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प्रथम एकाग्रता : विषय-वस्तुओं की भीड़ को गिरा देना, और एक ही विषय को चुन लेना। जब एक बार तुमने एक विषय को चुन लिया और एक विषय को धारण करके अपनी चेतना में रह सकते हो, तब तुमने एकाग्रता को प्राप्त कर लिया होता है।
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फिर दूसरा चरण है ध्यान के विषय की ओर चेतना का सतत प्रवाह जैसे कि टार्च से अबाधित रूप से निरंतर प्रकाश आ रहा हो।
और फिर तुमने देखा? तुम एक बर्तन से दूसरे बर्तन में पानी डालते हो, तो उसका प्रवाह सतत नहीं होता; वह अविच्छिन्न नहीं होता। तुम एक बर्तन से दूसरे बर्तन में तेल डालते हो तो प्रवाह सतत एवं अविच्छिन्न होगा, उसका प्रवाह टूटेगा नहीं ।
ध्यान का अर्थ है. चेतना बिना किसी अवरोध के बिना किसी बाधा के ध्यान के विषय पर उतर रही होती है क्योंकि अवरोध को मतलब है कि ध्यान भंग हो गया, तुम कहीं और चले गए। अगर पहला चरण उपलब्ध हो जाए, तो फिर दूसरा चरण उतना मुश्किल नहीं। अगर पहला चरण ही उपलब्ध न हो सके, तो फिर दूसरा तो असंभव है। एक बार जब विषय-वस्तु गिर जाती है, और एक हो विषय रह जाता है, तब चेतना के सभी छिद्र बंद हो जाते हैं, चेतना की सारी आंतिया गिर जाती हैं, बस तब एक ही विषय पर पूरी चेतना केंद्रित हो जाती है।
जब तुम अपनी चेतना एक ही विषय पर केंद्रित करते हो तो वह विषय अपनी सभी गुणवत्ताओं को प्रकट कर देता है। छोटा सा विषय, और परमात्मा के सभी राज प्रकट हो जाते हैं।
टेनीसन की एक कविता है। एक सुबह वह सैर के लिए जा रहा था, रास्ते में उसे एक पुरानी दीवार दिखाई पड़ी, जिस पर घास उगी हुई थी, और उस पर एक छोटा सा फूल खिला हुआ था। टेनीसन ने उस फूल की तरफ देखा। सुबह का समय था, और संभव है कि वह अपने को बहुत शांत अनुभव कर रहा होगा सुबह का समय और सूर्योदय अचानक उसके मन में एक खयाल आया उस छोटे से फूल की ओर देखते हुए वह बोला, 'अगर मैं तुम्हें जड़ से लेकर तुम्हारे पूरे अस्तित्व को समझ सकूं तो मैं संपूर्ण ब्रह्मांड को समझ जाऊंगा। क्योंकि इस अस्तित्व का छोटा सा अंश भी, अपने में एक छोटी सी सृष्टि ही है।'
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छोटा सा अंश भी अपने में पूरी सृष्टि को समाए हुए है, जैसे कि प्रत्येक बूंद अपने में सागर को समाए होती है अगर सागर की एक बूंद को समझ लिया तो सागर को समझ लिया, अब एक-एक बूंद को जानने - समझने की जरूरत नहीं है, एक ही बूंद को समझना पर्याप्त है। एकाग्रता बूंद के गुणों को प्रकट कर देती है, और फिर बूंद ही सागर बन जाती है।
ध्यान चेतना की गुणवताओं को प्रकट कर देता है, और फिर व्यक्ति चेतना समिष्ट चेतना बन जाती है। पहला चरण विषय को प्रकट करता है, दूसरा चरण आत्मा को उदघाटित करता है। किसी