Book Title: Ratnagyan
Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri
Publisher: Shiv Ratna Kendra Haridwar

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Page 65
________________ गोमेद से आयुर्वेद चिकित्सा : आयुर्वेद में गोमेद का प्रयोग प्राचीनकाल से ऋषि-मुनियों और वैद्यों द्वारा होता चला आया है। इसके प्रयोग से विभिन्न रोगों का निदान सम्भव है। गोमेद कफ, पित्त, पाण्डु तथा क्षय रोगों को नष्ट करता है। और दीपन, पाचन, रुचिवर्द्धक, बुद्धि प्रबोधक तथा चर्म हितकर है। गोमेद की भस्म का प्रयोग कफ, पित्त और क्षय रोगों में अति हितकर है। उचित अनुपातों के साथ और घोटकर सेवन करने से यक्षमा रोग को नष्ट करता है। इसकी सूर्य रश्मि चिकित्सा द्वारा पित्त एवं चर्म रोगों में लाभकारी है । इससे दमा कण्डू, दद्र आदि चर्म रोग समूल नष्ट हो जाते हैं। गोमेद औषधि में प्रयोग करने के लिए गोमेद का शुद्ध होना नितान्त आवश्यक है । आयुर्वेद में लिखा हैं। जो गोमेद स्वच्छ गोमूत्र के समान रंग वाला, कान्तियुक्त, स्निग्ध तथा समानाकार हो, प्रकाशवान, तोल में वजनदार ही, औषधि के कार्य में लेना चाहिये। ज्योतिष में गोमेद :-- गोमेद राहू ग्रह का कारक रत्न है । दैत्य ग्रह राहू के कुपित होने पर प्रभावी व्यक्ति को मानसिक एवं उदर सम्बन्धी रोग उत्पन्न हो सकते हैं । प्रभावी व्यक्ति को गोमेद रत्न धारण करने से राहग्रह कारक रोगों से मुक्ति मिल सकती है। राहू ग्रह प्रकोप से मानसिक तनाव बढ़ता है । कार्यकुशलता समाप्त हो जाती है। छोटी-छोटी बातों पर निर्णय लेने के बजाय क्रोध आता है। योजनायें असफल होती हैं। मानसिक उड़ानों में व्यक्ति भ्रमण करता है । उसे गोमेद धारण करना चाहिये। [५३] रत्न ज्ञान - - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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