Book Title: Ratnagyan Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri Publisher: Shiv Ratna Kendra HaridwarPage 90
________________ डाक पंजियन SHL/1-13/677/87 रजि०ए०एल० 44/49/85 शुभ-सन्देश सर्व अन्तर्यामी परम् पिता परमेश्वर ने TA इस संसार म अनेक अद्भुत कल्याणकारी SP वस्तुओं का सृजन किया है। अनुभवी ज्ञानी ऋषि-महर्षि ज्योतिषाचार्यों ने अपनी साधना तथा अनुभवों के आधार पर रत्नों की खोज समस्त चराचर जगत् दुःख-सुख से भरा है-दुःखों का कारण है ग्रहों का रुष्ट होना रुष्ट - ग्रह से पीड़ित मानव दुःख-सुख के झूले में झूलने लगता है। वह निर्णय नहीं कर पाता, ऐसे समय में भयभीत न हों, रुष्ट ग्रह की शान्ति के लिये, नो रत्न, उपरत्न, (राशि-पत्थर) रुद्राक्ष व रुद्राक्ष की मालाएं सही जानकारी से धारण करने पर कभी नुकसान नहीं देते हैं, राशि के नग-नगीने, रुद्राक्ष, ईश्वरीय देन है जो मनुष्य की प्रत्येक मनोकामना पूर्ण करते हैं। धन्यवाद ! नोट-सन्तल सराय बिल्डिंग के नीचे व पहली मंजिल पर हमारी कोई भी दुकान नहीं है। सन्तल सराय बिल्डिंग के अन्दर आकर दाहिने हाथ पर बने जीने से 27 सीड़ियां चढ़ने पर आप स्वयं शिवरत्न केन्द्र पहुँच जायेगे / कुछ लोग आपको हमारी दुकान के विषय में विभिन्न तरह की बातों से गुमराह करने की कोशिश करेंगे / कृपया बहकावे में न आकर उपरोक्त लिखे रास्ते से हम तक पहुँचे। शिव रत्न केन्द्र (रजि०) सन्तल सराय, तीसरी मंजिल, गऊघाट, हरिद्वार-२४६४०१ CR: 6965 योगीराज मूलचन्द खत्री मुद्रक : सुदर्शन प्रिटिंग प्रेस, आर्यनगर, ज्वालापुर (हरिद्वार) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelPage Navigation
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