Book Title: Purudev Champoo Prabandh
Author(s): Arhaddas, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 453
________________ पुरुदेवचम्पूप्रबन्धे कुलिशधर५.(३५).२०८ खलतामिव १०.९:३५२ इन्द्र अमरबेलके समान ४.(२३).१५१ खेचरकुम्मिनीपति १.(४८).२५ नीलकमल, महीमण्डल विद्याधरोंका राजा कुवलयानन्द ४.(७८).१७२ पृथिवीमण्डलका आनन्द, नील [ग] कमलका विकास गणधरकुशाकिमकर तीर्थकरके प्रमुख श्रोता, अनेक कुशलताको करनेवाला, कुशल मुनिगणोंके नायक सहित-मकरोंसे युक्त गन्धवहस्तनन्धय ५.(३०).२०६ कुशेशयनिकर ६.(५).२२४ मन्द वायु कमलसमूह, तपस्विसमूह गाङ्गेयकुम्भ ५.३.१९० कृतमाल २.(२१).५८ सुवर्ण कलश चिरालका वृक्ष गिरीश ४.(१०१).१८२ कृत्रिम क्षतज १.(४८).२६ गिरि + ईश = पर्वतोंका राजा, बनावटी खून गिर् + ईश = वाणीका स्वामी केशव२.(४९).६८ गुण २.५.५१ नारायण सम्यग्दर्शनादि गुण, धनुषकी डोरी केसर२.(२१).५८ गृहमेधी २.(४८).६७ बकुल वृक्ष गृहस्थ कौमुदी५.(१२).१९५ गोत्रातिशय ५.(८).१९३ चाँदनी पर्वतोंको डुबानेवाला, उच्चगोत्रक्षणदाक्षय वाला रात्रिका अन्तिम भाग गोत्राहित ७.११.२५८ क्षमाधर १.(२६).१५ इन्द्र पर्वत, क्षमागुणके धारक गोधिका १.(४८).२६ क्षामता २.(३४).६२ छिपकुली कृशता ग्रामकूट २.(२७).६० क्षोणीकल्पतरु ६.१.२२२ ग्रामका स्वामी पृथिवीके कल्पवृक्ष ग्रामसिंह ६.४६.२४९ क्षमाप १.१८.१३ कुत्ता राजा [ख] [] रखण्डप्रपात९.(५७).३४७ घनकीलाल ५,(६).१९१ विजया पर्वतकी एक गुफा अत्यधिक पानी, अत्यधिक रक्त खरांशुकान्त२.(१९).५७ घनपुष्प ५.(४).१९० सूर्यके समान सुन्दर जल, अत्यधिक पुष्प खलता १०.९.३५२ घनपुष्पवृष्टिदुष्टता अधिक पुष्पवर्षा, जलवृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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