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________________ ॐ नमः शिवाय रत्नों की पहचान "हीरे की परख तो जौहरी ही जाने" कहावत प्राचीनकाल से चली आ रही है। जवाहरात भूमि के गर्भ में तैयार होते हैं। भूमि को खोदकर खाद्यानों से निकाले जाते हैं। प्रकृति के गर्भ में वृद्धि पाने वाली कोई भी वस्तु एक समान नहीं हुआ करती। क्योंकि कोई वस्तु अपने मल को पकड़े रहने तक वृद्धि की ओर ही अग्रसर रहती है प्रकृति के अन्दर एक प्रकार की ही अनेक वस्तु होने पर भो सबकी आयु काल अलग-अलग है। जो पत्थर आदि वृद्धि की ओर हैं, उनकी आयु के हिसाब से भिन्नभिन्न प्रकार के जोड़ बनते चले जाते हैं। जब हम गड़े हुए पत्थरों को जिनको (जवाहरात कहते हैं) देखेंगे तो उसमें कुछ दाग-धब्बे या धारी दिखायी देगी। उन चिन्हों को देखकर रत्न ज्ञान से अनभिज्ञ व्यक्ति उसे नकली समझेगा। क्योंकि उनके सोचने का तरीका तो होगा कि इतनी मूल्यवान वस्तु तो अवश्य ही साफ-सुथरी चमकदार ही होनी चाहिये। अपने इन विचारों में डूबा हुआ व्यक्ति रत्न जैसा बने हुए कांच को असली मान बैठता है और अपनी इस सोच के आधार पर ही ठगा जाता है इसीलिये यह कहावत बनी "हीरे की परख तो जौहरी हो जाने" वर्तमान युग तो वैज्ञानिक युग है। सभी प्रकार की टेस्टिग मशीनें बन गयी हैं। देश के कुछ नगरों में लगायी गई हैं। परन्तु [१४] रत्न ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001754
Book TitleRatnagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogiraj Mulchand Khatri
PublisherShiv Ratna Kendra Haridwar
Publication Year
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Science
File Size6 MB
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