथरा देखकर व्यक्ति बाजार से ले जाते हैं। थोड़े दिन में रंग उतर जाता है । ले जाने वालों को रंग उतर जाने के बाद पता लगता है । कि यह रंग चढ़ाया हुवा था । ऐसी बहुत शिकायतें
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देखी गई हैं । पुखराज का रंग तो हलका पीला ही होता है। पुखराज में दाग, धब्बे, दुरंगा आदि सब नेचुरल (प्राकृतिक) जाते हैं।
नकली पुखराज (इमीटेशन) सब विदेशों से आता है । जोकि बहुत ही चमकदार गहरे पीले रंग तथा बिना किसी दाग धब्बे का होता है । खरीदार उसको चमक-दमक पर रोझता है और बाजार में ठगा जाता है । असली पुखराज कोई पुराना अनुभवी पारखो नजरों से देखकर ही बता सकता है। ज्योतिष में पुखराज :
ज्योतिष शास्त्र में पुखराज को देवगुरु वृहस्पति का प्रतीक माना है, सौभाग्य का प्रतीक है । इसके प्रयोग से वैवाहिक जीवन में मधुरता पैदा होकर सौभाग्य की प्राप्ति होती है। पुखराज रोग नाशक कीति और पराक्रम की वृद्धि करने वाला, आयु एवं सम्पत्ति का वर्धक माना गया हैं । सांसारिक सुख एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है। विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो शीघ्र और सुलभ हो जाता है, ग्रहस्थ जीवन जिसका अनुकुल न हो अथवा पत्नी सुशील और सुयोग्य चाहते हों गृहस्थी जीवन सुखमय बनाना चाहते हों, उन्हें असली पुखराज अवश्य धारण करना चाहिये। पुखराज पहनने वालों की प्रतिष्ठा दिनों दिन बढ़ती है। मन में उत्साह बना रहता है। रुके काम बनने लगते हैं । लेखक, वकील बुद्धिजीवियों के लिए अत्यन्त लाभकारी है।
पुखराज का स्वामी (गुम्बृहस्पति) है। गुरु किसी का बुरा नहीं चाहता। भाई-बहिन, माता-पिता, कुटुम्ब परिवार, पति-पत्नी, सभी रिश्तों में प्रेम बढ़ाता है। गुरु अधिपति होने से साधु सन्त, महात्मा भी इसे धारण कर सकते है। रत्न ज्ञान
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धारण विधि :
पुखराज ५ रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वा लेना चाहिए। गुरुवार के दिन केले के वृक्ष का पूजन करें, पूजन करते समय अंगूठी को वृक्ष की जड़ में रख देना चाहिए, पूजा समाप्ति पर अगूठी को केले के वृक्ष से स्पर्श कर रिंग-फिंगर में पहन लेना चाहिये पुखराज को स्त्रो, पुरुष कोई भी पहन सकता है। वैसे तो पुखराज धनु और मीन राशि के लिये हैं परन्तु इसे कोई भी धारण कर सकता है।
इसके धारण करने से घर बैठे रिश्ते आने लगते हैं। वैवाहिक कठिनाई शीघ्र ही हल हो जाती है । यह अनुभव सिद्ध प्रयोग है। आयुर्वेद में पुखराज :
पुखराज को गुलाब जल और केवड़ा के जल में पच्चीस दिन तक घोटना चाहिये, जब काजल की भाँति घुट जाये तब उसे छाया में सुखाकर रख लें। यह पुखराज पिस्टी तैयार हो गयी। पुखराज की भस्मी भी बनाई जाती है। पुखराज की भस्म या पिस्टी, पीलिया, आंवधात, कफ, खांसी, श्वांस, नक्सीर आदि अनेक रोगों में दी जाती है।
* पुखराज का मूल्य प्रति रत्ती * स्पेशल क्वालिटी I क्वालिटी II क्वालिटी II क्वालिटी १५० से ३०० ८५ से १०५ ६५ मे ८० ३५ से ५५ हमारे यहां पुखराज की पिस्टी और भस्मी भी उपलब्ध है तथा पुखराज की माला भी मिल सकती है।
अधिक जानकारी हेतु मिलें
योगीराज मूलचन्द खत्री शिव रत्न केन्द्र [रजि०] सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल, गऊघाट हरिद्वार
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ॐ नमः शिवाय
नवरत्न यन्त्र
नवग्रहों के प्रकोप से बचने के लिये नवरत्न यन्त्र तैयार किया गया है। इस यन्त्र में नौरत्न, हीरा, पन्ना, मोती, मूगा, पुखराज, माणिक लहसुनिया, नीलम, गोमेद हैं। यह असली रत्नों से जटित है। इस यन्त्र को दीपावली की रात को मन्त्रों द्वारा सिद्ध किया गया है। नवग्रहों में से किसी भी ग्रह के प्रकोप से रक्षा करता है। अन्य ग्रह भी अनुकूल रहते हैं। इसे अपनी दुकान, फैक्ट्री व घर के पूजा ग्रह में रखने से अनेकों प्रकार के अनिष्टों से रक्षा करता है। धन लक्ष्मी की बुद्धि प्रदान करने में सहायक है, इसका दर्शन, पूजन, स्पर्श सौभाग्य को बढ़ाने वाला है। इस यन्त्र की भेंट ११००/-रुपये है।
* शुद्ध किये गये बाजू बन्द * १. ३ रत्ती साईज चाँदी में
४५०/- रुपये २. ५ रत्ती साईज चाँदी में
५२५/- रुपये ३. ६ रत्तो साईज चाँदी में
६५०/- रुपये ४. ८ रत्ती साईज चाँदी में
८५०/- रुपये ५. १० रत्तो साईज चाँदी में
११२५/- रुपये ६. लगभग १५-२० रत्ती साईज में महारत्न २१००/- रुपये ७. लगभग २०-२५ रत्ती हाई पावर साईज ३१००/- रुपये नोट-उपरोक्त सभी वस्तुओं में हीरा छोटे साईज में होगा।
रत्न ज्ञान
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ॐ नमः शिवाय
नीलम यह कुरविन्द जाति का रत्न है। नीला अल्युमिनियम और ऑक्सीजन का यौगिक है। अल्प मात्रा में कोबाल्ट मिला रहने से रंग नीला होता है। नीलम पुखराज के साथ ही पैदा होता है। नीलम और पुखराज कुरुन्दय वर्ग के रत्नों में है। नीलम का रंग :
__ गहरे नीले रंग का होता है। गहरा नीला होने से कालापन जैसा देखने में आता है । नीलापन लिए हुए आसमानी रंग का भी नीलम होता है सफेद, पीला, गलाबी रंग में भी नीलम किसीकिसी खदान में पाया जाता है। परन्तु सफेद या गुलाबी बहुत कम पाया जाता है। प्राप्ति स्थान :
नीलम को खदान बर्फ जमने वाले पहाड़ों में पायी जाती है। बर्फ की चट्टानें जमते-जमते जब नीचे का भाग पत्थर बन जाता है, नीलम वहाँ पैदा होता है । बर्फ की चट्टानों को तोड़कर गहराई से नीलम को निकाला जाता हैं। नीलम बर्मा, बैंकाक (थाईलैंड), जम्म (भारत) कष्टवाड़ के इलाकों में पाया जाता है लंका में भी नीलम पैदा होता है।
