Book Title: Purudev Champoo Prabandh
Author(s): Arhaddas, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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४१५
कपूर
परिशिष्टानि घनतानघ४.(५४).१६४ चमरजात
३.(१५).२.०.२ घन-कांस्य आदि बाजेकी तानका
चमरीमृगोंका समूह, चमर घ-शब्द
चरमाङ्ग
६.(३०).२.३.३ घनश्री
६.९.२२६ उसी भवसे मोक्ष प्राप्त करनेवाला अधिक लक्ष्मी, मेघकी शोभा
चलाचल
१.(५२):२८ घनसार
२.८.५५ अत्यन्त चंचल चारणचरितविदित
२.(२६).६० घनाघसंघ
५.(३७).२०८ चारणऋद्धि धारक मुनियोंके गमनबहुत भारी पापोंका समूह
से प्रसिद्ध घृणि१.(९१).४१ चित्रकेतना
९.३८.३४७ किरण
नाना पताकाओंसे युक्त घृणिपूर६.(२२).२३७ चित्तभू -
६.(५५).२४४ किरणसमूह
कामदेव चिरत्न
२.(९५).८६ [ च]
प्राचीन
चिरत्नरत्नचक्रशोमा
६.(३३).२३४ प्राचीन रत्न चक्रवाकपक्षीके समान शोभा, चक्ररत्नकी शोभा
[ज] चक्राङ्गना१.१५.१० जगद्गुरु--
५.५.१९४ चकवी
जिनेन्द्र चक्रिप्राच्यक्षितिभूत१०.३३.३६५ जगडामरकारी
४.७.१४३ चक्रवर्तीरूपी पूर्वाचल
जगद्विजयी ५.१२.२०१ जंघायुग
६.१०.२२७ शोभमान
-पिंडरियोंका युगल चचरीकसंचय१.(१७).११ जंघालता
१.(२६).१४ भ्रमरसमूह
जंघारूपी लता, शीघ्रगामिता चञ्चलानन्द५.(१५).१९७ जडभृदूचि
२.(९८).८७ बिजलीकी कौंध, क्षणभंगुर आनन्द
मेघके समान कान्ति, मूोंमें रुचि चण्डमानु१.५०.२६ जडजरुचि
९.२२.३३७ सूर्य
कमलके समान कान्ति, मूर्खमें चतुर्णिकायत्रिदश
४.५४.२७२ उत्पन्न होनेवाली इच्छा भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और
जम्मारिमणि
२.(४१).६५ वैमानिक ये चार प्रकारके देव
इन्द्रनीलमणि चन्द्र२.(३५).६३ जम्मालम्मन
५.(१).१८८ चन्द्रमा, कपूर चन्द्रहास२.४०.७९ जागल
७.(१२).२५७ तलवार
जलरहित देश चन्दनस्थासक२.(१०९).९३ जातकर्म
९.१.३२१ चन्दनका तिलक
जन्मसंस्कार
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