Book Title: Ratnagyan Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri Publisher: Shiv Ratna Kendra HaridwarPage 62
________________ को पान के रस, अदरक के रस, शहद, मलाई या मक्खन में भी खिलाया जाता है। योग्य वैद्य से परामर्श कर प्रयोग करें। यह विषम ज्वर, मिर्गी, मस्तिष्क की कमजोरी, हिचकी, उन्माद या पागलपन के रोगों के लिये लाभदायक है। ज्योतिष के अनुसार : नीलम शनि राशि का प्रिय रत्न है। शनि की कुदृष्टि होने पर नीलम अवश्य ही धारण करना चाहिये, नीलम मकर और कुम्भ राशि के अत्यन्त उन्नतिकारक है। इन राशियों को नीलम कभी हानि नहीं पहुँचाता। नीलम सभी रत्नों से सतोगुणी रत्न है। इसके धारण करने से मनुष्य का मन पवित्र होता है। मन में सात्विक भावना पैदा होती है। दुष्कर्मों का त्याग और सत्कम में मन लगता है । सत्य, दया, परोपकार के विचार बनते हैं । और अपनी सामर्थ और शक्ति के अनुसार व्यक्ति करने भी लगता है । नीलम का शनिग्रह अधिष्ठात्री देवता है । परन्तु नोलम को सभी राशि वाले व्यक्ति धारण कर सकते हैं। सभी को लाभ करता है। हानि किसी को नहीं करता। मेष वृश्चिक तथा सिंह राशि वालों को नीलम धारण करने के लिए परामर्श करना चाहिए। धारण विधि : नीलम को चाँदी पञ्चधातु या लोहे की अंगठी में जड़वा लेना चाहिए । शनिवार को सुबह स्नान कर एक लोटे में जल, कच्चा दूध और मीठा डालें तथा अंगूठी को भी लोटे के जल में डाल दो। जल को भगवान शंकर या पीपल के वृक्ष में डाल दें। और अंगठी को उठाकर मध्य ऊँगली में धारण कर लें। नीलम रत्न दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करता है। [५०] रत्न ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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