भारत में लोग लंका का नीलम मांगते हैं। बर्मा के नोलम का भी भारत में प्रचलन है। परन्तु विदेशों में भारत के नीलम की बड़ी मांग रहती है। भारत में नीलम की खाने बन्द पड़ी हैं। वास्तव में भारत का नीलम उच्चश्रेणी का है। परन्तु भारतीयों
की प्रत्येक वस्तु के प्रति धारणा बन गई है कि विदेशी वस्तु अच्छी • रत्न ज्ञान
[४८]
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शिम असम केन्द्र (रजि.) हरिद्वार
जमीन से निकाला हुआ नीलम तराश कर तैयार किया हुआ नीलम
शिव रत्न केन्द्र (सनि०) हरिद्वार
फुल साईज २५०/-
छोटा साईज १२५/
शिव दरून केन्द्र अधि
हरिद्वार
नव रत्न की चैन:फुल साईज ८५०/- मीडियम साईज ६५०/छोटा साईज ४५०/- सबसे छोटा ,, २५०/
Jain Eomeण
LEPOT Private & Personal use only
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होती है। इसीलिए विदेश का नीलम भी मांगते हैं। नीलम खुले पानी का सीलोन का माना जा रहा है। जो कि पारदर्शी हल्कापन लिये हुए पुखराज के साथ पैदा होता है। सच कहा जाय यह पुखराज ही है। इसी को नीलम मानकर पहन रहे हैं। नये पारखी लोग भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे। भारत का नीलम गहरा नोला (कालापन) लिये हये गुम पानी का होता है। इसको नीलम न कहकर नीली मरगज आदि बता देते हैं। जबकि नीलम, मरगज, आदि में बहुत बड़ा (जमीन-आसमान जैसा) अन्तर होता है। भारत में नीलम और पुखराज ६० प्रतिशत नकली बिक रहा है।
भारत का नीलम सर्वोत्तम है। जो कि कश्मीर प्रदेश में जम्मू (बाडर) में नीलम खानों से निकाला जाता है। यह स्थान लगभग पन्द्रह हजार फुट की ऊँचाई पर है । इस भाग में सदा बर्फ जमा रहता है। यहाँ तक पैदल पहुँचना होता है । इस खदान पर पहुँचने में भी बीस दिन लग जाते हैं। ___कश्मीर में नीलम खदान के बारे में सुना गया है कि इसका पता कुछ यात्रियों द्वारा चला था। कुछ यात्रो अफगानिस्तान से देहली को चले थे, रास्ते में बरसात से पहाड़ गिर गया था। गिरे हुए पत्थरों में कुछ अच्छे रंगीन चमकदार पत्थर थे। वह यात्री इन पत्थरों को अपने साथ खच्चरों पर भर लाये। खाने-पीने की सामग्री इन पत्थरों के बदले में लेते रहे । अनेकों हाथों में घूमने के बाद जब यह पत्थर जौहरियों के पास पहुँचे तब इस खदान की खोज की गई। आयुर्वेद में नीलम :
नीलम के चूरे को गुलाब जल या केवड़े के जल में डालकर खरल में घोटा जाता हैं। अन्य रत्नों की भांति इसकी पिस्टी बनाई जाती है और भस्मी भी तैयार की जाती है। नीलम रसायन रत्न ज्ञान
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को पान के रस, अदरक के रस, शहद, मलाई या मक्खन में भी खिलाया जाता है। योग्य वैद्य से परामर्श कर प्रयोग करें। यह विषम ज्वर, मिर्गी, मस्तिष्क की कमजोरी, हिचकी, उन्माद या पागलपन के रोगों के लिये लाभदायक है। ज्योतिष के अनुसार :
नीलम शनि राशि का प्रिय रत्न है। शनि की कुदृष्टि होने पर नीलम अवश्य ही धारण करना चाहिये, नीलम मकर और कुम्भ राशि के अत्यन्त उन्नतिकारक है। इन राशियों को नीलम कभी हानि नहीं पहुँचाता। नीलम सभी रत्नों से सतोगुणी रत्न है। इसके धारण करने से मनुष्य का मन पवित्र होता है। मन में सात्विक भावना पैदा होती है। दुष्कर्मों का त्याग और सत्कम में मन लगता है । सत्य, दया, परोपकार के विचार बनते हैं । और अपनी सामर्थ और शक्ति के अनुसार व्यक्ति करने भी लगता है । नीलम का शनिग्रह अधिष्ठात्री देवता है । परन्तु नोलम को सभी राशि वाले व्यक्ति धारण कर सकते हैं। सभी को लाभ करता है। हानि किसी को नहीं करता। मेष वृश्चिक तथा सिंह राशि वालों को नीलम धारण करने के लिए परामर्श करना चाहिए। धारण विधि :
नीलम को चाँदी पञ्चधातु या लोहे की अंगठी में जड़वा लेना चाहिए । शनिवार को सुबह स्नान कर एक लोटे में जल, कच्चा दूध और मीठा डालें तथा अंगूठी को भी लोटे के जल में डाल दो। जल को भगवान शंकर या पीपल के वृक्ष में डाल दें। और अंगठी को उठाकर मध्य ऊँगली में धारण कर लें। नीलम रत्न दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करता है। [५०]
रत्न ज्ञान
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* नीलम का मूल्य प्रति रत्ती * स्पेशल क्वालिटी I क्वालिटी II क्वालिटो III क्वालिटो २५० से ५०० तक १५० से २२५ ७५ से १०५ ५५ से ७० तक * हमारे यहां नीलम की माला मिलती हैं। * नीलम की पिस्टी और भस्मी भो उपलब्ध है।
___उचित जानकारी हेतु सम्पर्क करेंयोगीराज मूलचन्द खत्री एवं श्रीमती सुशीला खत्री
शिव रत्न केन्द्र (रजि0) सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल, गऊघाट हरिद्वार
असाध्य रोगों के लिए
हमारे से सम्पर्क करेंअगर आपको किसी भी प्रकार का असाध्य रोग है। आप डाक्टर और वैद्यों के पास जाते-जाते थक गये हैं, धन का भी अभाव है। तो एक बार अवश्य हमसे मिलिये।
हिस्टीरिया, मिर्गी, सुगर, ब्लडप्रेशर, गठिया, सफेद दाग आदि रोगों की दवा निःशुल्क दी जाती है। किसी भी रोग के लिये परामर्श का कोई शुल्क नहीं लिया जाता। आपके नाम की राशि के हिसाब से कौन सा ग्रह अनुकूल है और कौन सा प्रतिकूल है, जानकर राशि के पत्थर (रत्न), रुद्राक्ष से भी रोग निवारण हेतु परामर्श दिया जाता है।
अधिक जानकारी हेतु मिलें
योगीराज मूलचन्द खत्री शिव रत्न केन्द्र [रजि०]
सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल, गऊघाट हरिद्वार रत्न ज्ञान
[५१]
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* गोमेद *
गोमेद के रंग :―
रक्त श्याम, पीत आभायुक्त गोमेद उत्तम माना गया है। इसके रंग मधु के समान, गोमूत्र अथवा अंगारे के समान होता है, इसका अंग नरम होता है ।
