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________________ ॐ नमः शिवाय मोती मोती को संस्कृत में-मुक्ता, चन्द्ररत्न, मौक्तिक, शक्ति । हिन्दी नाम-मोती, उर्दू नाम-मुरवारीद, अंग्रेजी में-पर्ल (Pearl) मोती चन्द्रमा का रत्न है। चन्द्रग्रह का द्योतक रत्न मुक्ता समुद्र के अन्दर तलहटी में सीप के अन्दर निर्मित जलीय रत्न हैं। मोती का जन्म समुद्र में पैदा हए एक कीट (घोंघा) के अन्दर होता है। मोती जल के कीडे के अन्दर पैदा होने के कारण जलीय रत्न हैं। घोंघा सीपी के अन्दर अपना घर बनाता है। मोतो बनाने वाला घोंघा मुसेल जाति का जल में उत्पन्न होने वाला जीव है । इसमें मोटे धागों के समान कुछ अंग होते हैं। जिनके द्वारा यह चट्टानों या अन्य जलीय स्थानों में अपने आपको चिपका सकता है। घोंघा दो मांस के आवरणों के अन्दर होता है। इन आवरणों से एक लसलसा पदार्थ निकलता है। यह पदार्थ जमकर धीरे-धोरे सीपी का रूप धारण कर लेता है यह सीपियाँ एक ही आकृति की दो भागों में होती है। और यह एक ओर से जुड़ी होती है। घोंघा इसी के बीच में अपने को सुरक्षित मानकर रहता है। सीपी जहाँ से खुली होती है, उसी तरफ से आवश्यकतानुसार खोलकर अपना भोजन प्राप्त करता है। प्राचीन मत के अनुसार स्वाति नक्षत्र के उदय रहते हुए वर्षा की बूंद जब सीप के अन्दर खुले हुए मुख में समाती है, तब वह मोती बन जाती है। स्वाति नक्षत्र में बरसे हुए जल के सम्बन्ध में कहावत है[३०] रत्न ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001754
Book TitleRatnagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogiraj Mulchand Khatri
PublisherShiv Ratna Kendra Haridwar
Publication Year
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Science
File Size6 MB
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