Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 15
________________ विषय की ओर प्रवाहित होने वाला सतत प्रवाह.. उस. सतत प्रवाह में, बिना किसी बाधा के बस उस प्रवाह में, नदी की भांति प्रवाहित होना, बिना विचलित हुए. अचानक पहली बार तुम अपने अंतर्तम के प्रति जागरूक होते हो, जो कि तुम्हारे पास ही है: जो कि तुम हो। चेतना के इस अविच्छिन्न सतत प्रवाह में अहंकार विसर्जित हो जाता है। तुम आत्मरूप हो जाते हो, अहंकार बिदा हो जाता है, केवल आत्मा ही रह जाते हो। तब तुम सागर बन जाते हो। दूसरा ध्यान का मार्ग कलाकार का है। प्रथम एकाग्रता, वैज्ञानिक का मार्ग है। वैज्ञानिक का संबंध बाह्य संसार से होता है, स्वयं से नहीं। कलाकार अपने से संबंधित होता है, बाह्य संसार से नहीं। जब वैज्ञानिक किसी चीज को निर्मित करता है, तो वह उसे विषय-वस्तु के संसार से निर्मित करता है। जब कलाकार कुछ सृजन करता है, तो वह उसका सृजन स्वयं के भीतर से करता है। कविता को वह स्वयं के भीतर से रचता है। स्वयं के भीतर ही गहरे खोदकर वह चित्र बनाता है। किसी भी कलाकार को विषयगत होने के लिए मत कहना। कलाकार आत्मनिष्ठ होता है। क्या तुमने वानगाग के बनाए हुए वृक्षों को देखा है? वे आकाश को छूते हुए मालूम पड़ते हैं : वे चांद- तारों को छूते हैं। अगर वानगाग का वश चलता तो वह चांद-तारों के भी पार गए होते। वैसे वृक्ष केवल वानगाग की पेंटिंग्स में ही देखने को मिलते हैं, यथार्थ में कहीं देखने को नहीं मिलते। वानगाग की पेंटिंग्स में चांद -तारे छोटे हैं और वृक्ष बड़े होते हैं। किसी ने वानगाग से पूछा, 'आपने ऐसे वृक्ष कहां पर देखे हैं? हमने तो ऐसे वृक्ष कभी नहीं देखे।' वानगाग बोला, 'क्योंकि मेरे देखे, वृक्ष आकाश से मिलने की पृथ्वी की आकांक्षा हैं।' आकाश से मिलने की पृथ्वी की आकांक्षा, अभीप्सा-तब वृक्ष पूरी तरह से बदल जाता है। तब तो एक रूपांतरण घटित हो जाता है। तब वृक्ष कोई विषयगत चीज या वस्तुगत रूप नहीं रह जाता है, तब वह आत्मनिष्ठ रूप बन जाता है। जैसे कि कलाकार वृक्ष को पहचान लेता है और स्वयं ही वृक्ष हो जाता झेन गुरुओं के संबंध में बड़ी सुंदर कथाएं हैं, क्योंकि झेन -गुरु अक्सर या तो चित्रकार या बड़े कलाकार हुआ करते थे। यह झेन की सुंदरतम बात है। अन्य कोई धर्म सृजनात्मक नहीं है, और अगर धर्म सृजनात्मक नहीं है, तो वह धर्म समग्र नहीं हो सकता है -किसी न किसी बात का अभाव उसमें रहता है। एक झेन गुरु अपने शिष्यों से कहा करते थे, 'अगर तुम किसी बांस की पेंटिंग बनाना चाहते हो, तो बांस ही बन जाओ।' इसके अतिरिक्त बांस की पेंटिंग बनाने का और कोई उपाय नहीं है। अगर तुमने बांस को भीतर से अनुभव नहीं किया तो कैसे तुम एक बांस को चित्रित कर सकते हो? अगर तुमने यह अनुभव नहीं

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