Book Title: Ratnagyan Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri Publisher: Shiv Ratna Kendra HaridwarPage 41
________________ शुक्ति शङ्खो गजः कोड:फणी मत्स्यश्च दुर्दुरः । वणरेते सम ख्यातास्तास्तज्ज्ञ मौक्तिकयो नमः॥ स्वाति नक्षत्र में बरसे हुए जल की बूंदे सीप के मुंह में पड़ने से मोती बन जाता है, केले के अन्दर पड़ने से कपूर, सर्प के मुह में पड़ने से हलाहल (विष), हाथी, सुअर, मेंढक आदि के मुख में पड़ने से मोती बन जाती है । वां में पड़ने से बंसलोचन बन जाती है। मोती की उत्पत्ति आठ स्थानों से होती है। आठों प्रकार के मोतियों में से सामान्यतः सब मोती सबको उपलब्ध नहीं होते ये केवल उन्हीं को प्राप्त होते हैं, जिन्होंने कठिन परिश्रम करके इनकी प्राप्ति की पूर्ण साधना की हो। आधुनिक युग में ऐसे मोती अप्राप्त हैं, केवल सीप के मोती ही आजकल व्यवहार में आते हैं। मीन मुक्ता भी पहनने के काम आता है। (मीन मुक्ता 'शिव रत्न केन्द्र' में उपलब्ध है)। मोती के रंग : नीला, सफेद, गुलाबी, मैला, काला, हरियाली लिये चमकदार तांब के समान रंग वाला मोती समुद्र की खाड़ी पहाड़ी स्रोत एवं पर्वतीय तालाबों में भी मिल जाता है। प्राकृतिक मोतो में निम्न प्रकार के मोती पाये जाते हैं : मोती के ऊपर फटापन होना, बारीक रेखा, मस्से के समान उभार, चेचक के जैसे दाग होना, धब्बा, अन्दर मिट्टी का होना, श्याम वर्ण मोती भी होता है । रत्न ज्ञान [३१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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