Book Title: Panchsutra Varttikam
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 12
________________ नियुक्ति-भाष्य-वरवृत्तियुतानि सम्यगू यः प्रापयत्प्रवचनानि विशोध्य यत्नात् । भव्योपकारकरसिकं श्रुतभक्तिभाजमानन्द-सागरगुरुं तमहं प्रवन्दे ॥६॥ यो वाचनां समददान्मुनिमण्डलाय, ज्ञानं प्रचारयितुमाप्त-जिनागमानाम् । सम्यग् जिनागमरहस्यविदां वरेण्यमानन्द-सागरगुरुं तमहं प्रवन्दे ॥७॥ एवं कृताऽन्य-शुभशासन-कृत्य-जातविख्यात-शारद-शशिप्रभ-शुभ्रकीर्तिम् । आचार्य-मौलिमुकुटं मुनिवृन्दवन्धमानन्द-सागरगुरुं प्रणमामि सूरिम् ॥८॥ PawrCCTDANCarroreverecances कीदृशो धर्मः ? को वा प्ररुपयेत् ? । " जन्मान्तकजराऽऽकीर्णो, निस्सारोऽशरणो भवः । तस्मादुद्धारकं धर्म, मुनिः प्रकल्पमृद् वदेत् ॥” पू. आगमोद्धारकश्री रचित "प्रकीर्ण पद्यावली" पद्य-१ PAN

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