Book Title: Ratnagyan Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri Publisher: Shiv Ratna Kendra HaridwarPage 46
________________ मूगा पहते देखा गया है जबकि लाल रंग हनुमान जी का नहीं है । हनुमान भक्तों को सिन्दूरी रंग का मूगा ही धारण करना चाहिये। __ पेड़ से पैदा हुए मूगे में धब्बा, दुरंगापन, सफेद छींटा कहीं न कहीं उभरी हुई दिखाई देती हैं । यह सब उसका प्राकृतिक स्वरूप है। नकली बनावटी मूमे एक रंग के बिना दाग धब्बे के सुन्दर दिखाई देते हैं। नकली के रूप रंग और उसकी सुन्दरता को देख कर खरीदने वाले धोखा खा जाते हैं। अथात् नकलो को लेकर घर चले जाते हैं। नकली को असली मानकर ले जाने वालों के कारण ही नकली बेचने का साहस बना रहता है। आयुर्वेद में मूगा : मूंगा को केवड़ा या गुलाब जल में घिसकर गर्भवती स्त्री के पेट पर लेपन करने से गिरता हुआ गर्भ रुक जाता है। __ मंगे को गलाब जल में घिसकर छाया में सुखाने से प्रवाल पिस्टी तैयार होती है । पिस्टी को मधु के साथ खाने से शरीर पुष्ट होता है। पान के साथ खाने से कफ और खांसो को लाभ होता है । मलाई के साथ खाने से शरीर की गर्मी तथा हृदय की धड़कन को लाभ होता है। ज्योतिष : ज्योतिष के अनुसार मूंगे का स्वामी मंगल ग्रह है जिस व्यक्ति पर कुदृष्टि है उसे मूगा पहनना चाहिये। जो व्यक्ति शत्रुओं से परास्त हो गये हों, जोखिमों को झेलते हुए जो जीवन में अंधेरा देख रहे हों, उन्हें मूगा धारण करना चाहिये मेष एवं वृश्चिक राशि का राशिपति होने से उनके लिए भाग्योन्नति की बाधाओं को दूर करता है । मूगा रोग नाशक है। रक्त की शुद्धि करता है। भयभीत लोगों का साहस बढ़ता है। [३६] रत्न ज्ञान - - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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