Book Title: Ratnagyan Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri Publisher: Shiv Ratna Kendra HaridwarPage 36
________________ लाल और जामुनीपन लिए होता है। लाल तुरमली को भी दुकानदार माणिक बताकर बेच देते हैं। वह सरासर धोखा है। उससे सावधान रहना चाहिए। मुख्य रूप से माणिक्य अल्युमिनियम और ऑक्सीजन का यौगिक है। इसमें लाल रंग लोहे और क्रोमियक के अल्प मिश्रण से उत्पन्न होता है। खान से निकलने वाला माणिक : बिना चमक, दूध, जैसा, एक नग में दो रंग, रंग में मलीनता, धूम्रवर्ण, काला या सफेद दाग आदि-आदि । सच्चे माणिक की पहचान : माणिक में दूधक है और नीलिम भी होती है। रत्न में जो चीर होती है उसमे चमक नहीं होती। शीशे की चीर में चमक होती है। रत्न की चीर अप्राकृतिक नहीं होती अपितु वह टेडी-मेड़ी होती है । इमिटेशन में सोधी और साफ चीर होती है। आयुर्वेद में माणिक :___माणिक की पिस्टी और भस्म दोनों खाने के काम में आती है। अनुमान भेद से पृथक्-पृथक् रोगों में उपयोगी होती है। माणिक रक्तवर्धक, वायुनाशक और उदर रोगों में लाभकारी होता है। ___ माणिक्य दीपक, वीर्यवर्धक, नेत्रों को हितकारी, त्रिदोष एवं क्षयनाशक है। यह त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) वमन, विष, कुष्ट क्षय तथा रक्त विकार आदि रोगों को नष्ट करता है, बुद्धिमानों को सेवनीय है। औषधि के उपयोग में माणिक के उपरोक्त दोष नहीं देखे जाते हैं। रंग का अच्छा तथा पानीदार माणिक होना पर्याप्त है। रत्न ज्ञान [२६] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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