Book Title: Panchsangraha Part 03
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 218
________________ बंधव्य-प्ररूपणा अविकार : गाथा ६६, ६७ १७७ आयुकर्म में परस्पर संक्रम नहीं होता है तथा बद्धमान आयुकर्म के दलिक पूर्वबद्ध आयु के उपचय (वृद्धि) के लिए सहायक, निमित्त नहीं होते हैं। पूर्वबद्ध आयु स्वतन्त्र है और वर्तमान में बंध रही आयु भी स्वतन्त्र रहती है। जिससे चारों प्रकारों में से एक भी प्रकार के द्वारा तिर्यंचायु और मनुष्यायु को उत्कृष्ट स्थिति का लाभ नहीं होता है। जिससे अनुदयबंधोत्कृष्टादि चारों संज्ञाओं से रहित है। यद्यपि देवायु और नरकायु परमार्थतः अनुदयबंधोत्कृष्टा हैं। क्योंकि इनका उदय न हो तब उत्कृष्ट स्थितिबंध होता है। लेकिन प्रयोजन के अभाव में पूर्वाचार्यों ने आयुचतुष्क के लिये चारों में से एक भी संज्ञा नहीं दी है। इसीलिये यहाँ भी चारों सज्ञाओं में से किसी भी एक संज्ञा में उनका ग्रहण नहीं किया है। ___ इस प्रकार से उदयसंक्रमोत्कृष्टा आदि चारों प्रकारों में संकलित प्रकृतियों को जानना चाहिये । अब उदयवतित्व और अनुदयवतित्व की अपेक्षा प्रकृतियों के वर्गीकरण का विचार करते हैं। उदयवती अनुदयवती प्रकृतियां चरिमसमयंमि दलियं जासिं अन्नत्थसंकमे ताओ। अणदयवइ इयरीओ उदयवई होंति पगईओ ॥६६॥ नाणंतरायआउगदसणचउ वेयणीयमपुमित्थी । चरिमुदय उच्चवेयग उदयवई चरिमलोभो य ॥६७॥ १ देश और नरकायु को एक भी संज्ञा में ग्रहण नहीं करने का कारण यह हो सकता है जब उदयबंधोत्कृष्टादि प्रकृतियों की उत्कृष्ट सत्ता का विचार करते हैं तब उदयबंधोत्कृष्टा प्रकृतियों की पूर्ण सत्ता होती है और अनुदयबंधोत्कृष्टा की एक समय न्यून होती है। अब यदि उक्त दोनों आयु को अनुदयबंधोत्कृष्टा में गिनें तो उनकी उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता भी एक समय न्यून क्यों न मानी जाए? यह शंका होती है। किन्तु यह शंका ही उपस्थित न हो इसीलिये उनको किसी भी संज्ञा में नहीं गिना गया हो। क्योंकि आयु की पूर्ण सत्ता ही होती है, न्यून नहीं होती है । For Private & Personal use only Jain Education International www.jainelibrary.org

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