इसकी उत्पत्ति अधिकतर सायनाइट की शिलाओं के अन्दर पाई जाती है । यद्यपि यह एक ही स्थान से प्रचुर मात्रा में प्राप्त नहीं होता है। गोमेद गोल चिकने पत्थरों और परतों में घिसे रत्नों के रूप में पानी से घुलकर नीचे बैठी तलछट में मिलता है । प्राप्ति स्थान :―
ऐसी तलछट प्राय: लंका में पायी जाती है। लंका के अतिरिक्त भारत में भी गोमेद की खानें हैं। भारत में पटना तथा गया के बीच में कई खानें हैं । जहाँ से गोमेद निकाला जाता है । दक्षिण भारत में मैसूर के गोमेद को लंका का गोमेद भी कह दिया जाता है । विदेश का बताकर उसका मूल्य बेचने वाले अधिक ले लेते हैं | परन्तु लंका के गोमेद से मैसूर का पत्थर श्रेष्ठ है । भारत की खानों से गोमेद का पत्थर बड़ी मात्रा में निकलता है | भारत के गोमेद की विदेशों में माँग भी अधिक रहती है ।
गोमेद को हिन्दी में गोमेद, उर्दू में जरकूनिया, जारगुन तथा जारकून भी कहते हैं, संस्कृत में गोमेदक, पिगलामणि, तुषारमणि या राहूबल्लभ भी कहते हैं, अंग्रेजी में गोमेद को ( Zireone ) कहा जाता है ।
गोमेद जिर्कोनियम का सिलीकेट लवण है । इसमें थोड़ी मात्रा में दूसरी अप्राप्त मृत्तिकायें भी पाई जाती है। यह प्रायः कई रंगों में मिलता है ।
[५२]
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गोमेद से आयुर्वेद चिकित्सा :
आयुर्वेद में गोमेद का प्रयोग प्राचीनकाल से ऋषि-मुनियों और वैद्यों द्वारा होता चला आया है। इसके प्रयोग से विभिन्न रोगों का निदान सम्भव है।
गोमेद कफ, पित्त, पाण्डु तथा क्षय रोगों को नष्ट करता है। और दीपन, पाचन, रुचिवर्द्धक, बुद्धि प्रबोधक तथा चर्म हितकर है। गोमेद की भस्म का प्रयोग कफ, पित्त और क्षय रोगों में अति हितकर है। उचित अनुपातों के साथ और घोटकर सेवन करने से यक्षमा रोग को नष्ट करता है। इसकी सूर्य रश्मि चिकित्सा द्वारा पित्त एवं चर्म रोगों में लाभकारी है । इससे दमा कण्डू, दद्र आदि चर्म रोग समूल नष्ट हो जाते हैं।
गोमेद औषधि में प्रयोग करने के लिए गोमेद का शुद्ध होना नितान्त आवश्यक है । आयुर्वेद में लिखा हैं। जो गोमेद स्वच्छ गोमूत्र के समान रंग वाला, कान्तियुक्त, स्निग्ध तथा समानाकार हो, प्रकाशवान, तोल में वजनदार ही, औषधि के कार्य में लेना चाहिये। ज्योतिष में गोमेद :--
गोमेद राहू ग्रह का कारक रत्न है । दैत्य ग्रह राहू के कुपित होने पर प्रभावी व्यक्ति को मानसिक एवं उदर सम्बन्धी रोग उत्पन्न हो सकते हैं । प्रभावी व्यक्ति को गोमेद रत्न धारण करने से राहग्रह कारक रोगों से मुक्ति मिल सकती है। राहू ग्रह प्रकोप से मानसिक तनाव बढ़ता है । कार्यकुशलता समाप्त हो जाती है। छोटी-छोटी बातों पर निर्णय लेने के बजाय क्रोध आता है। योजनायें असफल होती हैं। मानसिक उड़ानों में व्यक्ति भ्रमण करता है । उसे गोमेद धारण करना चाहिये। [५३]
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जिन बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता हो । स्त्री रोग से पीड़ित हो, व्यक्ति का मन छटपटाता है या मन में चंचलता है, आत्मज्ञान की चाह है तो गोमेद धारण करने से सभी कठिनाईयां दूर हो जायेंगी। कार्यों में रुकावट हो रही हो, गोमेद लाभकारी होता है । विशेष जानकारी शिव रत्न केन्द्र से प्राप्त करें । धारण विधि :
I
गोमेद कम से कम सात रत्ती चांदी या पंचधातु की अंगूठी में जड़वाना चाहिये । गोमेद कुम्भ और मकर राशि को शनि की साढ़े सात में हितकर होती है । वैसे इन रत्नों को पहनने के लिये राशि का भी विचार नहीं किया जाता। बुधवार या शनिवार के दिन अपने पूजा ग्रह में पूजा करें, अंगूठी को धारण कर लें। इस रत्न को पहनने के लिये किसी भी राशि का विचार नहीं किया जाता है । गोमेद का गोमूत्र कलर में ५ रुपये से १० रुपये प्रति रत्ती गोमेद की माला 'शिव रत्न केन्द्र' में मिलती है । ★ विधि पूर्वक बनाई हुई गोमेद भस्म भी उपलब्ध है । योगीराज मूलचन्द खत्री
शिव रत्न केन्द्र [रजि० ]
सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल गऊघाट, हरिद्वार
* एकदम असली रुद्राक्ष *
एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक व गौरी शङ्कर रुद्राक्ष तथा हर प्रकार के रुद्राक्ष की छोटी-बड़ी मालायें प्राप्त करें मूल्य सूची इसी पुस्तक में है ।
सम्पर्क स्थान :
शिव रत्न केन्द्र [रजि० ]
सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल गऊघाट, हरिद्वार - २४६४०१
[ ५४ ]
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ॐ नमः शिवाय
लहसुनिया संस्कृत में इसका नाम सूत्रमणिया वैडूर्य कहते हैं। इसको बिड़लाक्ष भी कहा जाता है। बिल्ली की आँख के समान इसका रूप भी होता है। इसलिये पाश्चात्य विद्वानों ने इसे बिल्ली की आंख (Cat's Eye) भी कहा है।
वैडूर्य का रंग पीत, आभायुक्त होता है । और सफेद भी पाया जाता है। यदि सूत लकीर के समान होवे, फैला हुआ हो तो वह चद्दर कहलाती है । चादर या सूत रहित भी लहसुनिया होता है। इसके रंग :
पीत आभायुक्त सफेद (Cream Clour) रंग होता है। श्याम आभायुक्त, नीले और हरे रंग का मिश्रण भी अल्प मात्रा में पाया जाता है। एक व्याघ्र नेत्र (Tiger's Eye) के समान रंग का सूत मिश्रित श्याम होता है और इसी रंग में गहरे रंग का होता है। इसे दरियाई लहसुनिया कहा जाता है। यह कई रंग का होता है।
वैड्र्य में मुख्यतया अल्युमिनियम तथा अल्प मात्रा में अयम और क्रोमियम तत्त्व होते हैं। उत्पत्ति:
वर्मा, सीलोन तथा भारत (त्रिवेन्द्रम) में पाया जाता है। निकालते समय यह कंकड़ की शक्ल में होता है। इसको एक तरफ से तराश कर सफाई की जाती है। इसको साफ करने वाली ओर से हिलाने पर एक लकीर दिखाई देती है, इसी को डोरा कहते हैं।
