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प्रशमरतिः
किाव
हारि.वृत्तिः
द्वक्तव्य
। श्रीहरिभद्रजीनी वृत्तिमा 'सुगमत्वलघुत्वाभ्यां' एम कहीने संक्षिप्त करवानो अन्धकारनो उद्देश छे, ए तेओने नथी समजायं तेथी तेमने आ विवरण ओछं के त्रुटक जणायुं छे. आ निवेदनमा उल्लेखित टीकाओ उपरांत बीजी कोई टीकाओ आ ग्रंथपर रचाई छे के नहीं ते जाणी शकातुं नथी. अमारा तरफथी तद्दन नवीन ज प्रकाशन अन्तभागे अवचूरीसहित मुद्रित करावी पाठकोने अर्पण कराय छे, तो मनन-निदिध्यासन वडे प्रकाशक अने संशोधकना परिश्रमने पाठको सफल करशे एवी आशा साथे विरमुं छ.
॥१६॥
जीवणचंद साकरचंद झवेरी
वि० सं० १९९६ आषाढशुक्ल चतुर्दशी, गुरुवार ।
मुंबई, तारीख १८ जुलाई १९४० ।
मत्री
AGARIKAASAROVACANCARROR
॥१६॥
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