________________
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द, सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय । श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शिकाराय नमः शिवाय ॥
जो कल्याण स्वरूप है, पार्वती जी के मुख कमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिये जो सूर्यस्वरूप हैं, जो दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिन्ह है, उन शोभाशाली नीलकण्ठ 'शि' का स्वरूप शिव को नमस्कार है ॥३॥ वशिष्ठकुम्भोदवगौतमार्य, मुनिन्द्रदेवाचितशेखराय । चन्द्रार्कवेश्वानरलोचनाय, तस्मै 'व' काराय नमः शिवाय ॥
वसिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि श्रेष्ठ मुनियों ने तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की पूजा की है, चन्द्रमा सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र है, उन 'व' का स्वरूप शिव को नमस्कार है॥४
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय । दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै 'य' काराय नमः शिवाय ॥
जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है,जो जटाधारी है, जिनके हाथ में पिनाक है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव 'व' का स्वरूप शिव को नमस्कार है ।।५॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
जो शिव के समीप इस पवित्र पश्चाक्षर का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता और वहाँ शिवजी के साथ आनन्दित होता है ।।६।। [२]
रत्न ज्ञान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org