Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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१८
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिक्का) से खरीदा हुआ-नैष्किक। पण (३२ रत्ती का चांदी का सिक्का) से खरीदा हुआ-पाणिक।
गोपुच्छ, संख्यावाची और परिमाणवाची शब्दों से ठक्' प्रत्यय का प्रतिषेध होने से उनसे 'प्रागवतेष्ठञ् (५।१।१८) का अधिकार होने से ठञ्' प्रत्यय होता है। (गोपुच्छ) गोपुच्छ गौ से खरीदा हुआ-गौपुच्छिक । यहां गोपुच्छ शब्द गौ का ही वाचक है, गौ की पूंछ का नहीं, क्योंकि गौ को जब किसी को दिया जाता है तब उसकी पूंछ को पकड़ाकर दिया जाता है। (संख्या) षष्टि साठ से खरीदा हुआ-षाष्टिक । (परिमाण) प्रस्थ (१ आढक ढाई सेर) से खरीदा हुआ-प्रास्थिक । पण (३२ तोला चांदी का सिक्का) से खरीदा हुआ-पाणिक। कुडव (१ प्रस्थ=२५६ तोला) से खरीदा हुआ-कौडविक।
सिद्धि-नैष्किकम् । निष्क+टा+ठक् । नैष्क्+इक । नैष्किक+सु । नैष्किकम्।
यहां तृतीया-समर्थ निष्क' शब्द से आ-अहीय क्रीत-अर्थ में इस सूत्र से ठक्' प्रत्यय है। ठस्येकः' (७/३/५०) से 'ह' के स्थान में 'इक’ आदेश होता है। किति च (७।२।१४८) से अंग को आदिवृद्धि और यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-पाणिकम् ।
विशेष: भेद की गणना करना संख्या कहाती हैं, जैसे एक, दो, तीन आदि । गुरुत्व को मांपना उन्मान (तोलना) कहाता है जैसे पल आदि। सर्वतोमान को परिमाण कहते हैं जैसे-प्रस्थ आदि। आयाम (लम्बाई) को मांपना प्रमाण कहाता है जैसे वितस्ति (१२ अंगुल १ बिलांत) आदि।
ऊर्ध्वमानं किलोन्मानं परिमाणं तु सर्वत: । आयामस्तु प्रमाणं स्यात् संख्या बाह्या तु सर्वतः ।।
ठक
(२) असमासे निष्कादिभ्यः ।२०। प०वि०-असमासे ७१ निष्कादिभ्य: ५।३ ।
स०-न समास:-असमास:, तस्मिन्-असमासे (नञ्तत्पुरुष:)। निष्क आदिर्येषां ते निष्कादय:, तेभ्य:-निष्कादिभ्य: (बहुव्रीहिः)।
अनु०-आ-अर्हात्, ठक् इति चानुवर्तते। अन्वय:-यथायोगं समर्थविभक्तिभ्योऽसमासे निष्कादिभ्य आ-अर्हाट्ठक् ।
अर्थ:-यथायोगं विभक्तिसमर्थेभ्य: समासे वर्तमानेभ्यो निष्कादिभ्यः प्रातिपदिकेभ्य आ-अहीयेष्वर्थेषु ठक् प्रत्ययो भवति।
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