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२३८ पुरुदेवचम्पूप्रबन्धे
[६६४१४१) स किल जिनराजः पद्माकर इव सर्वतोमुखसमृद्धिसंपन्नः समुन्निद्रशोभनतामरसहितः सदामरालोसेव्यमानः भ्रमरहितश्च, पद्मबन्धुनेव प्रौढशोभनखोज्ज्वलपादेन साधु वक्रसंतोषदायिना उदयमुपेयुषा भृशमुल्ललास ।
$ ४२) पितामहौ च तस्यामू प्रमोदं परमापतुः।
यथा सवेलो जलधिरुदये शीतरोचिषः ॥२८॥
प्राप्य चकाशे शुशुभे । रूपकश्लेषो ॥ उपजातिवृत्तम् ॥२७॥ ४) स किलेति-जिनराजो वृषभदेवः पद्माकर इव तडाग इव सर्वतोमुखी समन्तादायकरी या समृद्धिः संपतिस्तया संपन्नः पक्षे सर्वतोमुखस्य सलिलस्य समृद्धया वृद्धया संपन्नः, समुन्निद्रा प्रकटिता शोभा येषां ते समुन्निद्रशोभाः ते च ते नतामराश्च
नम्रोभूतदेवाश्च तैः सहितः पक्षे समन्निद्रं शोभनं येषां तानि समुन्निद्रशोभनानि तथाभूतानि यानि तामरसानि १० कमलानि तेभ्यो हितः, सदा सर्वदा अमरालोभिः देवपङ्क्तिभिः सेव्यमानः पक्षे सदा सर्वदा मरालीभिहसीभिः
सेव्यमानः, भ्रमेण सदेहेन रहितः भ्रमरहित: पक्षे भ्रमरेभ्यः षट्पदेभ्यो हितः कल्याणकरः, पद्मबन्धुनेव सूर्येणेव प्रौढा प्रकृष्टा शोभा येषां तथाभूता ये नखास्तैरुज्ज्वलो पादौ चरणो यस्य तेन पक्षे प्रौढं प्रकृष्टं शोभनं यस्य तथाभूतं यत् खं गगनं तस्मिन् उज्ज्वलाः पादाः किरणा यस्य तेन, साधुचक्राय सज्जनसमूहाय
संतोषं हर्ष ददातीति साधुचक्रसंतोषदायो तेन पक्षे साधवश्च ते चक्राश्च चक्रवाकाश्चेति साधुचक्रास्तेभ्यः संतोषं १५ ददातीति तेन उदयं जन्म पक्षे उद्गमम् उपेयुषा प्राप्तवता कुमारेण पुत्रेण भृशमत्यन्तम् उल्ललास शुशुभे ॥
श्लेषोपमा। ) पितामहाविति-तस्य पुत्रस्य अमू प्रसिद्धी पितामही च पितामहश्चेति पितामही मरुदेवीनाभिराजी शीतरोचिषः शशिनः उदये सबेल: तटोसहित: जलधिर्यथा सागर इव परं सातिशयं प्रमोदं हर्ष आपतुः
$ ४१ ) स किलेति-जिस प्रकार उदित होते हुए सूर्य से पद्माकर सुशोभित होता है उसी
प्रकार जिनराज वृषभदेव, उदित होते हुए पुत्रसे सुशोभित हो रहे थे। उस समय जिनराज २० ठीक पद्माकर-तालाबके समान जान पड़ते थे क्योंकि जिस प्रकार पद्माकर सर्वतोमुख
समृद्धि सम्पन्न-जलकी समृद्धिसे सहित होता है उसी प्रकार जिनराज भी सर्वतोमुख समृद्धि सम्पन्न-सब ओरसे आयवाली सम्पत्तिसे सहित थे, जिस प्रकार पद्माकर समुन्निद्रशोभन-तामरस-हित विकसित शोभावाले कमलोंके लिए हितकारी होता है उसी प्रकार
जिनराज भी समुन्निद्रशोभ-नतामर-सहित-शोभायमान नम्रीभूत देवोंसे सहित थे, जिस २५ प्रकार पद्माकर सदामराली सेव्यमान-सर्वदा हंसियोंसे सेवित रहता है उसी प्रकार
जिनराज भी सदामरालीसेव्यमान-सदा देवपङक्तिसे सेवित थे और जिस प्रकार पद्माकर भ्रमर-हित-भ्रमरोंके लिए हितकारी होता है उसी प्रकार जिनराज भी भ्रम-रहित -संदेहसे रहित थे । वह पुत्र भी ठीक सूर्य के समान जान पड़ता था क्योंकि जिस प्रकार सूर्य प्रौढ
शोभन-खोज्ज्वलपाद-अत्यन्त शोभायमान आकाशमें चमकती हुई किरणोंसे युक्त होता है ३. उसी प्रकार वह पुत्र भी प्रौढशोभ-नखोज्ज्वलपाद-अत्यन्त शोभायमान नखोंसे देदीप्यमान
चरणोंसे सहित था और जिस प्रकार सूर्य साधुचक्रसंतोपदायी-उत्तम चक्रवाक पक्षियोंको संतोषका देनेवाला होता है उसी प्रकार वह पुत्र भी साधुचक्रसंतोषदायी-सज्जन समूहको संतोषका देनेवाला था। $ ४२) पितामहाविति-जिस प्रकार चन्द्रमाका उदय होनेपर वेला सहित समुद्र हर्षको प्राप्त होता है उसी प्रकार उस पुत्रके दादा और दादी-नाभिराज और
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