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जिन पर्वतों में यह रत्न पैदा होता है वहाँ से पानी से कट कर उसके प्रवाह के साथ नदियों में बहकर भी आता है। जल की कमी होने पर नदी के रेत से छानकर भी इस रत्न को निकाला जाता है । दक्षिण भारत में नदियों के किनारे खेतों में भी लहसुनिया मिलता है। मध्य प्रदेश में भी इसकी नई खदान पाई गई है । इस खदान से लहसुनिया अधिक मात्रा में तथा उच्चश्रेणी का निकाला जा रहा है।
लहसुनिया केतु ग्रह का रत्न है। केतु ग्रह के प्रकोप से बचने के लिए लहसुनिया पहना चाहिए । यह रत्न काफी प्रभावी माना जाता है । राहू को दशा को भी यह रत्न अनुकुल रखता है। राहू, केतु तथा शनि की दशा में भी धारण किया जा सकता है।
इसके धारण से शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। दिमागी परेशानियाँ दूर होती है। लहसुनिया अनुकुल आ जावे तो शीघ्र ही मालामाल बना देता है।
इस रत्न को चांदो या पंचधातु की अंगूठी में जड़वा लेना चाहिये। बुधवार या शनिवार के दिन प्रातः सूर्य उदय होने से पहले शद्ध जल या गंगाजल में धोकर अपने इष्टदेव के चित्र, मूर्ति आदि के चरणों से स्पर्शकर सीधे हाथ की बीच वाली अंगुली में धारण कर लेना चाहिये। विश्वासपूर्वक धारण की हुई वस्तु सफलता अवश्य देती है। आयुर्वेद :
लहसुनिया की पिस्टी या भस्मी आयुर्वेद चिकित्सा में काम आती है। इससे वायुशूल, कृमि, रोग, बवासीर, कफज्वर, मुखगन्ध आदि रोग नष्ट हो जाते हैं।
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नोट: हमारे यहां नव रत्नों की माला बनी हुई तैयार मिलती हैं।
आयुर्वेद शास्त्रीय विधि से बनाई हुई नहसुनिया की पिस्टी और भस्म भी उपलब्ध है।
प्राप्ति स्थान :योगीराज मूलचन्द खत्री
एवम् श्रीमती सुशीला खत्री शिव रत्न केन्द्र (रजि०) सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल, गऊघाट हरिद्वार
उपरत्न मूल स्टोन : - इसे चन्द्रमणि भी कहते हैं । यह मोती का उपरत्न है। इसको पहनने से मानसिक शान्ति मिलती है। स्फटिक :
___ यह होरे का उपरत्न है। इसको धारण करने से पुत्र और धन की प्राप्ति होती है। इसमें सरस्वती का बास होता है। ओनेक्स:
(हरा मरगज) पन्ने का उपरत्न होता है। इसको धारण करने से आँखो की रोशनी बढ़ती है। गारनेट :
(तामड़ा) मूगा, माणिक का उपरत्न है। सुनहरा टोपाज :
यह पुखराज का उपरत्न है। गोमेद :
इसका कोई उपरत्न नहीं है । रत्न ज्ञान
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एमेथीस-(जामुनिया) का उपरत्न है। टाईगर-(पासन) लहसुनिया के नाम से बिकता है । ओपल-मोती व हीरे का काम करता है। धुनैला-इसे स्मोकिंग टोपाज कहते हैं। यह एक शक शौकिया पत्थर है। ब्लैक स्टार-यह शनि की शान्ति के लिये पहना जाता है। फिरोजा-हर मटमैले कलर में होता है। मुसीबत में पड़ा इन्सान इसे पहन लें तो तुरन्त अपना प्रभाव दिखाता है। वेरुज-नीले, हरे सफेद रंग का होता है। विक्रान्त-तुरमली हीरे का उपरत्न है। गौदन्ता-मूलस्टोन को कहते हैं। लालड़ी-माणिक की जगह पहना जाता है। लाजवर्त-शनि का पत्थर है। कटहैला-जामुनी रंग का होता है। दानाफिरङ्ग-गुर्दे के दर्द में फायदा करता है। मारियम-यह बवासीर में फायदा करता है। हजरते बेर-सभी प्रकार के दर्दी में फायदा करता है। हकीक-मारबल स्टोन, खेल-खिलौने बनाने का एक शुद्ध पत्थर राशि में फायदा करता है। यह कई रंगों में पाया जाता है, इसमें अनेक क्वालिटी होती है, यह सस्ता व मंहगा दोनों प्रकार का होता है। [५८)
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ॐ नमः शिवाय
रत्न व उपरत्न ८४ प्रकार के होते हैं इनके नाम निम्न है। सभी 'शिव रत्न केन्द्र' से प्राप्त किये जा सकते हैं ।
१. माणिक
२. हीरा
३. पन्ना
४. नीलम
५. लहसुनिया ६. मोती
७. मूंगा
८. पुखराज ६. गोमेद
१०. कहरुबा
११. जबरदात
१२. तामड़ा
१३. विक्रान्त
१४. धुनैला
१५. फिरोजा
१६. सिदूरिया
१७. सीजरो
१८. सुरमा
रत्न ज्ञान
१६. स्फटिक
२०. बेरुज
२१. मरगज
२२. लालड़ी
२३. लाजवर्त
२४: सन सितारा
२५. सुनहरा
२६. स्टार माणिक
२७. पुटाश
२८. ओपल
२६. उदाऊ
३०. एमन्नी
३१. कटैला
३२. कासला
३३. गौदन्ता
३४. गौरी
३५. गुरु
३६. चकमक
३७. गौदन्ती
३८. चित्ति
३६. जजेमानी
४०. चुम्बक
४१. जहरमोरा
४२. तिलियर
४३. तुरसावा ४४. दानाफिरङ्ग
४५. दाँतला
४६. नरम
४७. पितोनिया
४८. फातेजहर
४६. यशव
५०. रातरतुबा
५१. सुलेमानी
५२. मारवर
५३. मूवे नजफ
५४. मूसा
[५]
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५५. हकीक
५६. हजरते बेर
५७. अजुवा
५८. अहवा
५६.
अबरो
६०.
अलेमानी
६१. अमलिया
६२. कुदरत
६३. कसौटी
६४. कुरण्ड
卐 彩
卐
[६०]
६५. झरना
६६. डूरा
६७. टेड़ी
६८. दारमना
६६. दूरेनजफ
७०. पनधन
७१. पारस
७२. बासी
७३. मक्खी
७४. मरियम
७५. दूधिया
७६. लास
७७. वसरी
७८. संगेमहूद
७६. संगे जराहत
८०. सीबार
८१. संखिया
८२. सिफरा
८३. सोहन मक्खी
८४. हदीद
हमारे यहाँ शुद्ध की हुई स्फटिक की माला
★ फुल साईज १५० /- रुपये
★ मीडियम साईज १२५/- रुपये
★ मोडियम साईज से छोटी ७५ /- रुपये
★ सबसे छोटी माला ६० /- रुपये
माल वी०पी०पी० द्वारा भी भेजा जाता है ।
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तादाद
१ पीस
१ पीस
१ पीस
१ पोस
१ पीस
१ पीस
१ पीस
१ पीस
१ पोस
पीस
१ १ पीस
१ पीस
१ पीस
१ पीस
पीस
१ पीस
१ पीस
रत्न ज्ञान
ॐ नमः शिवाय
मूल्य सूची [असली रुद्राक्ष ]
रुद्राक्ष के
मुख
१ मुखी
२ मुखी
३ मुखी
४ मुखी
५ मुखी
६ मुखी
७ मुखी
८ मुखी
६ मुखी
१० मुखी
११ मुखी.
१२ मुखी
१३ मुखी
१४ मुखी
गौरी शङ्कर
गर्भ गौरी
गणेश रुद्राक्ष
स्पे० क्वालिटी
मूल्य
५१२५
२५
२५
११
११
११
३१
८५
१५१
१२५
३०५
२२५
३५५
१२२५
५०५
२०५
७०
II क्वालिटी
मूल्य
२५१
२
१
२
१५
४५
६५
७५
२२५
१५०
२२५.
