Book Title: Ratnagyan
Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri
Publisher: Shiv Ratna Kendra Haridwar

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Page 15
________________ रहते हैं । किन्तु इन सम्पूर्ण नक्षत्रों को ग्रह नहीं कह सकते । हमारी इस पृथ्वी से जिन नक्षत्रों का निकट सम्बन्ध है । वे ही नक्षत्र पृथ्वी के ग्रह होते हैं । अत्यधिक दूरी होने के कारण जिन नक्षत्रों का पृथ्वी पर प्रभाव नहीं पड़ता वे पृथ्वी के नक्षत्र नहीं है । अन्य नक्षत्रों का दूसरे लोकों पर प्रभाव पड़ता होगा, वे नक्षत्र उन लोकों के लिये नक्षत्र हो सकते हैं । ग्रह प्रकोप भी विज्ञान है चन्द्रमा जल तत्व का स्वामी भी है । चन्द्रमा की उत्पत्ति भी जल से बतायी जाती है । जलीय भाग पर इसका प्रभाव अवश्य ही पड़ता है । मनुष्य के शरीर में जलीय भाग ७५ प्रतिशत है । मनुष्य शरीर पर इसका प्रभाव अत्यधिक पड़ता है। सुनने में आता है कि डूबकर आत्मघात की घटना पूर्णिमा के दिन ही अधिक होती हैं । इसमें चन्द्रमा के साथ मंगल ग्रह का भी सम्बन्ध है | क्योंकि मंगल ग्रह पृथ्वी तत्व का स्वामी है । मानव शरीर में दोनों हा तत्त्व मौजूद हैं। मनुष्य शरीर से चन्द्रमा का मन से सम्बन्ध है और ठोस पदार्थ (हाड़, माँस, मज्जा आदि) से मंगल का सम्बन्ध है । ग्रहों का रंग I भगवान के बनाये हुए विश्व में अनेक ब्रह्माण्ड हैं । अनेक ब्रह्माण्डों की सत्ता विज्ञान भी मान रहा है । सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुद्ध गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु ब्रह्माण्डों में है । जो कि एक दूसरे के आकर्षण से यथास्थान स्थित हैं । यह ब्रह्माण्ड अथवा ग्रह रंगों से युक्त है । जैसे पृथ्वी का रंग पीला बताया गया है । उसी प्रकार सूर्य का रंग जपाकुसुम के समान रक्त वर्ण है । सिन्दूर के समान उनके आभूषण और वस्त्र हैं। दूध के समान श्वेत वर्ण चन्द्रमा का है । मंगल का रंग अग्नि के समान रक्त है । बुद्ध ग्रह का रंग पीला रत्न ज्ञान [७] Jain Education International que For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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