Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-परिखाऽस्यां भूमौ स्यात्-पारिखेयी भूमिः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (परिखायाः) परिखा प्रातिपदिक से (अस्य) षष्ठी-विभक्ति तथा (अस्मिन्) सप्तमी-विभक्ति के अर्थ में (ढञ्) ढञ् प्रत्यय होता है (स्यात्) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह स्यात् सम्भावित हो, बन सके।
उदा०-परिखा-खाई इस भूमि पर बन सकती है यह-पारिखेयी भूमि।
सिद्धि-पारिखेयी। परिखा+सु+ढञ् । पारिख्+एय। पारिखेय+डीप् । पारिखेयी+सु। पारिखेयी।
यहां प्रथमा-समर्थ, सम्भावनवाची परिखा' शब्द से सप्तमी-विभक्ति के अर्थ में इस सूत्र से ढञ्' प्रत्यय है। 'आयनेय०’ (७।१।२) से 'द' के स्थान में 'एय्' आदेश होता है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के आकार का लोप होता है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'टिड्ढाणञ्' (४।१।१५) से डीप् प्रत्यय होता है।
इति प्राक्क्रीतीयच्छयत्प्रत्ययाधिकारः ।
प्राग्वतीयठप्रत्ययप्रकरणम् ठञ्-अधिकार:
(१) प्राग्वतेष्ठञ् ।१८। प०वि०-प्राक् ११ वते: ५।१ ठञ् ११ । अन्वय:-वते: प्राक् ठञ् ।
अर्थ:-'तेन तुल्यं क्रिया चेद् वति:' (५।१।११५) इति वक्ष्यति। तस्माद् वति-शब्दात् प्राक् ढञ् प्रत्ययो भवतीत्यधिकारोऽयम्। वक्ष्यति 'पारायणतुरायणचान्द्रायणं वर्तयति' (५ ।१।७२) इति । पारायणं वर्तयतिपारायणिकः । तौरायणिकः। चान्द्रायणिकः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(वते:) तेन तुल्यं क्रिया चेद् वतिः' (५।१।११५) इस सूत्र में जो वति' शब्द पढ़ा है उससे (प्राक्) पहले-पहले (ठञ्) प्रत्यय होता है। यह अधिकार सूत्र है। जैसे मुनिवर पाणिनि कहेंगे-'पारायणतुरायणचान्द्रायणं वर्तयति' (५।११७२)। जो पारायण का वर्तन-अध्ययन करता है वह-पारायणिक । जो तुरायण का वर्तन करता है वह-तौरायणिक। जो चान्द्रायण का वर्तन करता है वह-चान्द्रायणिक ।
सिद्धि-पारायणिकः । परायण+अम्+ठञ् । पारायण+इक। पारायणिक+सु। पारायणिकः।
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