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________________ वैवानिक बता रहा है। रत्नों के प्रत्यक्ष प्रभाव के परिणामों को देखकर उसके गुण दोषों पर विचार कर रहा है । माणिक की खाने :___इसकी खाने बर्मा, श्याम, लंका तथा काबुल में पायी जाती हैं । दक्षिण भारत में भी माणिक की खानें हैं। यह पत्थर गुम लाल होता है। जामुनोपन आभायुक्त होता है। कुछ-कुछ मैलापन लिये होता है, टुकड़ा अच्छा भी निकल जाता है, यहाँ का पत्थर पारदर्शी, अर्द्धपारदर्शी तथा गुम भी होता है, कुछ टुकड़े पान दार भी होते हैं । परन्तु माणिक सबसे मूल्यवान बर्मा की खानों से प्राप्त होता है। विशेषता :___माणिक का रुख सुर्सी पर होता है। असली की सतह पर देखेंगे तो सुर्यो मालूम होगी, यदि बगल से देखेंगे तो रंग में भिन्नता होगी, असली और नकली माणिक में क्या भेद है, साधारण व्यक्ति बाजार में जाकर माणिक्य को पहचान कर असली खरीद सके, कठिन काम है। जिसको असली नकली का ज्ञान नहीं वह दाग-दब्बे रहित चमक-दमक वाले को ही असली समझ कर धोखा खा जाता है माणिक्य की पहचान करना एक महत्त्वपूर्ण बात है, जो पुस्तक पढ़कर समझना अथवा पुस्तक में लिख देना बहुत कठिन है वर्षों के अनुभव के बाद इसकी पहचान का ज्ञान होता है। पुराने अनुभवी पारखी नजरों से देख कर ही इसके असलो और नकलीपन को जान लेते हैं। माणिक के रंग : माणिक सूर्य का रत्न है । नवग्रहों में जैसे सूर्य प्रधान है वैसे ही नवरत्नों में माणिक मुख्य माना जाता है। माणिक वर्ण का रत्न ज्ञान [२५] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001754
Book TitleRatnagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogiraj Mulchand Khatri
PublisherShiv Ratna Kendra Haridwar
Publication Year
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Science
File Size6 MB
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