६२५
३०५
१२५
२५
[६१]
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* असली रुद्राक्ष की मालायें *
आंवले के आकार में रूद्राक्ष आंवले के आकार से छोटी जंगली बेर के आकार से मोटी जंगली बेर के आकार में जंगली बेर व काबली चने के बीच के आकार में काबली चने से मोटा आकार काबली चने के साईज में काबली चने के साईज से छोटी इससे भी जरा और छोटी काबली चने के साईज से कुछ छोटी
काले चने के साईज में
काले चने के साईज से छोटी
इन दोनों से छोटी
काली मिर्च साईज में रुद्राक्ष
डबल जीरो नम्बर में
रुद्राक्ष की माला चांदी के तार में ५५ दानों की
काबली चने के साईज में
माणिक
मूंगा लाल
मूंगा सिन्दूरी
मोती बेडोल
मोती गोल
[६२]
५५, ६५, ७५, ६५) प्रति माला १०५) प्रति माला १२५) प्रति माला १४५) प्रति माला १६५) प्रति माला
२०५) प्रति माला
स्फटिक १०८ दाने की माला अलग-अलग ७०, ७५, ८५, ६५, * राशि रत्न अच्छे व सफा *
साईज में
२५/
४५/
३०/
१५/
२५/
१०) प्रति माला २०) प्रति माला ३०) प्रति माला ३५) प्रति माला
-
२५५) प्रति माला
३०५) प्रति माला ३५५) प्रति माला ४५०) प्रति माला ५०५) प्रति माला
६५) प्रति माला
१२५ ) प्रति माला
एक रत्ती
एक रत्ती
एक रत्ती
एक रत्ती एक रत्ती रत्न ज्ञान
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________________
पन्ना सफा
२५/
एक रत्ती पुखराज
८५/
एक रत्ती नीलम
८५/
एक रत्ती सफेद पुखराज
६५/
एक रत्ती लहसुनिया
१५/
एक रत्ती गोमेद
१०/
एक रत्ती हीरा ३००/
१० सेंट सुनहला गहरा पीला
१५/
एक रत्ती सुनहला हलका पीला
एक रत्ती ओनेक्स ३ रु०, एमेथिस्ट
एक रत्ती गारनेट ३ रु०, पोमेद
एक रत्ती मूंगा छेदवाला १० रु०, ओपल १०/
एक रत्ती एक्वामेरी
२५/
एक रत्ती मरगज २ व ५/
एक रत्ती टाईगर २ रु०, ब्लैक स्टार २/
एक रत्ती धुनेला . २/
एक रत्ती स्फटिक ३ व ५/
एक रत्ती मूंगे की माला ५००/
एक माला स्फटिक की माला १० ग्राम की १०८ दाने में
७५/
एक माला सीप से निकले सच्चे मोती की १०८ दाने की माला ५००) गारनेट की माला ३०, ३५, ४५ रुपये तोला। मानसिक शान्ति, धन प्राप्ति और मान-सम्मान के लिये हर राशि का पत्थर १०) रत्ती है। कम से कम पांच रत्ती पहना जाता है, फायदा न होने पर छः माह तक वापिस करें, राशि पत्थर पहनने की विधि साथ भेजी जाती है । नोट-राशि का पत्थर मंगवाने के लिये वर्तमान नाम साथ लिखकर
भेजे। रत्न ज्ञान
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हमारे यहां बढ़िया किस्म के असली रत्न और एक मुखी से चौदह मुखी रुद्राक्ष के छोटे-बड़े दाने मिलते हैं ।
जैसे नीलम, माणिक, पुखराज, लहसुनिया, गोमेद मूंगा पन्ना, मोती, तथा असली रुद्राक्ष के दाने व मालायें तथा अनेक प्रकार के उपरत्न इत्यादि ।
स्फटिक, मूंगा, सीप तथा अनेक प्रकार की मालायें नर्वदेश्वर स्फटिक के शिवलिंग, दाहिनावत शङ्ख, हत्ता जोड़ी, गीदड़सींगी, दाब का बन्दा तथा एक मुखी रुद्राक्ष आदि का एकमात्र प्राप्ति
स्थान ।
असली माल की गारण्टी दी जाती है ।
माल वी०पी०पी० द्वारा भी भेजा जाता है ।
रुद्राक्ष महात्म्य की पुस्तक व रत्न धारण की पुस्तक भी उपलब्ध है ।
★ हमारे यहां माल होलसेल में कमीशन रेट पर मिलता है । ★ हर प्रकार के स्टोन की मालायें हमारे यहाँ से प्राप्त करें ।
* असली नौरत्न की अँगूठी चांदी में *
प्रथम साईज ( छोटे नग में) द्वितीय साईज ( उससे छोटे नग में) तृतीय साईज ( उससे छोटे नग में) चतुर्थ साईज ( उससे छोटे नग में ) पंचम साईज ( उससे छोटे नग में) षष्ठम् साईज (उससे छोटे नग में ) सप्तम् साईज ( उससे छोटे नग में ) अष्ठम् साईज ( सबसे बड़े नग में )
[ ६४ ]
६५ रुपये
७५ रुपये
१२५ रुपये
१७५ रुपये
२५० रुपये
३५० रुपये
५०५ रुपये
७०० रुपये
रत्न ज्ञान
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शिव रत्न केन्द्र (रजि.) हरिद्वार
नवरत्न के पेंडल :फुल साईज ११००/- मीडियम साईज ६५०/छोटा साईज ३५०/- सबसे छोटा,, १५०/
शिव रत्न केन्द्र (रजि.) हरिद्वार
बाजुबन्द :फुल साईज ११००/- मीडियम साईज ६५०/छोटा साईज ३५०/- सबसे छोटा, १४०/
शिव रत्न केन्द्र (रजि.) हरिद्वार
बड़ा साईज ६५०/- मीडियम साईज ३५०/ICT HIS RRX w.lainelibrary.org
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For Private & Personal Use On
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रुद्राक्ष की माला और उसके लाभ
रूद्राक्ष की प्रत्येक माला पांचमुखी रूद्राक्ष से बनी होती है चाहे वह छोटे दाने की हो अथवा बड़े दाने की । बड़े दानों की माला कम पैसों की होती है । ज्यों-ज्यों छोटा दाना होगा मूल्यवान होती जाती है । परन्तु छोटे या बड़े रूद्राक्ष के गुणों में कोई अन्तर नहीं होता ।
रूद्राक्ष की माला से किसी भी देवता का जाप किया जा सकता है । कोई भी इष्ट हो सभी प्रसन्न होते हैं । महादेव होने से अन्य देवता भी इस माला का आदर करते हैं । इस माला के जप से अनेक पापों का नाश होता है । जीवन सुखी और आनन्दमय हो जाता है |
रूद्राक्ष की माला से शरीर निरोग रहता है। ब्लड प्रेशर एवं हार्ट अटैक का भय नहीं रहता। मानसिक परेशानियां नहीं होती, अकालमृत्यु नहीं होती । बिजनेस, व्यापार में उन्नति होती है । मान सम्मान में वृद्धि होती है । इस माला को स्त्री-पुरूष भी धारण कर सकते हैं।
शौच एवं स्त्री सम्भोग के समय माला को उतार दिया जाये तो अच्छा है । यदि नहीं उतार सकें तो बाद में उसे शुद्ध जल से धोकर अपने इष्ट के चरणों से स्पर्श कर पुनः धारण कर लें । धागा मैला हो जाये तो सर्फ से माला को धो लें । पुनः सुखाकर रूद्राक्ष में सुगन्धित इत्र या सरसों का तेल लगा दें। रूद्राक्ष में पुनः शक्ति आ जाती है ।
रूद्राक्ष में मुख बनाये हुये हैं या प्राकृतिक, घुना हुआ तो नहीं हैं, असली है या नकली और भी इसके अन्दर कोई दोष तो नहीं है, कुछ अन्य भी रहस्यपूर्ण दोष हो सकते हैं । इन बातों को प्रत्येक व्यक्ति नहीं जानता, इसके लिये आप शिव रत्न केन्द्र पर पधारिये ।
[ ६५ ]
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शुभकामनाएं एवं शुभ-सन्देश !
