Book Title: Panchsangraha Part 03
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ३ उक्त दोनों भावों से शेष रहे क्षायिक, पारिणामिक और औदयिक ये तीनों भाव आठों कर्मों में पाये जाते हैं । जो इस प्रकार हैं
मोहनीयकर्म का सर्वथा क्षय सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान के चरम समय में, शेष तीन घातिकर्मों का क्षय क्षीणकषायगुणस्थान के चरम समय में और अघाति कर्मों का अयोगिकेवलीगुणस्थान के चरम समय में आत्यन्तिक उच्छेद-सर्वथा नाश होने से क्षायिक भाव आठों कर्मों में पाया जाता है।
आठों कर्मों में पारिणामिक भाव इसलिए पाया जाता है कि आत्मप्रदेशों के साथ पानी और दूध की तरह एकाकार रूप से परिणमित होकर विद्यमान हैं और औदयिकभाव तो सुप्रतीत ही है। क्योंकि सभी संसारी जीवों में आठों कर्मों का उदय दिखता है । ___कर्मों में सम्भव भाव की प्राप्ति के उक्त समग्र कथन का सारांश यह है कि मोहनीयकर्म में औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक, पारिणामिक और औदयिक ये पांचों भाव सम्भव हैं। ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन घातिकर्मों में औपशमिकभाव के बिना शेष चार भाव और वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र इन चार अघातिकर्मों में क्षायिक, पारिणामिक और औदयिक ये तीन भाव ही संभव हैं।
सरलता से समझने के लिए जिनका प्रारूप इस प्रकार है
क्रम | कर्मप्रकृति नाम
प्राप्त भाव
कुल भाव
१
मोहनीय
औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक, पांच .. पारिणामिक, औदयिक क्षायोपशमिक, क्षायिक, पारिणा
मिक, औदयिक
ज्ञानावरण
चार
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