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* गोमेद *
गोमेद के रंग :―
रक्त श्याम, पीत आभायुक्त गोमेद उत्तम माना गया है। इसके रंग मधु के समान, गोमूत्र अथवा अंगारे के समान होता है, इसका अंग नरम होता है ।
इसकी उत्पत्ति अधिकतर सायनाइट की शिलाओं के अन्दर पाई जाती है । यद्यपि यह एक ही स्थान से प्रचुर मात्रा में प्राप्त नहीं होता है। गोमेद गोल चिकने पत्थरों और परतों में घिसे रत्नों के रूप में पानी से घुलकर नीचे बैठी तलछट में मिलता है । प्राप्ति स्थान :―
ऐसी तलछट प्राय: लंका में पायी जाती है। लंका के अतिरिक्त भारत में भी गोमेद की खानें हैं। भारत में पटना तथा गया के बीच में कई खानें हैं । जहाँ से गोमेद निकाला जाता है । दक्षिण भारत में मैसूर के गोमेद को लंका का गोमेद भी कह दिया जाता है । विदेश का बताकर उसका मूल्य बेचने वाले अधिक ले लेते हैं | परन्तु लंका के गोमेद से मैसूर का पत्थर श्रेष्ठ है । भारत की खानों से गोमेद का पत्थर बड़ी मात्रा में निकलता है | भारत के गोमेद की विदेशों में माँग भी अधिक रहती है ।
गोमेद को हिन्दी में गोमेद, उर्दू में जरकूनिया, जारगुन तथा जारकून भी कहते हैं, संस्कृत में गोमेदक, पिगलामणि, तुषारमणि या राहूबल्लभ भी कहते हैं, अंग्रेजी में गोमेद को ( Zireone ) कहा जाता है ।
गोमेद जिर्कोनियम का सिलीकेट लवण है । इसमें थोड़ी मात्रा में दूसरी अप्राप्त मृत्तिकायें भी पाई जाती है। यह प्रायः कई रंगों में मिलता है ।
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रत्न ज्ञान
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