SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सावधान :__लगभग पांच वर्ष पहले हरिद्वार में रत्नों की कोई दुकान नहीं थी। शिव रत्न को प्रसिद्धि को देखकर रत्नों की कई दुकान खुल गई हैं। भ्रमित करने के लिए सभी ने शिव रत्न से मिलते-जुलते शक्ति आदि नाम भी रख लिए । अत: शिवरत्न बोर्ड के साथ नौसिखियों के बोर्ड भी लगे हुए हैं। जो इबारत शिवरत्न बोर्ड पर लिखी गई है, उसी से मिलती-जुलती उन्होंने भी लिखाई है। शिवरत्न ने सावधान लिखाया है, तो उन्होंने भी, बोर्ड को ध्यान से न पढ़ने के कारण कोई-कोई नीचे की दुकान पर ही फंस भी जाते हैं। जिन्होंने खत्री जी का फोटो देखा हो, उस कारण पूछ भी लें कि महाराज कहाँ हैं, तो उत्तर मिलता है, काम से गये हैं, आने वाले हैं । हम उनके भाई, बेटे या अन्य सम्बन्धी हैं। ऐसी बातों पर विश्वास कर ग्राहक ठगा जाता है। इसलिए आप नीचे न ठहरिये । सन्तल सराय : बोर्ड के पास खड़े होकर इमारत की ओर देखने से एक ओर बर्तनों की दुकान दिखाई देगी। दूसरी ओर नग-नगीने, अंगूठी. रुद्राक्ष, दीवार पर तान्त्रिक सामग्री लिखी हुई आदि दिखाई देगी। मालूम होता है यह दुकान इमारत के द्वार भाग में से हो बनाई गई है। इन दोनों दुकानों के बीच एक कम चौड़ा (लगभग ३ फुट) रास्ता है । इसमें आप प्रवेश करें। इसी इमारत को सन्तल सराय, कहते हैं। सन्तल ग्रामवासियों ने इस इमारत को यात्रियों के विश्राम हेतु बनवाया था। अब भी इसमें यात्री आकर विश्राम करते हैं। ऐसे स्थानों को धर्मशाला भी कह देते हैं। मुगलकाल में ऐसी इमारतों को सराय भी बोला जाता था इमारत में ऊपर चलिये, शिव रत्न शोरूम में पहुँचिये । रत्न ज्ञान [७०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001754
Book TitleRatnagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogiraj Mulchand Khatri
PublisherShiv Ratna Kendra Haridwar
Publication Year
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Science
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy