Book Title: Panchsangraha Part 03
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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१३४-१३६
१३५
१३५
१३७-१३८
१३८-१३६
१३६
गाथा-४४
परावर्तमान पद का अर्थ व तद्गत प्रकृतियों के नाम व मानने का कारण अपरावर्तमान पद का अर्थ व तद्गत
प्रकृतियों के नाम गाथा ४५
विपाक की अपेक्षा प्रकृतियों के भेद गाथा ४६
हेतुविपाका प्रकृतियों संबन्धी वक्तव्य गाथा ४७
पुद्गल विपाकित्व विषयक समाधान गाथा ४८
भवविपाकित्व विषयक समाधान गाथा ४६
क्षेत्रविपाकित्व विषयक समाधान गाथा ५०
जीवविपाकित्व विषयक समाधान गाथा ?
रसविपाकित्व विषयक प्रश्न गाथ। ५२, ५३
रसविपाकित्व विषयक प्रश्नों के उत्तर गाथा ५४
उत्कृष्ट स्थितिबंध योग्य अध्यवसायों द्वारा एकस्थानक रसबन्ध क्यों नहीं ?
१३६-१४१
१४० •१४१-१४३
१४२ १४३-१४४
१४३ १४४-१४५
१४५
१४५-१४७
१४६ १४७-१५०
१४८
१५०-१५१
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