सर्व व्यापी परम् पिता परमेश्वर की महान् कृपा तथा आशीर्वाद समस्त प्रेमियों, बन्धु बान्धवों, आदरणीय माताओं और बहिनों, देश विदेश की प्रेमी जनताओं से हमें अनेक पत्र प्रतिदिन प्राप्त होते रहते हैं। उन सब महानुभावों के असीम प्यार एवं श्रद्धा का मैं बहुत आभारी हूँ। __मैं उन सभी महानुभावों का हृदय से आभारी हूँ। जो मुझे सेवा का अवसर प्रदान करते हैं।
मैं उन सबका भी बहुत आभारी हूँ जिनके मैं दर्शन नहीं कर . सका और वे शिव रत्न केन्द्र की उन्नति में सदैव लगे रहते हैं। मैं सभी शिव रत्न केन्द्र के शुभचिन्तकों के लिये ईश्वर से उनके कल्याण की कामना करता रहूंगा कि ईश्वर उनका जीवन सदा खुशहाल बनाये रखे। मैं आगे भी आशा करता हूं कि आप सभी का अमूल्य सहयोग मुझे मिलता रहेगा यदि मुझसे जाने अनजाने में कोई गलती हो गई हो तो उनको क्षमा करें। तथा पत्र द्वारा सूचित भी करें जिससे हम अपनी गलती को सुधार सकें। निवेदन
शिव रत्न केन्द्र में आने वाले सभी शुभ चिन्तकों से निवेदन है कि वे अपने साथियों को सलाह व खरीदारो की सेवा के लिये सन्तल सराय, ऊपरी मंजिल के पते पर भेजें आपके इस सहयोग के लिये सदा मैं आभारी हूँ। आपकी सेवा में सदैव तत्पर :
योगीराज मूलचन्द खत्री शिव रत्न केन्द्र (रजि0) सन्तल सराय, दूसरी मंजिल गऊघाट, हरिद्वार
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ॐ नमः शिवाय
माताओं व बहनों के लिए
खुश खबरी शुभ सूचना
न्म शिव रत्न केन्द्र से, लेडिज एडवाईजर से वे सभी माता बहने, जो अक्सर संकोचवश अपनी हृदय की बात नहीं कह पाती निराश न हो, शिव रत्न केन्द्र में आने वाले सभी शुभ चिन्तकों के अथाह आग्रह पर न्यू शिव रत्न केन्द्र से श्रीमती सुशिला खत्री लेडीज एडबाईजर, विवाह न हो, जटिल समस्याएँ, नौकरो ऐसे रोगों का शिकार होना जो अपने आप कहने में संकोच रखती हैं, निराश न हों, स्त्रियों के भयानक रोग जैसे अलसर, हिस्टिरिया, फिट्स स्पेनडिक्स, किड़नो ट्रबल, ऐसे समय में निराश होने की आवश्यकता नहीं है उसकी राशि अशुभ फल कर रहे ग्रह का शुद्ध विधि एवं शुभ समय में रत्न शुद्ध रुद्राक्ष धारण करना चमत्कारी प्रभाव देता है।
सलाह मुफ्त ले, मिले या लिखें
लेडिज एडवाईजर श्रीमती सुशीला रवत्री शिव रत्न केन्द्र (रजि०) सन्तल सराय, दूसरी मंजिल गऊघाट, हरिद्वार-२४६४०१
फोन नं. : ६६६५
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६० रुपये
स्फटिक की माला एवं नग-नगीने
तथा शिवलिंग स्फटिक हिमालय की खानों से निकला हुआ कांच के समान चमकदार व पारदर्शी पत्थर है। यह हीरे का उपरत्न होता है। जिसको धारण करने से धन, पुत्र मान सम्मान एवं वशीकरण व सुख शान्ति की प्राप्ति होती है तथा यह रति क्रिया को भी प्रबल करता है। स्फटिक पर तान्त्रिक लोग या सिद्ध पुरुष त्राटक सम्मोहन करते हैं। यह अनेक गुणों से भरपूर होता है । स्फटिक की माला से किया हुआ जप तथा स्फटिक का शिवलिंग अति शुभ एवं कार्य सिद्धि वाला कहा जाता है। __हमारे यहाँ शुद्ध स्फटिक की मालायें १०६ दानों में काले चने के साईज से छोटी माला काले चने के साईज में
६५ रुपये काले चने के साईज से बड़ी
७० रुपये काबली चने के साईज में
७५ रुपये काबली चने के साईज से मोटी
८५ रुपये जंगली बेर की गुठली के साईज में
६५ रुपये और बड़े साईज में
१२५ व १५० रुपये स्फटिक के अनेकों फायदे हैं जिसकी पूर्ण जानकारी के लिये कृपया ऊपरी मजिल पर ही आने की कृपा करें।
निवेदक :योगीराज मूलचन्द खत्री शिव रत्न केन्द्र [रजि०]
सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल, गऊघाट, हरिद्वार-२४६४०१ (फोन : ६६६५) रत्न ज्ञान
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ॐ नमः शिवाय शिव रत्न केन्द्र [रजि०] सन्तल सराय, ऊपरी मञ्जिल, गऊघाट, हरिद्वार
"शिव रत्न केन्द्र" रत्न, रुद्राक्ष, ज्योतिष यन्त्र, तान्त्रिक सामग्री हर प्रकार की मालाओं का व्यापारिक संस्थान है। उक्त सामग्रियों के लिए जिसकी देश तथा विदेश में भी ख्याति है। यह संस्थान गंगातट, गऊघाट, हरिद्वार में है।
अब तक को सज्जन 'शिव रत्न केन्द्र' के सम्पर्क में नहीं आये उनके लिए हरिकी पैड़ा (ब्रह्मकुण्ड) पर प्रत्येक यात्री स्नानार्थ आला है। हरिकी पैड़ी के निकट ही गङ्गाजल बहाव (दक्षिण दिशा में) सुभाष घाट है। इस घाट पर आजाद हिन्द सेना के सेनानायक श्री सुभाषचन्द बोस का आदमकद मूर्ति (स्टेच्यू ) है। थोड़ा आगे चलकर इमारतों की ओर बढ का वृक्ष दिखाई देगा। इसके नीचे सन्त महात्माओं का धूना लगा रहता है। इस स्थान का नाम शिव भण्डार अन्नक्षेत्र है। यहाँ से खड़े होकर देखने पर 'शिव रत्न केन्द्र' लिखा बोर्ड रास्ते के साथ रखा दिखाई देगा। बोर्ड के पास पहुँचने पर अपने दाहिनी ओर रंग-बिरंगे, चमकदार कई प्रकार के राशि पत्थर, रुद्राक्ष, मालायें, शङ्ख, सोप आदि सजे सजाये लगे हए मिलेंगे। यह सब सामग्री ३, ४ कार्यकर्ता यहाँ मिलेंगे जो कि श्री बख्तमल की समाधि स्थल है। इसी के साथ अलका होटल का द्वार हैं। यह दुकान 'शिव रत्न केन्द्र' के नमूना रूप में है, परन्तु यह बिक्री केन्द्र नहीं है। मूल्यवान एवं प्रत्येक वस्तु अधिक मात्रा में मिलने वाला शोरूम पहुँचा देंगे और यदि आप स्वयं ही पहुँचना चाहें तो इस दुकान से तीस कदम आगे गऊघाट गङ्गा पुल को सीढियों से (दक्षिण से उत्तर को चले तो) ५० कदम आगे बोर्ड शिव रत्न केन्द्र का मिलेगा। इसको आप ध्यान से पढ़िये । [६६]
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सावधान :__लगभग पांच वर्ष पहले हरिद्वार में रत्नों की कोई दुकान नहीं थी। शिव रत्न को प्रसिद्धि को देखकर रत्नों की कई दुकान खुल गई हैं। भ्रमित करने के लिए सभी ने शिव रत्न से मिलते-जुलते शक्ति आदि नाम भी रख लिए । अत: शिवरत्न बोर्ड के साथ नौसिखियों के बोर्ड भी लगे हुए हैं। जो इबारत शिवरत्न बोर्ड पर लिखी गई है, उसी से मिलती-जुलती उन्होंने भी लिखाई है। शिवरत्न ने सावधान लिखाया है, तो उन्होंने भी, बोर्ड को ध्यान से न पढ़ने के कारण कोई-कोई नीचे की दुकान पर ही फंस भी जाते हैं। जिन्होंने खत्री जी का फोटो देखा हो, उस कारण पूछ भी लें कि महाराज कहाँ हैं, तो उत्तर मिलता है, काम से गये हैं, आने वाले हैं । हम उनके भाई, बेटे या अन्य सम्बन्धी हैं। ऐसी बातों पर विश्वास कर ग्राहक ठगा जाता है। इसलिए आप नीचे न ठहरिये । सन्तल सराय :
