Book Title: Purudev Champoo Prabandh
Author(s): Arhaddas, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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४२८
सुरनुव्यूह
सुरभिक - सुगन्धित सुरसार्थ-देवसमूह सुरवारमनोहर
वृक्षमू
देवसमूहके मनको हरनेवाला सुरसार्थइवाध्य
सुरसार्थ - देवसमूहसे
प्रशंसनीय,
सु-उत्तम रसार्थ - रस और अर्थसे
प्रशंसनीय
सुरस्रवन्ती - गंगानदी
सुरहितता
देवोंका हितपना, 'सु' अक्षरसे
रहितपन सुरागोज्ज्वल
सुराचल - सुमेरु सुराधिकासक्ति
अत्यन्त लालिमासे सुन्दर, सुर+ अग - सुमेरुपर्वत के समान सुन्दर, सुन्दर प्रेमसे मनोहर, सुर + अगदेववृक्ष- कल्पवृक्षोंसे सुन्दर
सुरुचिराज्य
उत्तम कान्तिका राज्य, उत्तमरुचिवर्धक आज्य-घी
सुवृत्त -
गोला, सदाचारसे युक्त सूक्तिवल्ली
सुर-देवोंमें अधिक आसक्ति, सुरामदिरामें अधिक आसक्ति
सुभाषितरूपी लता
सून लक्ष्मी
पुष्प जैसी लक्ष्मी, अत्यन्त अल्प लक्ष्मी
सौदामिनी-बिजली सूर्यादराञ्चित
सूर्यमें आदरसे सुशोभित, सूरि + आदर-मुनि सम्बन्धी आदरसे सुशोभित
४. ( ७८ ) . १७३
१०.५०.३७३
१०.२४.३६०
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पुरुदेव चम्प्रबन्धे
सौम्य -
बुध, शान्तिमुद्रासे युक्त सौमनसवन
६.३१.२४०
६. (३३).२३४
४. (९४).१७९ ४. (७८).१७२
१.७२.४५
६. (२७).२३१
८.२५.२९९
१.९.५
९.२२.३३७
सुमेरुका एक वन
५. (३९). २१० २. (९८).८८
सौरभ्यलहरी
सुगन्धकी संतति
स्नेह-तैल
स्फारतटिनी
विशाल नदी स्याद्वादोत्तमपक्षयुक्
स्याद्वादरूपी उत्तम पंखोंसे युक्त
स्वकालवालेद्ध
अपने काले बालोंसे देदीप्यमान,
अपनी क्यारियोंसे सुशोभित
स्वराजत्व
अपना राज्य, स्वर्गका राज्य स्वर्णत्व
सुवर्णपना, उत्तम जलपना
स्वाङ्कालंकार
हरिणांक- चन्द्रमा ४. (५८). १६५ हरिनिमा - सर्प के समान हरिपोतक - सिंह शिशु हंस - पक्षी, सूर्य, आत्मा
१. (२६).१५ हंसक
अपनी गोदका अलंकार
पैरका कड़ा, हंस पक्षी
हंसध्वनि
नूपुरोंकी झनकार, हंसोंका शब्द
हस्ताब्द - हाथरूपी मेघ
हास्तिक
हाथियोंका समूह
[ ह ]
हिमालय
हेममंच
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३.४३.१२४
१. (६६). ३३
१.१०.५
१. (१३).७
६.२१.२३३
१.६.४
५.३१.२१४
हिमालय पर्वत, हि-निश्चयसे मा
लक्ष्मीका आलय
सुवर्णनिर्मित पलंग
६.९.२२६
६. (१०). २२६
४. (९१).१७८
२.३४.७५
२.४९.८२
४.२९.१५९
२. (८५). ८३ १. (२६).१४
५.२५.२१२
१.२९.२० ९. (४८). ३४४
६. ६.२२५
३. २१.११२
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