Book Title: Parshvanath Charitam
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 15
________________ * श्री पार्श्वनाथ चरितम् * - ---..-.'-.-. -.-.- Ne p alKanoon. - - ........ ." यद्धपानेन प्रणश्यन्त्यत्रानन्ताः कर्मराशय: । यद्यतोऽपविघ्नादि-नाशे को विस्मयः सताम् ।।७॥ इत्यादिमहिमोपेतं जगन्नाथ जगद्गुरुम् । श्रीपार्श्व स्तोम्यहं वन्दे प्रारब्धविघ्नशान्तये ।।८।। दिव्यवाविकरणरादौ रागद्वेष-तमरचयम् । उच्छिा संप्रकाश्योच्चैर्मोक्षमार्ग सतां च वैः ।।६।। कारुण्यात्स्वर्गमुक्त्याप्त्यै योऽभूदद्भ तोऽशुभान् । तं जिनेशं वृषाधीशं वृषदं वृषभं स्तुने ।। १० ।।युग्मम् योऽज्ञानतिमिरं हत्वा सद्धर्मामृतबिन्दुभिः । चक्रे कुवलयालादं चन्द्राभं तं स्मराम्यहम् ।।११।। कामश्चक्री जिनेन्द्रपच योऽभवन्मुक्तिनायक: । जगच्छाम्तिकरः शान्त्यै त शान्तीशं नमाम्यहम् ।१२। मोहमल्लं मृतं दृष्ट्वाऽमा ख: कामो भयातुरः । यस्मानष्टोऽत्र बाल्येऽपि ने मिमें सोऽस्तु सिद्धये।।१३।। येन प्रकाशितो धर्मो वर्ततेऽद्यापि दु:षमे । काले धा मुनीन्द्रश्च श्रावकैः शर्मसागर: ।।१४।। प्रसाध्य तथा कठिन साध्य समस्त रोग उस तरह क्षणभर में क्षय को प्राप्त हो जाते हैं जिस प्रकार कि सूर्य के द्वारा अन्धकार नष्ट हो जाता है ॥६।। जिनके ध्यान से इस जगत में यदि कर्मों के अनन्त समूह नष्ट हो जाते हैं तो इससे दूसरों के विघ्नादि के नष्ट होने में सत्पुरुषों को प्राश्चर्य की बात ही क्या है ? ॥७॥ इत्यादि महिलाओं से सहित जगत् के स्वामी तथा जगत् के गुरु श्री पार्श्वनाथ भगवान् की मैं प्रारब्ध कार्य के विघ्नों का सामन करने के लिये स्तुति और वन्दना करता हूँ ।।८।। जिन्होंने दिव्यध्यनिरूपी किरणों के द्वारा सबसे पहले राग द्वेष रूप अन्धकार के समूह को नष्ट कर निश्चय से सत्पुरुषों के लिये उत्कृष्ट मोक्ष मार्ग को प्रकाशित किया था ।।। जो करुणाभाव से स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए अद्ध त सूर्य स्वरूप हुए थे उन धर्म के अधीश्वर धर्मदायक वृषभ जिनेन्द्र की मैं स्तुति करता हूँ ॥१०॥ जिन्होंने समीचीन धर्मरूपी अमृत को बिन्दुओं से अज्ञानरूपी अन्धकार को नष्ट कर कुवलय-मही मण्डल रूपी कुवलय-नील कमलों के हर्ष को किया था उन चन्द्रप्रभ भगवान का मैं स्मरण करता हूँ ॥११।। जो कामदेव, चक्रवर्ती और तीर्थकर पर के धारक होते हुए मुक्ति के स्वामी तथा जगत् के शान्तिकर्ता हुए थे उन शान्तिनाथ भगवान् को मैं शान्ति के लिये नमस्कार करता है॥१२॥ इस लोक में इन्द्रियों के साथ मोह रूपी मल्ल को मरा हुमा देख काम, भय से पीडित होता हुआ जिनके पास से बाल्य अवस्था में भी नष्ट हो गया था-भाग गया था वे नेमिनाथ भगवान् सिद्धि के लिये हों-उनके प्रताप से मुझे मुक्ति की प्राप्ति हो ॥१३॥ मुनिराज और श्रावक्रों के भेद से जो दो प्रकार का है तथा सुख का सागर है ऐसा जिनके द्वारा प्रकाशित हुमा धर्म प्राज भी इस पञ्चम काल में विद्यमान है, जो स्वर्ग और मोक्ष के कर्ता हैं, जगत् के हितकारी १. धर्मदं २. भूमण्डलरूपनीलकमलानन्दं ३. कामदेवः, चक्रवर्ती तीर्थ कररच ४ सह ५. इन्द्रियः ६. दु.षमा संजके पञ्चमे कले ७. मुखसागरः ।

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