Book Title: Ratnagyan Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri Publisher: Shiv Ratna Kendra HaridwarPage 42
________________ असली नकली की परीक्षा-चावल में डालकर रगड़ने से असली की चमक समाप्त नहीं होती और नकली की चमक खत्म हो जायेगी । असली मोती की ऊपरी को सतह नकली मोती से कोमल होती है । अन्य अनेक बारीक बातें हैं । जो केवल क्रियात्मक अभ्यास द्वारा ही जानी जा सकती हैं । मोती को रुई में लहट कर नहीं रखना चाहिये । रुई की गर्मी से मोती में धारियां ( लहर) पड़ जाती हैं नमी वाली जगह में भो मोती को रखने से खराब हो जाता है । आयुर्वेद में मोती :— कैल्शियम की कमी के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों में यह बहुत लाभकारी है । केवड़े या गुलाब जल के साथ खरल में घोटकर पिस्टी बनाई जाती है । मुक्ता की अग्नि से भस्म भी बनाई जाती है । मुक्ता - शीलल, मधुर, शाँतिवर्धक, नेत्र ज्योतिवर्धक, अग्नि दीपक, वीर्यवर्धक, विषनाशक है । कफ, पित्त, श्वांस आदि रोगों में अति लाभदायक है, हृदय को शक्ति देता है । इसका प्रयोग विभिन्न रोगों में विभिन्न अनुमानों के साथ किया जाता है । ज्योतिष में मोती : चन्द्रग्रह के कुपित होने पर उससे प्रभावित व्यक्ति को प्रमेह नेत्ररोग, वायु एवं मस्तिष्क रोग हो सकते हैं । चन्द्रग्रह के कुपित होने से जो अश्चितता में रहता है, जीवन घोर संघर्षमय बन गया हो, परिस्थितियां प्रतिकूल हो धारण करना चाहिये । मोती धारण करने से बुद्धि स्तिर होती है किसी भी बात को बारीकी से समझने की शक्ति बढ़ती है शरीर में तेज और ओज का विकास होता है । कोई भी निश्चय शीघ्र होता है, जिससे बात की जाये उस पर प्रभाव पड़ता है, विचार अथवा कार्य करने का मन में उत्साह बढ़ता है । रत्न ज्ञान [३२] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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