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मनुष्य के शरीर में जिस ग्रह प्रकोप से जिस रंग की कमी आ गई हो, उसकी पूर्ति करने के लिये उस राशि मालिक ग्रह के अनुसार रंग वाला नग धारण कराया जाये। जन्म के नाम से राशि बनती है। जन्म के नाम का पता न हो तो बोल-चाल के नाम से भी राशि की जानकारी हो जाती है। राशि जानने की विधि नाम के पहले अक्षर से जानी जाती है। जैसे मोहनसिंह में "म" प्रथम अक्षर है। सिंह राशि में (म, मु, मे, मो, टा, टी, टू, टे) अक्षर आते हैं। अतः मोहन की सिंह राशि बनी। सिंह राशि का स्वामी सर्य ग्रह है। इसी प्रकार सूरज सिंह राशि कुम्भ होगी। इस राशि का स्वामी शनि है। सूर्य वाले को माणिक, शनि वाले को नीलम की सलाह दी जायेगी।
विद्वानों की मान्यता है कि माणिक, मुक्ता, विद्म पन्ना, पुखराज, हीरा, नीलम, गोमेद और लहसुनिया इन प्रधान नवरत्नों की उत्पत्ति क्रमशः-सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुद्ध बृहस्पति, शुक्र, शनि राहु और केतु इन प्रधान नव ग्रहों की पृथ्वी के सतत् प्रधान स्थानों पर, सीधा (डायरेक्ट) किरणों के पड़ने के प्रभाव से उन ग्रहों में विद्यमान विशेष तत्त्वों से होती है। यही कारण है कि जैसा जिस ग्रह का रंग होता है उस ग्रह से सम्बन्धित रत्न को भी वैसा ही रंग प्राप्त होता है। इसी कारण इन रत्नों में उन ग्रहों की विशेष शक्ति सम्मिलित रहती है। जो कि समय पर रत्नादि के धारण या सेवन द्वारा मुख-दुःख आदि के होने से स्पष्टतया अनुभव में आती है। इससे यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि पृथ्वी में उत्पन्न होने वाले इन पत्थरों (रत्नों) का भी मानव जीवन में प्रभावशाली उपयोग होता है । यह उपयोग विज्ञान द्वारा भी समर्थित है। सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुंह काला___रत्नों में दैव्य शक्ति है। यह प्रत्यक्ष देखा गया है। रत्न सर्व रत्न ज्ञान
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