Book Title: Panchsangraha Part 03
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ३
गुरु, कर्कश, रूक्ष और शीत ये चार स्पर्श, कुल मिलाकर नौ प्रकृतियां अशुभनवक कहलाती हैं और शेष ग्यारह प्रकृतियां शुभ हैं । विशेषार्थ - वर्ग, गंध, रस और स्पर्श के क्रमश: पांच, दो, पांच और आठ – कुल बीस भेद बतलाये जा चुके हैं । उनमें से जो प्रकृतियां शुभ और जो प्रकृतियां अशुभ हैं, इसको गाथा में स्पष्ट किया है। अशुभ और शुभ वर्ग में गृहीत प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं
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वर्णनामकर्म में नील और कृष्ण वर्ण गंधनामकर्म में दुरभिगंध, रसनामकर्म के भेदों में तिक्त ( तीखा, चरपरा) और कटुक ( कड़वा ) रस तथा स्पर्श नामकर्म में गुरु, कर्कश, रूक्ष और शीत स्पर्श ये अशुभ वर्णादिचतुष्क की नौ प्रकृतियां हैं । अर्थात् दो वर्ण, एक गंध, दो रस और चार स्पर्श के नाम मिलाने से वर्ण चतुष्क की ( २+१+ २+४ = १) नौ प्रकृतियां अशुभ समझना चाहिये ।
वर्णचतुष्क की उक्त नौ अशुभ प्रकृतियों के सिवाय शेष रही ग्यारह प्रकृतियां शुभ हैं - एगारसगं सुभं सेसं । जिनकी संख्या और नाम क्रमशः इस प्रकार हैं
शुभ वर्णनामकर्म - शुक्ल, पीत, रक्त वर्ण,
शुभ गंध नामकर्म - सुरभिगंध ( सुगंध ),
शुभ रसनामकर्म - मधुर, अम्ल, कषाय रस,
शुभ स्पर्शनामकर्म - लघु, मृदु, स्निग्ध, उष्ण स्पर्श ।
इस प्रकार तीन वर्ण, एक गंध, तीन रस और चार स्पर्श के भेदों को मिलाने से (३+१+३+४ - ११) वर्णचतुष्क के ग्यारह भेद शुभ प्रकृतियों में माने जाते हैं ।
इस प्रकार से ज्ञानावरणादि आठ कर्मों की उत्तरप्रकृतियों की संख्या और उनके नामों को जानना चाहिये । अब उन प्रकृतियों का जिन विविध संज्ञाओं की अपेक्षा वर्गीकरण किया गया है, उन संज्ञाओं के नाम बतलाते हैं ।
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