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में लेकर नेत्रों से देखकर बता दिया करते थे और आज भी बता देते है। अभ्यस्त व्यक्तियों द्वारा बताने पर पूर्णतया सहो सिद्ध होती है। इन वैज्ञानिक तथा यान्त्रिक युग में भी रत्न की परीक्षा नेत्रों द्वारा किया जाना नितान्त आवश्यक है। यन्त्र तो नेत्र को सहायता मात्र कर सकता है। पत्थर मे क्या दोष है, क्या किस्म है, क्या गुण है, सब कुछ यन्त्र नहीं बता सकता है। आज के समाज में बेईमानी, धोखा, ब्लैक मिलावट साधारण बात की गई है। किसी प्रकार से अर्थ की प्राप्ति हो, उद्देश्य रह गया है। आप विचार कीजिये, कोई व्यक्ति अपना दुःख दूर करने के लिये रत्न धारण करने का विचार करके बाजार में पहुंचे और उसे असली वस्तु न मिले तो उसे पैसा गवाने का दुःख और भी बढ़ जायेगा। रत्न (जवाहरात) के खरीदार धोखे से बचें इसलिए हमने यह पुस्तिका तैयार की, इसको पढ़कर बहुत से रत्न प्रेमी रत्नों के सम्बन्ध में जानकारी हासिल कर सकेंगे। इस पुस्तिका में रत्नों की उत्पत्ति बनाने को विधि तथा असली-नकली की संकेत मात्र पहचान लिखी है।
आज लगभग मेरा ३२ वर्ष का अनुभव है कि जिसको मैंने जो सुझाव सहित पत्थर दिया है। उस पत्थर या रत्न ने उसे लाभ ही पहुँचाया। जो मुझसे पत्थर लेकर गया उसे अपने भाग्य की उन्नति ही दिखाई दी है। इसी कारण हरिद्वार तीर्थ में देश-विदेश से आने वालों का विश्वास मेरे प्रति बढ़ता ही रहा है। इसी प्रकार से आप लोगों का प्रेम और विश्वास बढ़ता ही रहे। आप सभी का मंगलमय जीवन हो, तथा मुझे आपसे प्रेम और आशीर्वाद सदा ही मिलता रहे, यही शङ्कर भोले से मेरी प्रार्थना है। क्षमा एवं याचना
इस पुस्तक से आप लाभ उठा सके, मेरी यही भावना है। ४]
रत्न ज्ञान
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