Book Title: Purudev Champoo Prabandh
Author(s): Arhaddas, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 394
________________ ३५५ -२२ ] दशमः स्तबकः चञ्चत्सेनां समरकुतुकः प्रोल्लसद्रोमहर्षी . प्रस्थानाय प्रकटितमदामायतामादिदेश ॥१४॥ ३२१ ) मदकरिघटाबन्धै रङ्गत्तुरङ्गमसंगतैः प्रचलितबलभैरीरावैर्विदारितदिङ्मुखैः । क्षितितलगलद्धूलोपालीविशोषितवारिधि र्भुजबलिमहिपालो भेजे भुवं समरोचिताम् ॥१५॥ $ २२) अथ दूतवचननिशमनकुपितभरतराजसमादिष्टा समुन्नतजयकेतनकलिततया संततसंपतन्मदधाराविराजिततया सिन्दूरपरागशृङ्गारिताङ्गतया रत्नमयखेटकघटितकुम्भस्थलतया च महामहीरुहमहितान् कटकनिकटविशङ्कटनिर्झरान् संध्याम्बुदचुम्बितान् अवलम्बितरविबिम्बान्, असंख्याताज्जङ्गमधराधरांस्तुलयद्भिर्गन्धसिन्धुरैवविजितपवनैनिजरय- १० कोटयाग्रभागेन संघट्टि तावन्री चरणौ यस्य तथाभूतः, समरस्य रणस्य कुतुकं यस्य तथाभूतः अयं क्षितिपतिः बाहुबली प्रोल्लसद्रोमहर्षी शुम्भल्लोमहर्षी युद्धवार्तया रोमाञ्चितामित्यर्थः, प्रकटितमदां प्रकटितगर्वाम् आयतां दो( चञ्चत्सेनां शोभमानपृतनां प्रस्थानाय प्रयाणाय आदिदेश आदिष्टवान् । मन्दाक्रान्ता छन्दः ॥१४॥ २१) मदेति-मदकरिघटाया मत्तमतङ्गजसमूहस्य बन्धो येषु तैः रङ्गत्तुरङ्गमैरुच्चलदश्वैः संगतानि संयुक्तानि तैः प्रचलितबलः प्रस्थितसैन्यैः विदारितानि दिङ्मुखानि यस्तैः भेरीरावैः दुन्दुभिशब्दः उपलक्षितः १५ क्षितितलात्पृथिवीतलाद् गलन्त्यो निःसरन्त्यो या धूलोपाल्यो रजःश्रेणयस्ताभिर्विशोषितो वारिधिर्येन तथाभूतः भुजबलिमहीपालो बाहुबलिनरेश्वरः समरोचितां रणाहीं भुवं भूमि भेजे प्राप । हरिणो छन्दः ॥१५॥ २२ ) अथेति-अथानन्तरं दूतवचनस्य निशमनेन श्रवणेन कुपितः क्रुद्धो यो भरतराजस्तेन समादिष्टा समाज्ञप्ता षडङ्गपताकिनी षडङ्गसेना रणाङ्गणावतरणाय समराजिरावतरणाय प्रचचाल प्रचलति स्म । अथ कथंभूता सा षडङ्गपताकिनीत्याह-गन्धसिन्धुरैर्मत्तद्विपैः परीता व्याप्ता। कथंभूतैर्गन्वसिन्धुरैरित्याह-समुन्न. २० तेन समुक्षिप्तेन जयकेतनेन विजयपताकया कलिततया सहिततया, संततं निरन्तरं संपतन्ती या मदधारा दानराजिस्तया विराजिततया शोभिततया, सिन्दूरपरागेण शृङ्गारितं शोभितमङ्गं येषां तेषां भावस्तया, रत्नमयखेटकेन रत्नमयावरणेन घटितं युक्तं कुम्भस्थलं गण्डस्थलं येषां तेषां भावस्तया च महामहीमहमहावृक्षमहितान् शोभितान्, कटकनिकटे मेखलाम्यणे विशङ्कटा विशाला निर्झरा येषां तान्, संध्याम्बुदैः सांध्यमेघैः चुम्बिता जिसे कुतूहल है ऐसे इस राजा बाहुबलीने, जिसके रोमांच उठ रहे थे, जिसका बहुत भारी २५ गर्व था तथा जिसका बहुत भारी परिमाण था ऐसी शोभायमान सेनाको प्रस्थान करनेके लिए आदेश दिया ॥१४॥ २१ ) मदेति-मदोन्मत्त हाथियोंके समूहसे सहित, उछलते हुए घोड़ोंसे युक्त चलती हुई सेनाओं तथा दिशाओंको विदीर्ण करनेवाले भेरियोंके शब्दोंसे जो सहित था, एवं पृथिवीतलसे उठती हुई धूलिकी पंक्तियोंसे जिसने समुद्रको सुखा दिया था ऐसा राजा बाहुबली युद्धके योग्य भूमिको प्राप्त हुआ ॥१५।। ६२२) अथेति-तदनन्तर दूतके ३० वचन सुननेसे क्रोधको प्राप्त हुए भरतराजसे जिसे आज्ञा प्राप्त हुई थी ऐसी छह अंगोंसे युक्त सेना रणांगणमें उतरनेके लिए चल पड़ी। वह सेना उन हाथियोंसे सहित थी जो ऊपर फहराती हुई पताकासे सहित होने, निरन्तर पड़ती हुई मदधाराओंसे सुशोभित होने, सिन्दूरकी परागसे शरीरके श्रृंगारयुक्त होने तथा रत्ननिर्मित ढालसे गण्डस्थलके सहित होनेसे उन चलते-फिरते असंख्य पर्वतोंकी तुलना कर रहे थे, जो बड़े-बड़े वृक्षोंसे सुशोभित थे, जिनकी ३५ मेखलाओंके निकट बड़े-बड़े झरने पड़ रहे थे, जो सन्ध्याके लाल-लाल मेघोंसे चुम्बित थे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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