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'योग मन की समाप्ति है। '
यह पतंजलि की परिभाषा है जब मन सक्रिय न हो, तब तुम योग में हुए जब मन मौजूद हो तो तुम योग में नहीं हो तो तुम सारे के सारे आसन लगाये जाओ, मुद्राएं बनाये जाओ लेकिन यदि मन कार्य करता ही रहे, यदि तुम सोचते ही रहो तो तुम योग में नहीं उतरे ।
योग अ-मन होने की अवस्था है। यदि तुम कोई आसन लगाये बिना भी अ-मन बने रह सको तब तुम एक सम्पूर्ण योगी हुए। बिना किसी आसन किये, बहुतों के साथ ऐसा घटित हुआ है। और ऐसा उन बहुतों के साथ घटित नहीं हुआ जो योगासनों को साधे जा रहे हैं जन्मों-जन्मों से।
सबसे बुनियादी बात जो समझने की है वह यह कि जब सोचने-विचारने की क्रिया वहां नहीं होती, तब वहां तुम होते हो। जब मन की सक्रियता वहां नहीं होती, जब विचार तिरोहित हो जाते हैं, जो कि बादलों की भांति हैं और जब वे तिरोहित हो जाते हैं तो तुम्हारा अस्तित्व जो आकाश की भांति है, वह ढका हुआ नहीं रहता। वह स्व-सत्ता तो हमेशा ही वहां है, केवल आच्छादित रहता है बादलों से ढका रहता है विचारों से।
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'योग मन की समाप्ति है।'
अब तो पश्चिम में 'झेन' के लिए बहुत आकर्षण बन गया है। झेन जापानी प्रणाली है योग की यह शब्द 'झेन ध्यान शब्द से ही बना है बोधिधर्म द्वारा चीन में इस शब्द ध्यान' का प्रसार हुआ। बौद्धों की पाली भाषा में ध्यान शब्द 'झान' बन गया और फिर चीन में यही शब्द 'चान' बना और फिर यह शब्द जापान में पहुंच कर 'झेन' बन गया।
शब्द का मूल ध्यान ही है ध्यान का अर्थ होता है अ-मन और इसलिए जापान में झेन के सारे प्रशिक्षणों का सार है कि मन की क्रियाओं को कैसे रोका जाये, अमन कैसे हुआ जाये, बिना विचार के होना कैसे फलित हो ।
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कोशिश करो। जब मैं कहता हूं कोशिश करो तो बात कुछ विरोधाभास पूर्ण मालूम होगी, लेकिन इसे कहने का और कोई ढंग नहीं है। यदि तुम कोशिश करो, तो यह प्रयास मन से ही आता हुआ मालूम पड़ता है तुम एक आसन लगा बैठ सकते हो और कोई जाप कर सकते हो, मंत्र पढ़ सकते हो या तुम कुछ भी न सोचते हुए मौन बैठने का प्रयत्न कर सकते हो। लेकिन कुछ न सोचने का प्रयत्न करना भी सोचना बन जाता है। तुम स्वयं से कहते चले जाते हो, 'मुझे कुछ नहीं सोचना है; कुछ न सोचो सोचना बन्द करो। लेकिन यह सब सोचना ही है।
समझने की कोशिश करो। जब पतंजलि कहते हैं अ-मन की बात, 'मन की समाप्ति की बात, तो उनका मतलब है पूरी समाप्ति। वे कभी भी जाप करने की स्वीकृति नहीं देंगे कि 'रामराम-राम' दोहराये चले जाओ। वे कहेंगे, जप करना मन की समाप्ति नहीं है। तुम मन को तो