Book Title: Purudev Champoo Prabandh
Author(s): Arhaddas, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 424
________________ २. पुरुदेवचम्पूप्रबन्धे समागतवतानां विधिनिरूपणम् जिनगुणसम्पत्ति--पृष्ठ ६१,७१ मुक्तावली-पृष्ठ ६९ हरिवंशपुराणमें इसका नाम जिनेन्द्रगुणसम्पत्ति- इस व्रतमें २५ उपवास और ९ पारणाएँ होती व्रत दिया है। इसकी विधि पुरुदेवचम्पूमें इस प्रकार हैं। उनका क्रम यह है-एक उपवास एक पारणा, दी है दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, षोडशतीर्थकरभावनाश्चतुस्त्रिशदतिशयानष्टप्राति- चार उपवास एक पारणा, पाँच उपवास एक पारणा, हार्याणि पञ्चकल्याणकान्युद्दिश्य त्रिषष्टिदिवसः क्रिय- चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, माणमुपोषितव्रतं जिन गुणसंपत्तिरिति जोघुष्यते । दो उपवास एक-पारणा और एक उपवास एक सोलह तीर्थकरभावनाएँ, चौंतीस अतिशय, आठ पारणा। यह व्रत चौंतीस दिनमें पूर्ण होता है। प्रातिहार्य और पाँच कल्याणक इन्हें लक्ष्य कर वेशठ सिंहनिष्क्रीडित व्रत-पृष्ठ ६९ दिनमें किया जानेवाला उपवास व्रत जिनगुणसम्पत्ति- सिंहनिष्क्रीडितव्रतके जघन्य, मध्यम और व्रत कहलाता है। उत्कृष्टकी अपेक्षा तोन भेद हैं । जघन्यमें ६० उपइस व्रतमें एक उपवास और एक पारणाके क्रम- वास और २० पारणाएँ होती है । यह व्रत ८० दिनमें से ६३ उपवास और ६३ पारणाएँ की जाती हैं। पूर्ण होता है। मध्यममें एक सौ पन उपवास और सब मिलाकर १२६ दिनमें व्रत पूर्ण होता है। तेंतीस पारणाएँ होती हैं । यह व्रत एक सौ छियासी दिनमें पूर्ण होता है । उत्कृष्टमें चारसौ छियानबे श्रवज्ञान-पृष्ठ ६२,७१ उपवास और इकसठ पारणाएँ होती हैं। इस व्रतमें हरिवंशपुराणमें इसका नाम श्रुतविधि दिया है। कल्पना यह है कि जिस प्रकार सिंह किसी पर्वतपर इसकी विधि पुरुदेवचम्पूकारने इस प्रकार दी है- क्रमसे ऊपर चढ़ता है और फिर क्रमसे नीचे उतरता ___अष्टाविंशतिमतिज्ञानभेदानेकादशाङ्गान्यष्टाशीति- है उसी प्रकार इस व्रतमें मुनि तपरूपी पर्वतके सूत्राणि प्रथमानुयोगं परिकर्मद्वयं चतुर्दशपूर्वाणि पञ्च- शिखर पर क्रमसे चढ़ता है और क्रमसे उतरता है । लिकाः षडवधिज्ञानं मनःपर्ययज्ञानद्वयं केवलज्ञानमेक- इसके उपवास और पारणाकी विधि निम्नलिखित मुद्दिश्याष्टपञ्चाशदधिकदिनशतेन क्रियमाणमनशनव्रतं यन्त्रोंसे स्पष्ट की जाती है। नीचेकी पंक्ति से उपवास श्रुतज्ञानमिति श्रूयते । और ऊपर पंक्तिसे जिसमें एकका अंक लिखा है ___ अठाईस मतिज्ञानके भेद, ग्यारह अंग, अठासी पारणा समझना चाहिए। सूत्र, प्रथमानुयोग, दो परिकर्म, चौदहपूर्व, पाँच चूलि जघन्य सिंहनिष्क्रीडितका यन्त्र । काएँ, छह प्रकारका अवधिज्ञान, दो प्रकारका मनःपर्ययज्ञान और एक प्रकारका केवलज्ञान, इन सबको लक्ष्यकर एक सौ अट्ठावन दिनके द्वारा किया जानेबाला अनशनव्रत श्रुतज्ञानव्रत नामसे प्रसिद्ध है। ___ इसकी विधि इस प्रकार है कि एक उपवास और एक पारणा इस क्रमसे इसमें १५८ उपवास और १५८ पारणाएँ होती है। यह व्रत तीन सौ सोलह दिनमें पूर्ण होता है। ४९ Jain Education International www.jainelibrary.org. ११२२३३ ४४५५ ५५४४३३२२११ For Private & Personal Use Only

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