Book Title: Ratnagyan
Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri
Publisher: Shiv Ratna Kendra Haridwar

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Page 21
________________ जिस समय यह रत्न खान या समुद्र से निकलते हैं, तब यह साधारण कंकड़,पत्थर की शक्ल में होते हैं । बेडोल दशा में किसी भी प्रकार की चमक से रहित होते हैं। विना चमक ओर बडोल होते हुए भो पारखी लोग इन्हें पहचान लेते हैं कि यह पत्थर कौनसा रत्न है और किस क्वालिटी का है। फिर भी इन रत्नों की सही पहचान इनके तरासने पर होती है। मशीनों पर ले जाकर इन बेडोल पत्थरों को तोड़ा जाता है। इसमें अनेक छोटे-बड़े टुकड़े हो जाते हैं। कारीगर लोग अधिक से अधिक बढ़ा अदद बनाने की कोशिश करते हैं। फिर भी कुछ टुकड़े हो जाते हैं । इन छोटे अददों को साफ सुथरा बनाया जाता है तथा सफाई का अन्तिम रूप (फिनिशिंग) किया जाता है। फिनिशिंग के बाद हा उनको चमक तथा क्वालिटी का सही ज्ञान होता है। एक कहावत है " बन्द मुट्ठी लाख की खुल जाय तो खाक की " अर्थात् पत्थरों को खान से निकालने पर तो लगता हैं काफी मूल्य की वस्तुयें निकल आयों, परन्तु तराशने पर उसमें से बहुत से टूट-फूट जाते हैं, चूरा हो जाता है। छोटे-छोटे अदद हो जाते हैं। इनकी चमक और क्वालिटी क्या है ? यह सब जानकारी होने के बाद इनका मूल्याङ्कन किया जाता है। * विशेष-सूचना * विशेष जानकारी हेतु योगीराज मूलचन्द खत्री जी से मिलेंजो कि शिव रत्न केन्द्र सन्तल सराय, गऊघाट, ऊपरी मंजिल पर ही २४ घंटे मिलते हैं, नीचे के किसी भी रुद्राक्ष शोरूम पर नहीं मिलते हैं। विशेष मिलने का समय प्रातः ८ बजे से लेकर रात्रि ११ बजे तक अपने स्थान पर ही मिलते हैं। आने वाले सभी प्रेमीजन से बातचीत करते हैं और विशेष सलाह देते रहते हैं। रत्न ज्ञान . [१३] - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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