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ॐ नम: शिवाय
रत्नों की उत्पत्ति
प्रकृति के गर्भ में न मालूम क्या-क्या छीपा हुआ है । भूमि के ऊपर कहीं बर्फ पड़ा हुआ है, कहीं भिन्न-भिन्न पत्थरों के पहाड़ तो कहीं पर विभिन्न प्रकार की मिट्टी ने भूमि को ढका हुआ है । पृथ्वी के नीचे से गरम पानी निकल रहा है, उसी के निकट ठंडा जल भी है । किसी स्थान में भूमि तल को चीर कर घुँआ, राख, कोयले की वर्षा हो रही है । जिसको ज्वालामुखी कहते हैं और किसी जगह निरन्तर अग्नि की लपटें निकल रही हैं । जो वस्तु पृथ्वी से बाहर निकल आती है, उसे तो आँखें देख लेती हैं । और जो भूमि के अन्दर पड़ी हैं उसे हम जानते ही नहीं हैं। पृथ्वी में निरन्तर क्रिया भी चलती रहती है । जैसे शरीर के अन्दर रक्त का दौरा होता रहता है । पेट के अन्दर पाचन क्रिया हो रही है, परन्तु हम उसे अपनी आंख से देख नहीं पा रहे हैं। भूमि के अन्दर चलने वाली क्रिया से उसके अन्दर में पड़ी हुई वस्तुओं में भी परिवर्तन होता रहता है । अनेक प्रकार के पत्थर, कोयला आदि मूल्यवान जवाहरात के रूप में बदल जाते हैं ।
जिन्हें हम रत्न या जवाहरात कहते हैं उनमें से हीरा, पन्ना, गोमेद समतल भूमि की खदानों में पाये जाते हैं। नीलम, पुखराज हिमालय पर्वत की खादानों से प्राप्त होता है। लहसुनिया, माणिक नदियों या उसके किनारे के खेतों से मिल जाते हैं। मूंगा, मोती समुद्र से निकाले जाते हैं । इसी प्रकार इसके जो उपरत्न होते हैं, वह भी नदी, समुद्र, पर्वतीय या समतल भूमि की खदानों से निकलते हैं ।
रत्न ज्ञान
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