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पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा और पाँच उपवास एक पारणा । इसी प्रकार आगेके भंगोंमें भी समझना चाहिए ।
यन्त्र - उपवास १ २ ३ पारणा १
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उपवास ४ ५
पारणा १
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उपवास २ ३
पारणा १
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उपवास ५ १
पारणा १ १ उपवास ३ ४
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परिशिष्टानि
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पारणा १ १
रत्नावली -पृष्ठ ६९, ७१
इस व्रत में ३० उपवास और १० पारणाएँ होती हैं तथा ४० दिनमें पूर्ण होता है। उपवास का क्रम इस प्रकार है
एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पाँच उपवास एक पारणा, पाँच उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा और एक उपवास एक पारणा ।
इस व्रतकी दूसरी विधि हरिवंश पुराणमें इस प्रकार बतलायी है- एक बेला एक पारणा, एक बेला एक पारणा - इस क्रमसे दश बेला दस पारणा, फिर एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, इस क्रमसे सोलह उपवास तक बढ़ाना चाहिए । फिर एक बेला एक पारणा इस क्रमसे तीस बेला तीस फिर षोडशी के सोलह उपवास एक पारणा, पारणा, पन्द्रह उपवास एक पारणा इस क्रमसे एक उपवास एक पारणा तक आना चाहिए। फिर एक बेला एक पारणाके क्रमसे बारह बेला बारह पारणाएँ तत्पश्चात् नीचेकी चार बेला और चार पारणाएँ करना चाहिए । इस प्रकार यह व्रत एक वर्ष, तीन माह और बाईस दिनमें पूर्ण होता है । इसमें सब मिलाकर तीन सौ चौरासी उपवास और अठासी पारणाएँ होती हैं ।
कनकावली - पृष्ठ ७०
इस व्रत में चार सौ चौंतीस उपवास और अठासी पारणाएँ होती हैं । इनका क्रम इस प्रकार है
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एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा आदि । इस व्रतके उपवास और पारणाओंकी संख्या निम्नलिखित यन्त्र से समझना चाहिए। ऊपर की पंक्तिसे उपवासोंकी और नीचेकी पंक्तिसे पारणाओंकी संख्या लेना चाहिए -
१,२,३,३,३,३, ३, ३, ३,३, ३, १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १०, ११, १२, १३, १४, १५, १६, ३, ३,३, ३, ३, ३, ३, ३, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, ३,३, ३, ३, ३, ३,३,३, ३,३, ३, ३,३, ३, ३, ३, ३, ३,३, ३, १, १, १, १,१. .१.१.१.१.१, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, ३,३,३,३,३,३, ११, १५, १४, १३, १२, ११, १०,९, ८, १, १, १, १, १, १, १,११,१११, १, १, १, ७, ३, ५,४,३, २, १, ३, ३, ३,३,३, ३,२,३,३, २, १, _१,१,१,१,१,१,१, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, १, आचाम्लवर्धन
वन - पृष्ठ ७१, ७३
इस व्रत की विधिमें पहले दिन उपवास करना चाहिए, दूसरे दिन एक बेर बराबर भोजन करना चाहिए तीसरे दिन दो बेर बराबर, चौथे दिन तीन बेर बराबर, इस तरह एक-एक बेर बराबर बढ़ाते हुए ग्यारहवें दिन दस बेर बराबर भोजन करना चाहिए । फिर दश को आदि लेकर एक-एक बेर बराबर घटाते हुए दशवें दिन एक बेर बराबर भोजन करना चाहिए और अन्त में एक उपवास करना चाहिए । इस व्रत के पूर्वार्धके दश दिनोंमें निर्विकृति - नीरस भोजन लेना चाहिए और उत्तरार्धके दश दिनोंमें इक्कट्ठाणाके साथ अर्थात् भोजनके लिए बैठनेपर पहली बार जो भोजन परोसा जाये उसे ग्रहण करना चाहिए। दोनों ही अर्धीमें भोजनका परिमाण ऊपर लिखे अनुसार ही समझना चाहिए । आचाम्लवर्धन तपकी उक्त विधि क्रम करना चाहिए ।
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सूचना - उपर्युक्त व्रतोंके यन्त्र आदिकी जानकारीके लिए भारतीय ज्ञानपीठ वाराणसीसे प्रकाशित हरिवंश पुराणका चौंतीसवाँ सर्ग देखना चाहिए ।
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