Book Title: Purudev Champoo Prabandh
Author(s): Arhaddas, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 433
________________ ३९४ होते हैं जिनमें स्वस्तिक आदि १०८ लक्षण कहलाते हैं और मसूरिका आदि ९०० व्यञ्जन कहलाते हैं । लिंग दश शुद्धियों में एक शुद्धि लिपि संख्यान -- गर्भान्वय क्रिया [ व ] वज्रवृषभनाराच संहनन अत्यन्त सुदृढ़ हड्डियों वाला वणलाभ गर्भान्विय क्रिया वर्णोत्तमस्व- दश अधिकारोंमें एक अधिकार वस्त्राङ्ग- वार्ता श्रावकका एक कर्तव्य विधिदान एक प्रकार के कल्पवृक्ष इच्छानुसार वस्त्र प्राप्त होते हैं । गर्भावय क्रिया विद्याकुलावधि— दश अधिकारोंमें एक अधिकार वसुधाभेद संनिभ अप्रत्याख्यान विषय दश शुद्धियोंमें एक शुद्धि विष्वाण आहार विहार शरीर गर्भान्वय क्रिया १०. (४२). ३६४ १०. (४२). ३६३ Jain Education International ६. (२). २२२ क्रोधक्रोधके चार भेद हैं- १. शिला भेद, २. पृथिवी भेद, ३. धूलि भेद, ४. जलरेखा भेद, यह चार प्रकारका क्रोध क्रमसे नरक, तिर्यंच मनुष्य और देव आयुके बन्धका कारण है । देवचम्पूप्रबन्धे १०. (४२).३६३ १०. (४२).३६३ ३.(४५).११३ जिनसे १०.(४२).३६३ १०. (४२).३६३ १०. (४२). ३६३ ३. (३३).१०७ १०. (४२). ३६४ ३.५०.१३० १०.(४२).३६३ व्रतचर्या गर्भान्वय क्रिया वृत्तलाभ 'दीक्षान्वय क्रिया व्रतावतरण गर्भान्विय क्रिया व्यञ्जन व्युष्टि गर्भान्वय क्रिया भगवान् के शरीरमें पाये जानेवाले मसूरिका आदि ९०० चिह्न व्यञ्जन कहलाते हैं शुक्लध्यान व्यन्तर- एक प्रकारके देव, इनके किन्नर, किंपुरुष आदि आठ भेद होते हैं। व्यवहारेशिव दश अधिकारोंमें एक अधिकार श्रद्धा- सम्यग्दर्शनकी एक पर्याय श्रुतज्ञान एक व्रत श्रुतज्ञान एक व्रत श्रत स्कन्ध द्वादशांग रूप वृक्ष [ श ] श्रुति - १०. (४२).३६३ १०. (४२). ३६३ इसके चार भेद हैं- १. पृथक्त्व वितर्क, २. एकत्ववितर्क, ३. सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाती और ४. व्युपरत क्रिया निर्वात । यह आठ वैसे चौदहवें गुणस्थान तक होता है । वीरसेनाचार्य के मतसे ११ वें से १४वें तक दशशुद्धियोंमें एक शुद्धि For Private & Personal Use Only १०. (४२).३६३ ६. (२).२२२ ४.४८.१७० १०. (४२).३६३ १०. (४२). ३६३ ८. (३५). २९३ ३. (३२).११७ २.३४.६२ २.५४.७१ १.७.४ १०. (४२).३६४ www.jainelibrary.org

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