Book Title: Panchsutra Varttikam
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 14
________________ " एतद्धि विवरणम् समेषां श्रेयः प्रेप्सूनां चेतःस्वास्थ्यापादकं परिणामविशुद्धिकारक - मात्मशुद्धिसमुपयोगि च भवतु " | इति चैतद्विवरणगतपूज्याऽऽगमोद्धारकाचार्यसत्तमविवृताऽनेकपदार्थव्यालोडनोभूतभावाऽनु बन्धप्रेरणया शुभाशंसान्यक्तीकरण सनाथोऽऽशीर्वचनरूपेण प्रचीकस्यते । " विवेकिनो हि मुमुक्षवः सदागमतलस्पर्शिसद्गुरुचरणोपासनानिश्रया प्रस्तुत - ग्रन्थपठन-मनन-पर्यालोचनादिभिर्निजात्मशुद्धिपथि अग्रसरा भवन्तु" इति च पुनः मङ्गलकामनापूर्वं पूर्वधरप्रायसूरिवरग्रथितस्यैतस्य पञ्चसूत्रस्याऽनन्यसाधारणगभीरार्थवत्त्वं प्रति ध्यानाकर्षणपूर्वं विरम्यते ससर्वसत्वहिताशंसमिति निवेद्यते— वीर नि० से २४९६ वि० सं० २०२६ आगमो० सं० २० भा० सु० ११ आर्किवासरे जगद्गुरुश्रीहोरसूरीश्वर - स्वर्गतिथौ बीलीमोरा (जि. सुरत ) गुजरात पूज्यपाद - गच्छाधिपति1. सूविर्याणां निदेशेन पुण्योदयाब्धिना श्रीमहावीर प्रभु स्तुतिः भव्यान्जबोधी सकलार्थविद् यः, प्रज्ञापनार्थं विवेचिका गौः । यस्येह तं नम्रसुरेन्द्र भूपं, नमामि वीरं जितमोहवीरम् ॥ पू० आगमोद्धारकाचार्यप्रणीत प्रथम विंशतिकादीपिका प्रारम्भ मङ्गलश्लोकः

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