Book Title: Ratnagyan
Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri
Publisher: Shiv Ratna Kendra Haridwar

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Page 18
________________ साधारण को उपलब्ध भी नहीं है । हो भी जाये तो उस पर ठहरते नही हैं कोई भी माँटी के मोल ही उनसे ले लेता है। श्रीमान् सज्जनों के पास ही रत्न का निवास होता है। इन वस्तुओं के क्रेताओं को जो नकली वस्तुयें देकर धोखा देगा, वह बहुत ही बड़े पाप का भागो होगा। इस पाप का फल न मालूम भोले बाबा क्या देंगे? इसलिए इन वस्तुओं के क्रय-विक्रय में सदा सावधानी बरतनी चाहिए। धोखा देकर शीघ्र ही धनवान होकर वर्तमान में भले ही प्रसन्न हो जाये। परन्तु इसका परिणाम दुःख ही होगा। मेरी अपनी जानकारी में मैंने किसी को नकली वस्तु नहीं दी है। भविष्य के लिये भी भगवान शंकर से प्रार्थना है कि बुद्धि को सदा सचेत रखे, जिससे धोखा देकर पैसा कमाने की बात पैदा न हो। जिन्होंने बेईमानी से शीघ्र ही धनाड्य होने की बात सोची उनको बर्बाद होते भी इन आँखों ने देखा है। इसलिए पुनः प्रार्थना है भगवान शिव सदा सद्बुद्धि बनाये रखें। मेरा अनुभव : __ इस पुस्तक से रत्न सम्बन्धी आपको काफी जानकारी मिलेगी। इसको पढ़कर अपनी कठिनाई को हल करने का उपय आप भी जान सकते हैं ग्रहों को प्रकोप न होने पर भी अपनी राशि के अनुसार रत्न धारण कर सकते हैं। वह आप को हानि नहीं पहुँचायेगा। लाभ ही होगा। — मैं अपने अनुभव के आधार पर निर्द्वन्दता से कह सकता हूँ कि मेरा भाग्य तो पत्थरों ने ही बदल दिया। किसी समय मैं एक छोटे शोकेश में नगे जड़ी अंगठियाँ घूम-घूमकर बेचा करता था। अंगठी बेचने को हरिद्वार से बाहर मेरठ आदि अन्य नगरों में भी जाना होता था। उन नगों की अंगूठियों से बढ़कर धीरे- २ मैं राशि के १० ] रत्न ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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