बोर्ड के पास खड़े होकर इमारत की ओर देखने से एक ओर बर्तनों की दुकान दिखाई देगी। दूसरी ओर नग-नगीने, अंगूठी. रुद्राक्ष, दीवार पर तान्त्रिक सामग्री लिखी हुई आदि दिखाई देगी। मालूम होता है यह दुकान इमारत के द्वार भाग में से हो बनाई गई है। इन दोनों दुकानों के बीच एक कम चौड़ा (लगभग ३ फुट) रास्ता है । इसमें आप प्रवेश करें। इसी इमारत को सन्तल सराय, कहते हैं। सन्तल ग्रामवासियों ने इस इमारत को यात्रियों के विश्राम हेतु बनवाया था। अब भी इसमें यात्री आकर विश्राम करते हैं। ऐसे स्थानों को धर्मशाला भी कह देते हैं। मुगलकाल में ऐसी इमारतों को सराय भी बोला जाता था इमारत में ऊपर चलिये, शिव रत्न शोरूम में पहुँचिये । रत्न ज्ञान
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योगीराज जी के दर्शन :
इस कम चौड़े द्वार से अन्दर पहुँचने पर शिवरत्न का बोर्ड मिलेगा। जिसमें तीर का निशान सकेत कर रहा है। इस संकेत (दांई ओर) चलने पर सीढ़ियाँ मिलेगी, हर तीन चार या पाँच सीढ़ियों के बाद मोढ़ आता है । लगभग तीन मोड़ के बाद फ्लोर बांई ओर को भी सीढ़ी है । परन्तु आपको दाहिनी ओर ही मुड़ते हुए जाना है। बीच-बीच में कई जगह शिवरत्न लिखा मिलेगा। ऊपरी मञ्जिल पर पहँचकर शोरूम में योगीराज मूलचन्द खत्री जी के दर्शन होंगें। योगीराज मूलचन्द खत्री जी:
गंगोत्री, यमनोत्री बद्री केदार से काशी और बंगाल तक के बहुत से सन्त महात्माओं से परिचय है, अपनी भी कुछ साधना करते हैं। वर्ष में उस साधना का अनुष्ठान भी करते हैं । परन्तु उसे प्रकाशित नहीं करते। रत्न और मद्राक्ष के द्वारा जनता की सेवा युवावस्था के प्रारम्भ से ही करते रहे हैं । स्वयं प्रारम्भ से राशि के पत्थरों, रत्नों से जड़ित अष्ट धातु की अगूठियाँ घम-घूम कर बेचा करते थे। अंगूठी बेचते-बेचते थोड़े ही दिनों में छोटी सी दुकान खोल ली। दुकान में सहायक कार्यकर्ता रखने पड़े। उन कार्यकर्ताओं ने खत्री जी से कुछ सीख कर अपनी-अपनी दुकानें खोल लीं। हरिद्वार में नग-नगीने अंगूठी आदि की दुकानें शिव रत्न केन्द्र से कुछ सीखे हुए नव सिखियों की हैं । परन्तु खत्री जी के काम में कोई कमी नहीं आई। क्योंकि उनके अनुभव से लोगों को लाभ होने की प्रसिद्धि बढ़ती रही। इसी कारण आज उनका शोरूम मूल्यवान रत्न रुद्राक्ष, केशर, कस्तूरी अष्टगन्ध से युक्त परिपूर्ण है। जयपुर, मद्रास, आदि नगरों के जौहरी उनका आदर करते हैं। देश के रत्नों के बाजार में उनका आदर करते हैं। देश के रत्नों के बाजार रत्न ज्ञान
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में उनकी जौहरियों में गिनती है। सभी हरिद्वार के बाजार को छोड़कर अपने घर (निवास स्थान) में बैठे हैं । वहां भी उनके पास ग्राहक पहुँचता है । सभी दुकानों से अच्छी बिक्री भी होती है।
ऐसा क्यों-- खत्री जी को रत्न और रूद्राक्ष के सम्बन्ध में बड़ा पुराना अनुभव है। अब तक कई लाखों ग्राहकों को उनके नाम को राशि के हिसाब से रत्न दिये। उनमें से सभी की मनोकामना पूर्ण हुई । यदा-कदा किसी को लाभ नहीं हुआ, तो उसे दो हुई वस्तु को वापिस बदलकर दिया। इसी प्रकार अनेकों लोगों पर हुए प्रयोगों का अध्ययन किया जाए तो बड़े गहन अनुभव से गुजरना होगा।
रोजगार में घाटा हो रहा है. घर में कलह रहती है बीमारी घेरे रहती है असाध्य रोग से पीड़ित है समाज में इज्जत नहीं रह गई है, पढ़ने में मन नहीं लगता, नौकरी नहीं लग रही या उन्नति नही हो रही है मुकद्दमे में फंसे हुए हैं आदि-आदि । योगीराज जी से बताईये अवश्य ही आपको निःशुल्क उपाय बताया जायेगा।
लाखों लोगों को लाभ पहुँचने के अर्थ है खत्री जी किसी को नकली वस्तु नहीं देते यदि व्यक्ति वस्तु की परख में अपनी अयोग्यता होने पर भी योग्यता दिखाकर नकली पसन्द कर लें तो उसके लिये यह अपना गारण्टी कार्ड नहीं देते।।
शिव रत्न केन्द्र के प्रचार कार्य के लिये उनका कहना है भगवान् शङ्कर घर बैठे सबसे अधिक दे रहे हैं तो प्रचार किस लिए किया जाए। मेरे या केन्द्र के नाम से कोई ठगा न जाए, इस लिए बोड लगा दिये हैं।
शिव रत्न केन्द्र से कोई भी वस्तु खरीदने पर गारण्टी कार्ड दिया जायेगा जिसमें लिखा होगा नकली साबित करने वाले को १,५०,००० रुरये नगद ईनाम दिया जायेगा।
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शिव रत्न केन्द्र [रजि०]
| www.jainelibrarorg
शन
यु.पी.एस.टी. नं० एच.आर. ६०५० सी.एस.टी. नं० एच.आर. ५५०६
योगीराज मूलचन्द रखत्री सन्तल सराय, ऊपरी मंजिल, गऊघाट, हरिद्वार-२४६४०१
रुद्राक्ष व रत्नों के थोक एवं फुटकर विक्रेता ॐ नमः शिवाय नक्षत्र चरण अथवा नाम के प्रथमाक्षरानुसार रत्न व नग
मूल्य प्रति रत्ती (रुपये में) नक्षत्र
नामाक्षर
| राशि | स्वामी नक्षत्र रत्न | विशेष श्रेणी | I श्रेणी | II श्रेणी | II श्रेणी | स्थानापन्न नग अश्विनी भरणी कृतिका।। च चे ची ला ली लू ले ला ओ ।
भौम
मूंगा | ४५ से ६० | ३५ से ४० | २५ से ३० / १५ से २० | गारनेट, सुलेमानी, रतुवा, माणिक है। कृत्तिका,रोहिणी,मृगशिरा । ई उ ए ओ का वि वू वे वो
होरा |५००, १० सेंट/३००, १० सेंट २००, १० सेंट/१५०, १० सेंट स्फटिक, सफेद टोपाज, जरकोन, सफेंद पु० मृग, आर्द्रा, पुनर्वसु ॥ | का को कु घ ड़ छ के को झ ।
पन्ना | १५० से ३००/८५ से १०० | ४५ से ६५ | १५ से ४० | परीडाट, ओनेक्स, हरा मरगज। पुनर्वसु, पुण्य, अश्लेषा ही ह हे हो डा डी डू डे डो
मोती | १०० से १५० ५० से १०३० से ४० १५ से २५ चन्द्रमणि, ओपल सा मघा, पू-फ, उ-फ मा मो मे मो म ट टू टी टे
माणिक | १५० से ३०.८५ से १००/ ४५ से ६५ / १५ से ४० | ब्लॅडस्टोन, सूर्यकान्तमणि, गारनेट, सिदूरी ऊ-फ, हस्त, चित्रा। टो पा पी पू ष ण ट पे पो
पन्ना | १५० से ३०० ८५ से १०० | ४५ से ६५ | १५ से ४० | पैरोडाट, ओनेक्स, हरा मरगज। चित्रा, स्वाति, विश ॥ रा री रु रे रो ता ती तू ते
हीरा ५००, १० सेंट/३००, १० सेंट |२००, १० सेंट/१५०, १० सेंट स्फटिक, सफेद टोपाज, सफेद पुखराज ।। विश, अनु, ज्येष्ठा तो ना नी न ने नो या यी यू
