Book Title: Purudev Champoo Prabandh
Author(s): Arhaddas, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 434
________________ परिशिष्टानि ३९५ [ष] भय अथवा धर्म और धर्मात्माओंमें षोडशस्वप्न ३.२२.१५५ स्नेह । १. गज, २. वृषभ, ३. सिंह, संयम १०.(४२).३६३ ४. सरगजोंके द्वारा अभिषिच्यमान श्रावकका एक धर्म लक्ष्मी, ५. माला युगल, ६. चन्द्र साधनशुद्धि १०.(४२).३६४ मण्डल, ७. सूर्यमण्डल, ८. सुवर्ण तीन शुद्धियोंमें एक शुद्धि कलशयुगल, ९. मीन युगल, साम्राज्य-- १०.(४२).३६३ १०. सरोवर, ११. समुद्र, कर्वन्वय क्रिया १२. सिंहासन, १३. देवभवन, साम्राज्य १०.(४२).३६३ १४. फणीन्द्र-भवन, १५. रत्नराशि गर्भान्वय क्रिया और १६. निर्धूम अग्नि । सिंहनिष्क्रीडित २.५०.६९ [स] एक व्रत सज्जाति१०.(४२).३६३ सुरेन्द्रत्व १०.(८२).३६३ कन्वय क्रिया कन्वय क्रिया सद्गृहिस्व१०.(४२).३६३ सुखोदय १०.(४२).३६३ कर्मन्धय क्रिया गर्भान्वय क्रिया समचतुरस्त्र संस्थान६.(२).२२२ सुप्रीति १०.(४२).३६३ सुडौल सुन्दर शरीरका आकार गर्भान्वय क्रिया सम्यग्दर्शनके आठ गुण- ३.(६०).११७ सृष्टयधिकार १०.(४२).३६३ सम्यग्दर्शनके निम्न आठ गुण हैं, दश अधिकारोंमें एक अधिकार इन्हे अंग भी कहते हैं-१. निशं स्थानलाम १०.(४२).३६३ कित, २. निःकांक्षित, ३. निवि दीक्षान्वय क्रिया चिकित्सित ४. अमूढदृष्टित्व, ५. उप स्पर्श ३.३२.११७ गूहन, ६. स्थितीकरण, ७.वात्सल्य, सम्यग्दर्शन पर्याय और ८. प्रभावना। स्मृति १०.(४२).३६४ सर्वतोभद्र २.५०.६९ दश शुद्धियोंमें एक शुद्धि एक व्रत स्याद्वाद १.६.४ सल्लेखना १.(८२).३८ पदार्थमें रहनेवाले नित्य, अनित्य समाधिमरण, प्रतिकाररहित उप आदि धर्मोको विवक्षावश गौण सर्ग, दुर्भिक्ष तथा मरण आदिका और मुख्य करते हुए कथन करना । अवसर आनेपर धर्मकी रक्षाके लिए स्वगुरुस्थानसंक्रान्ति-- १०.(४२).३६३ समताभावसे प्राण छोड़ना समाधि गर्भान्वय क्रिया मरण या सल्लेखना कहलाता है । स्वराज्य १०.(४२).३६३ इसके भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनीमरण गर्भान्वय क्रिया और प्रायोपगमनके भेदसे तीन भेद स्वाध्याय १०.(४२).३६३ होते हैं। श्रावकका एक कर्म संग्रह १०.(४२).३६३ गर्भान्वय क्रिया संवेग३.१२.११७ हिरण्योस्कृष्टजन्मता १०.(४२).३६३ सम्यग्दर्शनका एक गुण, संसारसे गर्भान्वय क्रिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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