Book Title: Ratnagyan Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri Publisher: Shiv Ratna Kendra HaridwarPage 34
________________ ॐ नमः शिवाय माणिक्य माणिक्य के नाम-संस्कृत में माणिक्य, पद्मराग, कुरुविन्द आदि हिन्दी में-माणिक, जमुनिया, उर्दू में-याकूत, अंग्रेजी में (Ruby) इत्यादि। पौराणिक कथाओं के अनुसार-दैत्यराज बलि पर विजय प्राप्त करने के लिये विष्णु भगवान ने वामन अवतार धारण किया और उनके दर्प का चूर्ण किया। इस अवसर पर भगवान के चरणस्पर्श से बलि का सारा शरीर रत्नों का बन गया। तब देवराज इन्द्र ने उस पर वज्र का प्रहार किया। वज्र की चोट से बलि के शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो गये। उन रत्नमय टुकड़ों को भगवान शिव ने अपने त्रिशूल पर धारण कर लिया और उनमें नवग्रहों तथा बारह राशियों के प्रभुत्व का आधान करके पृथ्वी पर फेंक दिया। पृथ्वी पर गिराये गये इन खण्डों में से ही विविध रत्नों की खाने पृथ्वी के गर्भ में बन गयी। शङ्कर के द्वारा फेंके गये खण्डों में से ही ८४ प्रकार के रत्न (पत्थरों) और मणियों की उत्पत्ति हुई इसी प्रकार की पौराणिक अनेक कथाएँ हैं। माणिक्य आदि रत्नों के सम्बन्ध में पुराणों में अनेक कथाएँ लिखी गई हैं। परन्तु आज का वैज्ञानिक जोकि चन्द्रलोक की यात्रा कर चुका है। अन्तरिक्ष में राकेट स्टेशन बनाने का विचार कर रहा है इन कथाओं को जैस का तैसा नहीं मान पायेगा। वैज्ञानिकों ने तो रत्नों के प्राप्त होने की खान खोज ली है। रत्नों में भौतिक और रसायनिक बनावट कैसी है, रत्नों में कठोरता, गुरुत्व, वर्तनाङ्क कितना और क्या है रत्न ज्ञान - [२४] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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