मूंगा ४५ से६०३५ से ४० २५ से ३० । १५ से २० गारनेट, सुलेमानी, रतुवा, माणिक ।
गा मूल, पू-षा, ऊषा, ये यो भा भी भू ध फा ढा मे
१५० से ३०० ८५ से १०५/६५ से ८०-३५ से ५५ | सुनहला, स्वर्ण पत्थर, पीला जरकीन ।
सुन उ-षा, श्रवण, निष्ठा । । भो जा जी ख खी खे खो गा गी
मकर शान
| नीलम | २५० से ५०० १५० से २२५/ ७५ से १०५/ ५५ से ७० | नीली, जामुनिया, पीला मरगज, काकानील घनिष्ठा, शतभि, पू-भा॥ | गू गे गो सा सी सू से सा दा कुम्भ | नीलम | २५० से ५००/१५० से २२५ ७५ से १०५ ५५ से ७० नीली, जामुनिया, पोला मरगज, काकानील पू-भा, ऊ-भा, रेवती झ अ दे दो चा ची ।
सुनहला, स्वर्ण पत्थर, पोला जरकोन।।
पन्ना । होरा । नोट : उपरोक्त लिखित मूल्यवान, अर्द्धमूल्यवान रत्न व नगों के अतिरिक्त कम मूल्यवान परन्तु बहुत
मोतो प्रभावशाली नग जैसे-स्मोको टोपाज, ब्लैकस्टार, स्वण पत्यर, मैंलेकाइट, लैपिस लैज्यूली, जेड टाइगर
पुखराज
माणिक मूंगा आई, एक्वामरीन, फिरोजा, सनस्टोन, पिटोनिया, कालियन । हमारे प्रदर्शन कक्ष में उचित मूल्यों पर हमेशा उपलब्ध हैं । स्थानापन्न नगों व कम मूल्यवान नगों के मूल्य एक रुपये प्रति रत्ती से तीस रुपये लहसुनिया | नीलम गोमेद प्रति रत्ती तक गुणानुसार हैं।
Cel
PROHI
नोट-हमारे यहाँ की खरीदी गई वस्तु नकली साबित करने पर 1,50,000 रु० तक का इनाम दिया जायेगा। माल पसन्द न आने पर माह तक वापिस किया जा सकता है। अनेक प्रकार को पूजा
तान्त्रिक सामग्री हमारे यहां से प्राप्त करें। हमारी प्रत्येक वस्तु शुद्ध मिलेगी। माल वो० पी० पी० द्वारा भी भेजा जाता है।
Jain Eden
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P.S.T. No. HR 9050 S. T. No. HR 5506
. T. No. HR SON
Shiv Ratan Kendra (Regd.)
3:6965
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[STONE MART YOGIRAJ MOOLCHAND KHATRI Santal Saray, 2nd Floor, Gau Ghat, Hardwar-249401 [INDIA]
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LUCKY STONE ACCORDING TO DATE OF BIRTH Approximate Date as per
Sun Sign. Ruling
Price (in Rupees) Per Ratti Astral Gems
Substitute Stones English Calender
Spl. Quality 1st Quality | 2nd Quality | 3rd Quality 14th April to 15 May Aries Mars
Coral
45 to 60 35 to 40 25 to 30 15 to 20 Red-Agate, Garnet, Orange-Agate. 15th May to 15 June Taurus
Diamond
500 (10 Cent) 300 (10 Cent) 200 (10 Cent) 150 (10 Cent) White-Agate, Rock Crystal, White Topaz, Zirconia 15th June to 16 July Gemini Mercury Emerald
150 to 300 85 to 100 45 to 65 15 to 40 White-Sapphire. 17th July to 17 August Cancer
Moon Pearl
| 100 to 150 50 to 90 30 to 40 15 to 25 Onex, Green-Agate, Peridot. 17th Aug to 16 Sept. Leo
Sun Ruby
150 to 300 85 to 100 45 to 65 15 to 40 Moon-Stone, Blood-Stone. 17th Sept, to 16th Oct.
Virgo Mercury Emerald
| 150 to 300 85 to 100 45 to 65 15 to 40 White Topaz, White Sapphire, Rock, Crystal. 17th Oct, to 15th Nov. Libra Venus Diamond
|500 (10 Cent) 300 (10 Cent) 200 (10 Cent) 150 (10 Cent) White Agate, Zirconia. 16th Nov. to 15th Dec. Scorpio Mars Coral
45 to 60 35 to 40 25 to 30 15 to 20 Red-Agate, Garnet, Orange-Agate. 16th Dec. to 14th Jan. Sagittarius Jupiter Yellow-Saphire 150 to 300 85 to 105 65 to 80 35 to 55 Golden Topaz. 15th Jan. to 12th Feb. Capricorn Saturn Blue-Sapphire 250 to 500 150 to 225 75 to 105 155 to 70 Lemon Topaz. 13th Feb. to 14th March Aquarius Saturn Blue-Sapphire 250 to 500 | 150 to 225 75 to 105 55 to 70 Lolit 15th March to 13 April Pisces Jupiter Yellow-Sapphire 150 to 300 85 to 105 65 to 80 35 to 55 | Amithyst
NINE JWELS GRAPH Note- Apart from above mentioned precious and semi-precious Gem-Stones. There are sub-precious
EMERALD DIAMOND but effective stones such as smoky Topaz, Black-Star, Golden Stone Maiachite, Lapis-Lazuly,
PEARL Jade, Tigereye, Aquamarine Turquoise, Sun-Stone, Pitonia, Cerlian all readily available at
GOLDEN
RUBY CORAL reasonable prices at our Sbow Room,
SAPPHIRE Prices of substitute stones and sub precious stone are from on rupees per ratti to thirty rupees
HESSONITE CATS EYE
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CINNAMON per ratti according to quality.
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________________ डाक पंजियन SHL/1-13/677/87 रजि०ए०एल० 44/49/85 शुभ-सन्देश सर्व अन्तर्यामी परम् पिता परमेश्वर ने TA इस संसार म अनेक अद्भुत कल्याणकारी SP वस्तुओं का सृजन किया है। अनुभवी ज्ञानी ऋषि-महर्षि ज्योतिषाचार्यों ने अपनी साधना तथा अनुभवों के आधार पर रत्नों की खोज समस्त चराचर जगत् दुःख-सुख से भरा है-दुःखों का कारण है ग्रहों का रुष्ट होना रुष्ट - ग्रह से पीड़ित मानव दुःख-सुख के झूले में झूलने लगता है। वह निर्णय नहीं कर पाता, ऐसे समय में भयभीत न हों, रुष्ट ग्रह की शान्ति के लिये, नो रत्न, उपरत्न, (राशि-पत्थर) रुद्राक्ष व रुद्राक्ष की मालाएं सही जानकारी से धारण करने पर कभी नुकसान नहीं देते हैं, राशि के नग-नगीने, रुद्राक्ष, ईश्वरीय देन है जो मनुष्य की प्रत्येक मनोकामना पूर्ण करते हैं। धन्यवाद ! नोट-सन्तल सराय बिल्डिंग के नीचे व पहली मंजिल पर हमारी कोई भी दुकान नहीं है। सन्तल सराय बिल्डिंग के अन्दर आकर दाहिने हाथ पर बने जीने से 27 सीड़ियां चढ़ने पर आप स्वयं शिवरत्न केन्द्र पहुँच जायेगे / कुछ लोग आपको हमारी दुकान के विषय में विभिन्न तरह की बातों से गुमराह करने की कोशिश करेंगे / कृपया बहकावे में न आकर उपरोक्त लिखे रास्ते से हम तक पहुँचे। शिव रत्न केन्द्र (रजि०) सन्तल सराय, तीसरी मंजिल, गऊघाट, हरिद्वार-२४६४०१ CR: 6965 योगीराज मूलचन्द खत्री मुद्रक : सुदर्शन प्रिटिंग प्रेस, आर्यनगर, ज्वालापुर (हरिद्वार) www.jainel