Book Title: Pranav Gita Part 01 Author(s): Gyanendranath Mukhopadhyaya Publisher: Ramendranath MukhopadhyayaPage 21
________________ - अवतरणिका ___ गीता विज्ञान शास्त्र है। स्वभावके कार्य विषयमें विशेष प्रकार ज्ञानका नाम विज्ञान है। स्वभाव वा प्रकृति दो प्रकार की है-जड़ और चैतन्य । जड़ विषयमें जो विशेष ज्ञान है वह जड़ विज्ञान; और चैतन्य विषयमें जो विशेष ज्ञान है वह चैतन्य विज्ञान है। क्षिति, अप, तेज मरुतू, व्योम-यह पञ्चभूतके जड़ाश्रय होनेसे इन सबके विषयमें जो विशेष ज्ञान है, उसको जड़ विज्ञान; और मन, बुद्धि, अहंकार, चित्त-इन चार प्रकारके अन्तःकरणके चैतन्याश्रय होनेसे, इनके सम्बन्धमें जो विशेष ज्ञान है, उसको चेतन्य विज्ञान कहते हैं। . पृथ्वीतत्व, रसतत्त्व, तेजस्तत्व, वायुतत्त्व और आकाशतत्त्व-इन सब तत्त्वका मिश्र तथा अमिश्र क्रियाकलाप देखना और इनमेंसे स्थूल के ऊपर सूक्ष्मकी कार्यकरी शक्तिका प्रयोग तथा तत्साधनोपयोगी विविध उपाय उद्भाबन-प्रभृति क्रिया ही जड़ विज्ञानका विषय है। जड़तत्वको आलोचना करनेसे मालूम होता है कि तत्त्व जितना सूक्ष्म होवेगा, उसको संयत करनेसे स्थूलतत्त्वके ऊपर उसकी कार्यकरी शक्ति उतनी ही अधिक होवेगी। अब यह स्थूल पचतत्त्वसे मन-बुद्धिअहंकार-चित्त यह चार पाद विशिष्ट अन्तःकरण अतीव सूक्ष्म हैं। इस चित्तादि पार्दै विशिष्ट सूक्ष्मतत्त्वको संयत करनेसे यह पृथिव्यादि स्थूलतत्त्व समूहके ऊपर किस प्रकार क्रिया करके किस जगह कैसा फल उत्पन्न करता है, और इसको अपने कारणमें युक्त करनेसे भी इसका किस प्रकार परिणाम होता है, उस उस विषयका तत्स्वानुसन्धान करना ही चैतन्यविज्ञानका विषय है। जड़विज्ञानसे केवलमात्र विषयश्रीकी वृद्धि होती है, परन्तु, चैतन्यविज्ञानसे विषयश्री तथा परमार्थश्री दोनोंकी ही वृद्धि होती है। जड़विज्ञान चैतन्यके ही अन्तर्गत है। चैतन्यविज्ञानविद् होनेसे सर्वज्ञत्वशक्ति आती है जिसमें जड़विज्ञान भी आयत्त होता है। ज्ञानविज्ञानविद् योगीगणने निर्णय किया है कि अन्त:करणवृत्ति वा चित्तवृत्तिको संयत करके प्राकृतिकPage Navigation
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