Book Title: Panchsangraha Part 03
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधव्य-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३७
१२५ प्रकृतियां कहलाती हैं । ऐसी मतिज्ञानावरणादि सैंतालीस प्रकृतियों के नाम पूर्व में बतलाये जा चुके हैं ।
ध्र वाध्र वबंधित्व पद का अर्थ बतलाने के पश्चात् अब ध्र वाध्र वोदयित्व पद का अर्थ बतलाने के लिए पहले उदयहेतुओं का निर्देश करते हैंउदयहेतु
दव्वं खेत्त कालो भवो य भावो य हेयवो पंच । हेउसमासेणुदओ जायइ सव्वाण पगईणं ॥३७॥ शब्दार्थ-दव्वं-द्रव्य, खेत्तं-क्षेत्र, कालो-काल, भवो-भव, यऔर, भावो-भाव, य-और, हेयवो-हेतु, पंच-पांच, हे उसमासेणहेतुओं के समुदाय द्वारा, उदओ-उदय, जायइ-होता है, सव्वाण-सभी, पगईणं-प्रकृतियों का।
गाथार्थ-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव ये पांच उदयहेतु हैं। इन हेतुओं के समुदाय द्वारा सभी कर्मप्रकृतिगों का उदय होता है।
विशेषार्थ-कर्मसिद्धान्त में जसे सभी कर्मप्रकृतियों के सामान्य बंधहेतुओं का विचार किया गया है, उसी प्रकार से उदयहेतु भी बतलाये हैं
'दव्वं खेत्त कालो' इत्यादि अर्थात् द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव ये पांच सामान्य से सभी कर्मप्रकृतियों के उदय के लिए समुदाय रूप में हेतु हैं। इनमें कर्म के पुद्गल द्रव्य हैं, अथवा तथाप्रकार का कोई भी बाह्य कारण कि जो उदय होने में हेतु हो । जैसे कि सुने जा
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१ गाथा १५ के विशेषार्थ में ध्र वबंधिनी प्रकृतियों के नाप और उनके ध्र व..
बंधित्व के कारण को स्पष्ट किया है।
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