Book Title: Ratnagyan Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri Publisher: Shiv Ratna Kendra HaridwarPage 45
________________ ॐ नमः शिवाय मँगा मूंगा को संस्कृत भाषा में प्रवाल या विद्रुम कहते हैं। फारसी या उर्दू में मरजान, अंग्रेजी में कोरल कहा जाता है। मूंगा खान से निकलने वाला रत्न नहीं हैं। यह समुद्र से निकाला जाता है । देखने में इसका रुप बेल की शाखाओं जैसा होता है । मूंगे की बनावट छोटी-छोटी नालियों के सामने होती है जो एक दूसरे से जुड़ी होती है । मूंगा हर एक समुद्र में भी पैदा नहीं होता, जिस समुद्र में इसके लिए तापमान और गहराई अनुकुल होती है उसी स्थान में मूंगा पैदा होता है। अनुकूल गहराई एवं तापमान के समुद्र की चट्टानों पर मँगे का वृक्ष पैदा होता है। वृक्ष ज्यादा बड़ा नहीं होता । उसका रंग भी मूंगे के रंगों का जैसा होता है। इसी वृक्ष की शाखाओं को काट-काटकर मूंगा तैयार किया जाता है । इस प्रकार मूंगा समुद्र से पैदा होने वाला रत्न है । इस रत्न को पूजा के काम में लाया जाता है इसमें दैवी शक्ति है, ऐसी मान्यता है । मंगे का रंग : मगे का रंग सिंदूरी होता है । सिंगरफ के समान रंग का भी मूंगा होता है । मूंगा श्वेत वर्ण तथा पीत आभायुक्त (क्रीम कलर) में भी पाए जाते हैं। मूंगे का रंग लाल के साथ कालापन लिये हुए भी होते हैं। गहरा लाल, हलका लाल भी मूगा होता है। (सिंदूरी ओरेन्ज) कलर का मूगा हनुमान जी के उपासक धारण करते हैं। इसे हनुमान जी का रंग भी कह देते हैं। हनुमान उपासकों के लिये बहुत ही लाभकारी है। अनेक अनुमान भक्तों को लाल रंग का [३५] रत्न ज्ञान - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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