Book Title: Purudev Champoo Prabandh
Author(s): Arhaddas, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 463
________________ ४२४ वनशुण्डालजंगली हाथी वनामर व्यन्तर देव वनीप बगिया का रक्षक वनीपकजन याचकजन वन्दिवात स्तुतिपाठक चारणोंका समूह ब्राह्मणादिवर्ण, रंग वर्ण वर्णोत्तम ब्राह्मण वर्षति - वर्षति - बरसता है वळक्षेतर कृष्ण वलग्न मध्यभाग वल्लकी बीणा एक वर्ष के समान आचरण करता है वशा हस्तिनी वशावल्लभ हाथी वसुधानुभव पृथिवीका अनुभव, सुधा-अमृतका अनुभव वस्त्राङ्गमहीज वस्त्राङ्गजातिका कल्पवृक्ष वाचालित शब्दायमान वातमार्ग आकाश वानीरजात 'व' छोड़कर के वृक्ष Jain Education International पुरुदेव चम्पूप्रबन्धे १. (६१). ३० ९.२१.३३७ २. (२१). ५८ वाहिनी २.१९.२३२ २. (१९).५७ वाहिनी १०.३०.३६४ ४. (५४). १६४ विकृत २.२०.६४ २.२०.६४ ४.३६.१६५ ६.९.२२६ वाळधी पूँछ वालिश्य विलसितमूर्खकी चेष्टा ६.(२७).२३१ ४. (१०९).१८७ ४. (७८).१७३ सेना, नदी ३.१९.११० २. (२१).५८ सेना वाहिनीपतिसेनापति, समुद्र विक्रियासे निर्मित विचित्रोपायन नाना प्रकार के उपहार १. (१७). ११ विद्रुत - १. (१०१).४६ विद्रुम मूंगा १.(१०१).४६ विद्रुमच्छाय विच्छित्ति चमत्कार विजय वैजयन्ती विजयपताका विटपालम्बिताम्बरा - जिसके वस्त्र गुण्डों द्वारा पकड़े गये हैं ऐसी स्त्री, शाखाओंसे आकाशको छूनेवाली वृक्षावली पिघले हुए वृक्षोंकी छायासे रहित, मूंगाके समान कान्तिसे युक्त विधुमणि चन्द्रकान्तमणि विप्रयोग विरह विबुधजन देवसमूह विभुतया महिमासे, भुवनपति शब्द में से 'भु' को पृथक् कर देनेसे विमन शत्रु For Private & Personal Use Only १. (४८).२६ १०. (४९). ३६५ ३. ७.१०१ ४.७१.१८६ ५. (६).१९१ ५.५.१९४ ९. (५७).३४६ १.१२.६ ६. (५२). २४३ १. (१०१).४६ १. (१३).९ १. (२६). १४ ७. (३).२५३ १. (१३). ९ १.१५.१० ८. (२५).२९० ४.(६०).१६६ २.२.५०. www.jainelibrary.org

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